भारत भूमि सदैव से ही आध्यात्मिक चेतना को पुष्पित एवं पल्लवित करती रही है। इस पवित्र भूमि पर विभिन्न कालखंड में trailanga swami- त्रैलंग स्वामी जैसे अनेक सिद्ध, सन्यासी एवं संत सनातन आध्यात्मिक परम्परा के ध्वजवाहक बने हैं।
जिनके व्यक्तित्व, कृतित्व एवं सहज चमत्कारों ने न केवल भारतीय अपितु विदेशी जनमानस को भी समृद्ध भारतीय आध्यात्मिक परम्परा के प्रति श्रद्धावनत किया है। ऐसे ही एक महान योगी और संत थे trailanga swami- त्रैलंग स्वामी ।
जिनके चमत्कारों एवं सहज व्यक्तित्व की गूंज आज भी काशी के कण कण में विद्यमान है। 300 वर्षों की उनकी आयु किसी चमत्कार से कम नहीं थी। उनके दर्शन मात्र से लोग गंभीर बीमारियों से मुक्त हो जाते थे।
आज हम इन्हीं महान संत के जीवन चरित्र, कृतित्व एवं चमत्कारों का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
trailanga swami-त्रैलंग स्वामी का जीवन परिचय
प्रारंभिक जीवन
महान योगी त्रैलंग स्वामी का जन्म विजियाना जिले के होलिया नामक ग्राम में हुआ था। जोकि आंध्र प्रदेश में स्थित है। इनके पिता का नाम नृसिंह राव तथा माता का नाम विद्यावती था।
इनके जन्म के विषय में स्पष्ट साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। जिस कारण कुछ लोग इनका जन्म 1529 ई0 तो कुछ 1607 ई0 मानते हैं। यद्यपि कुछ तथ्यों के आधार पर इनका जन्म सन 1607 ही अधिक सटीक प्रतीत होता है। इतना तो तय है कि तैलंग स्वामी का जन्म 15वीं शताब्दी के अंत में हुआ था।
इनका परिवार आर्थिक रूप से सम्पन्न था। त्रैलंग स्वामी की माता विद्यावती भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं। इसलिए उन्होंने इनका नाम शिवराम तैलंगधर रखा। माता की शिवभक्ति का प्रभाव बालक शिवराम पर भी पड़ा।
बालक शिवराम बचपन से ही शांत, वैरागी स्वभाव का था। वह अन्य समवयस्क बालकों की भांति खेलकूद में रुचि न लेकर गहन चिंतन में डूबा रहता था। माता ने बालक शिवराम के मन में ईश्वरभक्ति के बीज अंकुरित किये। जो कालांतर में महान योगशक्ति सम्पन्न त्रैलंग स्वामी रूपी वटवृक्ष में परिणत हुए।
शिवमंदिर में घण्टों ध्यानस्थ रहना इनका पसंदीदा खेल था। गांव के बाहर एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान मुद्रा में बैठे बालक शिवराम तैलंग्धर के पास एक भयानक सर्प का बैठे रहना गांव वालों के लिए कौतूहल का विषय था।
आस पास के गांवों में चर्चा होने लगी कि जमींदार नृसिंह राव के घर किसी महान आत्मा ने जन्म लिया है। उम्र बढ़ने के साथ साथ इसकी ध्यान साधना एवं पूजा पाठ में रुचि और बढ़ गयी।
चिंतित माता पिता ने इनका विवाह करने का प्रयास किया। जिसके लिए त्रैलंग स्वामी ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। ध्यान- पूजन के अतिरिक्त इनकी रुचि व्यायाम में थी। जिसके कारण इनका शरीर बलिष्ठ एवं मजबूत होता गया।
40 वर्ष की अवस्था में इनके पिता का देहावसान हो गया। ठीक 10 वर्ष बाद इनकी माता ने भी देहत्याग कर दिया। जिसके पश्चाद इनका हृदय सांसारिक मोह माया से पूरी तरह विरक्त हो गया।
trailanga swami का सन्यस्त जीवन
मां के दाह संस्कार के बाद तैलंग स्वामी वापस घर नहीं गए। वे वहीं श्मशान में जहां उनकी माँ का अंतिम संस्कार हुआ था। उसी स्थान पर साधनारत हो गए। त्रैलंग स्वामी के सौतेले भाई श्रीधर उनके भोजन पानी की व्यवस्था वहीं कर देते थे।
बीस वर्षों तक श्मशान साधना के बाद एक दिन प्रसिद्ध योगी भागीरथ स्वामी उस श्मशान के पास से गुजरे। वहां इन्हें साधनारत देख वे इनके पास गए। अपने योगबल से इनके उज्ज्वल भविष्य को देखकर भगीरथ स्वामी शिवराम तैलंग्धर को अपने साथ पुष्कर तीर्थ ले आये।
पुष्कर में भगीरथ स्वामी ने इन्हें 78 वर्ष की अवस्था में दीक्षा प्रदान की और इनका नाम गणपति स्वामी रखा। यहां साधना के द्वारा गणपति स्वामी को अनेक सिद्धियां प्राप्त हुईं।
सन 1695 के लगभग भगीरथ स्वामी के देहांत के बाद त्रैलंग स्वामी 80 वर्ष से अधिक की उम्र में भारत भ्रमण पर निकल पड़े। जिसके बाद ये रामेश्वरम, नेपाल, तिब्बत, सुदूर, दुर्गम हिमालय एवं लगभग पूरा भारत घूमने के पश्चाद सन 1737 में काशी पहुंचे और यहीं रह गए।
काशी निवास
काशी को शिव की नगरी कहा जाता है। काशी सदैव से मूर्धन्य विद्वानों, सन्यासी, महान योगियों की कर्मभूमि रही है। अघोरी बाबा कीनाराम, महायोगी श्यामाचरण लाहिड़ी इनमें से प्रमुख थे।
जब तैलंग स्वामी काशी पहुंचे। उस समय उनकी आयु लगभग 122 वर्ष थी। परंतु उनकी कद- काठी एवं शारीरिक सौष्ठव से वे 50 वर्ष से अधिक नहीं प्रतीत होते थे। इस समय काशी में योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी के महान व्यक्तित्व और चमत्कारों की गूंज थी।
श्यामाचरण लाहिड़ी जी ने योग के सहज एवं सरलतम रूप का दर्शन जनसामान्य के समक्ष प्रस्तुत किया। जोकि एक सामान्य गृहस्थ के लिए भी सुलभ था। वहीं त्रैलंग स्वामी ने परंपरागत सन्यासी जीवन की महिमा का आदर्श प्रस्तुत किया।
एक गृहस्थ किन्तु महानतम योगी एवं एक उच्च कोटि के सन्यासी की इस जोड़ी के दर्शन का दुर्लभ सौभाग्य तत्कालीन काशी वासियों को सहज ही सुलभ था।
त्रैलंग स्वामी का व्यक्तित्व
त्रैलंग स्वामी बलिष्ठ कद काठी के व्यक्ति थे। उनका वजन 300 पाउंड यानी लगभग 140 किलोग्राम था। काशी प्रवास के प्रारम्भ में उनकी आयु 122 वर्ष थी। तथापि वह कहीं से भी वृद्ध प्रतीत नहीं होते थे।
वे प्रायः मौन ही रहते थे। भूख-प्यास एवं इंद्रियों पर उन्होंने विजय प्राप्त कर ली थी। वे हफ्तों बिना कुछ भी खाए रह जाते थे। कभी उन्होंने किसी से भी कुछ खाने को नहीं मांगा।
अगर किसी ने प्रेम से कुछ भी खाने के लिए प्रस्तुत किया तो वे उसे ग्रहण कर लेते थे। अन्यथा कई-कई दिनों तक निराहार ही रह जाते थे। दिगम्बर सन्यासियों की भांति वे पूर्ण नग्न रहते थे।
स्वभाव से वे दस वर्ष के बालक की तरह मस्तमौला थे। वे जो जी में आता था, वही करते थे। अपनी सिद्धियों का उन्हें ज़रा भी अभिमान नहीं था। वे लाहिड़ी महाशय का बहुत सम्मान करते थे।
एक बार उन्होंने लाहिड़ी महाशय का सार्वजनिक अभिनंदन करने का निर्णय लिया। उनके शिष्यों ने पूछा, “महाराज ! आप इतने बड़े सन्यासी होकर भी एक साधारण गृहस्थ योगी का अभिनंदन करना चाहते हैं !”
इसपर त्रैलंग स्वामी ने उत्तर दिया, ” लाहिड़ी महाशय साधारण कदापि नहीं हैं। वे मां भगवती के ऐसे पुत्र हैं जिन्हें माँ ने जहाँ बैठा दिया है। वे चुपचाप वहाँ बैठ गए हैं। गृहस्थ जीवन में रहकर भी उन्होंने सहज ही उस उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर लिया है। जिसके लिए मुझे अपना सबकुछ त्याग करना पड़ा है, यहां तक कि लंगोटी भी।” ऐसे सहज, सरल थे त्रैलंग स्वामी।
त्रैलंग स्वामी के चमत्कार- trailanga swami miracles
त्रैलंग स्वामी एक महान सिद्ध योगी थे। उनके लगभग सारे क्रियाकलाप ही चमत्कार थे। वे जून की कड़कड़ाती धूप में मणिकर्णिका घाट की तपती शिलाओं पर घण्टों बैठे रहते थे।
उफनती गंगा के जल पर पद्मासन लगाकर धारा के विपरीत बहते हुए ध्यानस्थ हो जाते थे। कई दिनों तक गंगा के जल के भीतर समाधिस्थ रहते थे। कभी कुछ खा लेते थे तो कभी महीनों निराहार रहते थे। उनकी उम्र भी एक चमत्कार थी। लगभग 300 वर्षों का जीवन अपनेआप में ही चमत्कार है।
यत्ने लंबे जीवनकाल में उन्होंने अनेकों चमत्कार किये। सबका वर्णन करना सम्भव नहीं तथापि कुछ चमत्कारों का उल्लेख आवश्यक है।
मृत व्यक्ति को जीवनदान
पुष्कर तीर्थ में अपने गुरु के ब्रम्हलीन हो जाने के बाद स्वामीजी भ्रमण करते हुए रामेश्वरम पहुंचे। वहां एक मृत युवक के परिजनों के विलाप से द्रवित हो गए। तैलंग स्वामी ने उस युवक की मृत देह पर अपने कमण्डल का जल छिड़का और वह उठकर बैठ गया।
इस चमत्कार के बाद उस क्षेत्र में उनका नाम चारों ओर फैल गया। वहां स्वामी जी ने बहुत से दुखी लोगों के कष्टों का निवारण किया। लगातार भीड़ बढ़ने से साधना में विघ्न होने कारण तैलंग स्वामी वहां से आगे बढ़ गए।
नेपाल नरेश को ज्ञान
लोगों की भीड़ से परेशान होकर त्रैलंग स्वामी एकांत साधना के लिए नेपाल के एक निर्जन पहाड़ी क्षेत्र में रहने लगे। वहाँ स्थित एक गुफा उनका साधना केंद्र थी।
एक दिन नेपालनरेश उसी वन्यक्षेत्र में शिकार खेलने आये। वहां उन्होंने एक शेर पर निशाना लगाया। शेर घायल तो हुआ लेकिन भाग गया। उनके सेनापति और कुछ सैनिकों ने शेर का पीछा किया।
काफी खोजबीन के बाद उन्हें तैलंग स्वामी की गुफा दिखी। जब वे वहां पहुंचे तो उन्होंने एक आश्चर्यजनक दृश्य देखा। घायल शेर स्वामीजी के चरणों में लोट रहा था और वे उसके सिर पर हाथ फेर रहे थे। प्रायः जंगली जानवर घायल होने के बाद बहुत उग्र हो जाते हैं।
सेनापति और सारे सैनिक स्वामी जी के सामने हाथ जोड़कर नतमस्तक हो गए। हल्के क्रोध में स्वामीजी ने सेनापति से कहा, “हिंसा अच्छी चीज नहीं, यह प्रतिहिंसा को जन्म देती है। मैं अहिंसक हूँ इसीलिए यह मेरे साथ मित्रवत है।”
सेनापति जाकर सारी बात नेपालनरेश को बताई। वे स्वयं ढेर सारा स्वर्ण, चांदी, रत्न, आभूषण आदि लेकर तैलंग स्वामी- trailanga swami से मिलने गए। भेंट देखकर स्वामीजी हंसकर बोले, “राजन ! हम सन्यासियों का इन बहुमूल्य रत्नों से क्या प्रयोजन ? हमारे लिए ये पत्थर के ढेर के ही समान हैं। अगर तुम कहो तो मैं इससे दस गुना अधिक रत्न तुम्हें अभी प्रदान कर सकता हूँ। नेपालनरेश तत्काल उनके चरणों में गिर पड़े और अपनी भूल के लिए क्षमा मांगने लगे।
काशी पुलिस को चमत्कार दिखाना
एक बार काशी में एक नया पुलिस अधिकारी आया। उसे त्रैलंग स्वामी का निर्वस्त्र काशी की गलियों में घूमना पसंद नहीं आया। उसने स्वामीजी को जेल में बंद करने का आदेश दिया। पुलिसवालों ने उसे समझाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन वह नहीं माना।
हारकर पुलिसवालों ने स्वामीजी को पुलिस स्टेशन के लॉकअप में बंद कर दिया। थोड़ी देर बाद लोगों ने देखा कि स्वामीजी पुलिस स्टेशन की छत पर टहल रहे हैं।
पुलिस वाले उन्हें नीचे लाये और फिर से बंद कर दिया। इस बार कोठरी पर ताला लगा दिया गया। लेकिन थोड़ी देर बाद स्वामीजी फिर छत पर थे। इस बार कोठरी के बाहर पहरा भी लगा दिया गया। लेकिन परिणाम फिर वही था। स्वामी जी फिर छत पर थे।
पुलिस ऑफिसर इस चमत्कार को देखकर बहुत घबरा गया और उसने त्रैलंग स्वामी से क्षमा याचना करके उन्हें मुक्त कर दिया।
जहर पीने का चमत्कार
trailanga swami कभी किसी से खाने के लिए नहीं मांगते थे। श्रद्धालु भक्त जो कुछ उन्हें प्रेमपूर्वक अर्पित करते थे। वे वही खा लेते थे। साथ ही वे कभी किसी को मना भी नहीं करते थे।
एक बार एक दुष्ट व्यक्ति पुताई करने वाला कच्चा चूना एक बाल्टी में घोलकर स्वामीजी के पास ले गया और बोला, ” महाराज, आपके बड़े प्रेम से गर्म खीर बनाई है, कृपया ग्रहण करें।”
स्वामीजी ने गहरी नजरों से उसकी ओर देखा और चुपचाप एक बाल्टी कच्चा चूना पी लिया। पीने के बाद तैलंग स्वामी पुनः चुपचाप बैठ गए। वह व्यक्ति इंतजार कर रहा था कि अभी स्वामीजी की हालत बिगड़ेगी।
लेकिन हुआ उल्टा, थोड़ी ही देर में वह पेटदर्द से तड़पने लगा। दर्द इतना भयंकर था कि उसे लगा कि प्राण निकलने वाले हैं। कोई रास्ता न देखकर वह स्वामीजी से क्षमा मांगते हुए उनसे प्राणरक्षा की गुहार लगाने लगा।
त्रैलंग स्वामी बोले, “यह जहर लाने से पहले तुमने नहीं सोचा कि मेरा और तुम्हारा जीवन सम्बद्ध है। अगर मुझे यह ज्ञात नहीं होता कि इस प्रकृति के कण कण की भांति मेरे अंदर भी सर्वशक्तिमान ईश्वर विराजमान है। तो आज मैं मर गया होता।”
दोबारा ऐसा किसी के साथ मत करना- इतना कहकर स्वामीजी ने उसे ठीक कर दिया।
काशी के सचल विश्वनाथ की उपाधि
बंगाल के महान संत, मां काली के अनन्य भक्त, परमहंस, स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस उच्चकोटि के सिद्ध संत थे। मां काली उन्हें पुत्रवत स्नेह करती थीं और प्रतिदिन साक्षात उनकी पूजा ग्रहण करती थीं। उन्होंने स्वामी विवेकानंद को ईश्वर के दर्शन कराकर उनकी जिज्ञासा शांत की थी। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने त्रैलंग स्वामी को चलते फिरते महादेव (सचल महादेव) की उपाधि दी थी।
एक बार वे अपने शिष्यों के साथ भगवान विश्वनाथ के दर्शन करने काशी आये। उनकी मंडली हर हर महादेव के नारे लगाती काशी की गलियों से गुजर रही थी। तभी स्वामी रामकृष्ण परमहंस के सामने त्रैलंग स्वामी- trailanga swami आ खड़े हुए।
दोनों महान संतों ने एक दूसरे को दिव्य दृष्टि से देखा, अभिवादन किया। इसके बाद स्वामी रामकृष्ण परमहंस बिना काशी विश्वनाथ के दर्शन किये वापस चल दिये। जब उनके शिष्यों ने दर्शन न करने का कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया–
“मैंने काशी के चलते फिरते सचल महादेव के दर्शन कर लिए। अब महादेव के प्रस्तर रूप के दर्शन की क्या आवश्यकता ?”
तैलंग स्वामी की मृत्यु
एक महान योगी और सिद्ध सन्यासी तैलंग स्वामी- trailanga swami 300 वर्ष की आयु पूर्ण कर 11 जनवरी सन 1987, एकादशी के दिन योगासन पर बैठकर वे ब्रम्हलीन हुए। अपनी देहत्याग की सूचना अपने शिष्यों को उन्होंने एक दिन पूर्व ही दे दी थी। परन्तु उनकी आध्यत्मिक चेतना की छाप आज भी एवं दीर्घकाल भारतीय अध्यात्म जगत एवं जनमानस पर अमिट और अक्षुण्ण रहेगी।
तैलंग स्वामी मठ
काशी के पंचगंगा घाट पर तैलंग स्वामी मठ है। उसी मठ में 20 फूट नीचे एक गुफा है, जहाँ बैठकर स्वामीजी साधना किया करते थे। इस मठ में उनके द्वारा पूजित श्रीकृष्ण जी की एक मूर्ति है। जिसके मस्तक पर शिवलिंग और ऊपर श्रीयंत्र स्थित है। उनके अनुयायी आज भी बड़ी संख्या में दर्शन के लिए इस मठ में आते हैं।