कलियुग में मां दुर्गा का सर्वाधिक प्रभावशाली और चमत्कारिक रूप विंध्यवासिनी देवी का vindheshwari chalisa भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण करता है। इसलिए आज हम आपके लिए vindhyachal chalisa और आरती लेकर आये हैं।
जो बेहद चमत्कारी है। जिसके पाठ से सारी समस्याएं दूर होती हैं। साथ ही मां विन्ध्येश्वरी की कृपा भी प्राप्त होती है।
विन्ध्येश्वरी मां का परिचय – vindhyavasini chalisa
जिस समय देवकी के आठवें पुत्र के रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। उसी समय यशोदा के गर्भ से मां भगवती जगदम्बा का प्राकट्य हुआ था।
वसुदेव जी उस कन्या को कृष्णजी के बदले मथुरा लाये। तब कंस ने उस कन्या को मारने का प्रयत्न किया तो वह उसके हाथ से निकलकर आकाश में चली गयी।
वही कन्या vindhyeshvri माता के रूप में विंध्याचल पर्वत पर विद्यमान हुई। कलियुग में विन्ध्यवासिनी देवी, विंध्याचल माता अथवा विन्ध्येश्वरी देवी के रूप में वे अपने भक्तों के कष्ट दूर करती हैं।
दुर्गा सप्तशती में मां ने स्वयं कहा है-वैवस्वतेन्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे। शुम्भो निशुम्भश्चैवान्यावुत्पत्स्येते महासुरौ।। नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा। ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी।।
अर्थात वैवस्वत मन्वंतर के अट्ठाइसवें युग में शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो अन्य महादैत्य उत्पन्न होंगे। तब मैं नंद गोप के यहां यशोदा के गर्भ से अवतार लेकर विंध्याचल में निवास करूंगी और उन दैत्यों का नाश करूंगी।
विंध्याचल धाम की भौगोलिक स्थिति
विन्ध्येश्वरी माता का मंदिर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में मिर्जापुर से 7 किमी पर स्थित है। जोकि विंध्याचल धाम के नाम से प्रसिद्ध है। यह 52 शक्तिपीठों में से एक है। विंध्याचल धाम वाराणसी से लगभग 70 किमी और प्रयागराज से लगभग 85 किमी की दूरी पर है।
विन्ध्येश्वरी चालीसा का महत्व- vindheshwari chalisa
इस चालीसा के पाठ से भक्त के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। धन, संपत्ति, पुत्र आदि की प्राप्ति होती है। कर्ज से छुटकारा मिलता है। प्रतिदिन नियम पूर्वक पाठ करने से माता प्रसन्न होती हैं। भक्त की सभी मनोकामनाएं स्वतः ही पूर्ण हो जाती हैं
श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा – vindhyachal chalisa
दोहा
नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदंब ।
संतजनो के काज में, करती नहीं विलंब ॥
जय जय जय विन्ध्याचल रानी । आदि शक्ति जग विदित भवानी ॥
सिंहवाहिनी जै जग माता । जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता ॥
कष्ट निवारिनी जय जग देवी । जै जै सन्त असुर सुर सेवी ॥
महिमा अमित अपार तुम्हारी । शेष सहस मुख बरनत हारी ॥
दीनन के दुःख हरत भवानी । नहिं देख्यो तुम सम कोउ दानी ॥
सब कर मनसा पुरवत माता । महिमा अमित जगत विख्याता ॥
जो जन ध्यान तुम्हारो लावै । सो तुरतहि वांछित फल पावै ॥
तु ही वैष्णवी तु ही रुद्राणी । तु ही शारदा अरु ब्रह्माणी ॥
रमा राधिका श्यामा काली । तु ही मात सन्तन प्रतिपाली ॥
उमा माधवी चण्डी ज्वाला । बेगि मोहि पर होहु दयाला ॥
तु ही हिंगलाज महारानी । तु ही शीतला अरु विज्ञानी ॥
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता । तु ही लक्ष्मी जग सुखदाता ॥
तु ही जान्हवी अरु उन्नानी । हेमावति अम्बे निर्वानी ॥
अष्टभुजी वाराहिनी देवी । करत विष्णु शिव जाकर सेवी ॥
चौसट्टी देवी कल्यानी । गौरी मंगला सब गुण खानी ॥
पाटन मुम्बा दन्त कुमारी । भद्रकालि सुन विनय हमारी ॥
वज्रधारिणी शोक नाशिनी । आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी ॥
जया और विजया बैताली । मातु सुगन्धा अरु विकराली ।
नाम अनन्त तुम्हार भवानी । बरनैं किमि मानुष अज्ञानी ॥
जा पर कृपा मातु तव होई । तो वह करै चहै मन जोई ॥
कृपा करहु मो पर महारानी । सिद्धि करिय अम्बे मम बानी ॥
जो नर धरै मातु कर ध्याना । ताकर सदा होय कल्याना ॥
विपति ताहि सपनेहु नहिं आवै । जो देवी कर जाप करावै ॥
जो नर कहँ ऋण होय अपारा । सो नर पाठ करै शत बारा ॥
निश्चय ऋण मोचन होई जाई । जो नर पाठ करै मन लाई ॥
अस्तुति जो नर पढ़े पढ़ावे । या जग में सो बहु सुख पावै ॥
जाको व्याधि सतावै भाई । जाप करत सब दूरि पराई ॥
जो नर अति बन्दी महँ होई । बार हजार पाठ कर सोई ॥
निश्चय बन्दी ते छुटि जाई । सत्य बचन मम मानहु भाई ॥
जा पर जो कछु संकट होई । निश्चय देबिहि सुमिरै सोई ॥
जेहि नर पुत्र होय नहिं भाई । सो नर या विधि करे उपाई ॥
पांच वर्ष सो पाठ करावै । नवरातन महँ विप्र जिमावै ॥
निश्चय होय प्रसन्न भवानी । पुत्र देहि ताकहँ गुण खानी ।
ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै । विधि समेत पूजन करवावै ॥
नित प्रति पाठ करै मन लाई । प्रेम सहित नहिं आन उपाई ॥
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा । रंक पढ़त होवे अवनीसा ॥
यह जनि अचरज मानहु भाई । कृपा दृष्टि जापर होई जाई ॥
जय जय जय जगमातु भवानी । कृपा करहु मो पर जन जानी ॥
विन्ध्येश्वरी माता की आरती – vindheshwari chalisa
सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी तेरा पार न पाया ॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तेरी भेंट चढ़ाया । सुन……
सूवा चोली अंग विराजे केसर तिलक लगाया । सुन…
नंगे पग अकबर आया सोने का छत्र चढ़ाया । सुन…
ऊँचे पर्वत बनयो देवालया नीचे शहर बसाया । सुन…
सतयुग द्वापर त्रेता मध्ये कलियुग राज सवाया । सुन…
धूप दीप नैवेद्य आरती मोहन भोग लगाया । सुन…
ध्यानू भगत मैया तेरे गुण गाया मनवांछित फल पाया । सुन…