दोस्तों! आज हम आपके लिए 50+ संस्कृत सूक्तियां- sanskrit quotes नामक पोस्ट लेकर आये हैं। जिसमें 50 से अधिक संस्कृत भाषा की प्रसिद्ध proverbs या quotes का संग्रह किया गया है।
संस्कृत सूक्तियां
1- अतृणे पतितो वह्निः स्वयमेवोय शाम्यति।
अर्थ- तिनकों से रहित स्थान पर पड़ी हुई अग्नि स्वयं शांत हो जाती है।
2- आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत।
अर्थ- आहार और व्यवहार में लज्जा का त्याग करने वाला सुखी रहता है।
3- आर्जवं हि कुटिलेषु न नीतिः।
अर्थ- कुटिल मनुष्यों के साथ सरलता का व्यवहार करना नीति सम्मत नहीं है।
4- अति सर्वत्र वर्जयेत।
अर्थ- अति सभी जगह वर्जित है।
5- अवश्यमेवं भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।
अर्थ- किये गए अच्छे या बुरे कर्मों का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है।
6- आत्मवत् सर्वभूतानि।
अर्थ- सभी प्राणियों को अपने समान समझना चाहिए।
7- उपदेशो हि मूर्खाणाम् प्रकोपायं न शान्तये।
अर्थ- मूर्ख व्यक्ति को उपदेश देने से उसका क्रोध शांत नहीं होता।
8- उद्योगिनं पुरुष सिंहमुपैति लक्ष्मी।
अर्थ- उद्योगी अथवा मेहनती लोग ही लक्ष्मी की प्राप्ति करते हैं।
9- उदर निमित्तं बहु कृत वेषा।
अर्थ- पेट भरने के लिए बहुत से रूप धारण करने पड़ते हैं।
10- एकः स्वाद न भुञ्जीथाः।
अर्थ- किसी वस्तु को अकेले खाने में आनन्द नहीं आता।
11- कृशेकस्यास्ति सौह्रदम्।
अर्थ- गरीब का कौन मित्र होता है ?
12- किं जीवितेन् पुरुषस्य निरक्षरेण।
अर्थ- निरक्षर मनुष्य के जीवन से क्या लाभ !
13- कालस्य कुटिलः गतिः।
अर्थ- काल की गति टेढ़ी होती है। जिसे जानना सम्भव नहीं है।
14- गुणेर्विहीना बहुजल्पयन्ति।
अर्थ- गुणहीन व्यक्ति बहुत बकवास करते हैं।
15- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
अर्थ- माता और जन्मभूमि ये दोनों स्वर्ग से भी बढकर हैं।
16- दैवो दुर्बल घातकः।
अर्थ- भाग्य भी निर्बलों को ज्यादा दुख देता है।
17- न बन्धु मध्ये धनहीन जीवनम्।
अर्थ- बंधुओं के बीच में गरीब होकर रहना जीवन का सबसे बड़ा दुख है।
18- न मूर्ख जन ससंगति सुरेन्द्रभवनेश्वपि।
अर्थ- मूर्ख व्यक्तियों के साथ स्वर्ग में रहना भी सुखकर नहीं है।
19- न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।
अर्थ- सोए हुए शेर के मुंह में हिरन अपने आप नहीं घुस जाते। अर्थात उसे शिकार के लिए प्रयत्न करना पड़ता है।
20- निरस्त पादपे देशे एरण्डोपि द्रुमापदे।
अर्थ- वृक्ष विहीन क्षेत्र में एरंड का पौधा भी पेड़ ही कहा जाता है। यानी मूर्खो के बीच कम गुणवान का भी बड़ा महत्व होता है।
21- नैकत्र सर्वे गुण सन्निपातः।
अर्थ- सभी गुण एक ही स्थान पर नहीं मिलते।
22- पयः पानं भुजंगानां केवलं विषवर्द्धनम्।
अर्थ- सांप को दूध पिलाने से केवल उसका विष ही बढ़ता है। अर्थात दुष्टों के साथ अच्छा व्यवहार करने से उनकी दुष्ट कम नहीं होती है।
23- परोपकाराय सतां विभूतयः।
अर्थ- परोपकार सज्जनों की संपत्ति होती है।
सूक्तियां संस्कृत में
24- परोपदेश बेलायां शिष्टाः सर्वे भवन्ति वै।
अर्थ- दूसरों को उपदेश देते समय सभी लोग सज्जन बन जाते हैं।
25- प्रासाद शिखरस्थोपि काकः किं गरुणायते।
अर्थ- महल के शिखर पर बैठने से कौवा गरुण नहीं बन जाता है। अर्थात बिना गुण के केवल बड़ों की संगति करने से कोई बड़ा नहीं बन जाता।
26- बुद्धिर्यस्य बलं तस्य, निर्बुद्धिस्य कुतो बलः।
अर्थ- जिसके पास बुद्धि है, वास्तव में वही बलवान है। बुद्धिहीन व्यक्ति के पास वास्तविक शक्ति कहाँ होती है ?
27- बुद्धेः फलमनाग्रहः।
अर्थ- हठ न करना ही बुद्धिमानी है।
28- मनस्वी कार्यार्थी न गणयति दुःखं न च सुखम्।
अर्थ- कार्य की पूर्ति चाहने वाला मनस्वी व्यक्ति सुख दुख की परवाह नहीं करता।
29- मितं च सार च वचो हि वाग्मिता।
अर्थ- संछिप्त और सार रूप में अपनी बात रखना ही वाक्पटुता है।
30- मुंडे मुंडे मतिर्भिन्नाः।
अर्थ- अलग अलग लोगों की अलग अलग राय होती है।
31- महाजनो येन गताः स पन्थाः।
अर्थ- महापुरुष जिस रास्ते पर चलते हैं। वही सही मार्ग है।
32- मौनं स्वीकृति लक्षणम्।
अर्थ- मौन होना स्वीकृति का लक्षण है।
33- मौनं स्वार्थ साधनं।
अर्थ- चुप रहने से सब काम हो जाते हैं।
34- यत्ने कृते यदि नसिद्धयति को अत्र दोषः।
अर्थ- प्रयत्न करने पर भी कम न हो तो किसका दोष ?
35- यादृशी शीतलादेवी तादृशी वाहन खरः।
अर्थ- जैसे को तैसा।
sanskrit proverbs
36- विद्या ददाति विनयं।
अर्थ- विद्या से विनम्रता आती है।
37- वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि।
अर्थ- सज्जन व्यक्ति वज्र से भी कठोर और फूलों से भी अधिक कोमल होते हैं।
38- विनाशकाले विपरीत बुद्धिः।
अर्थ- विनाश के समय बुद्धि विपरीत (नष्ट) हो जाती है।
39- विद्याधनं सर्व धनं प्रधानं।
अर्थ- विद्या रूपी धन सभी धनों से श्रेष्ठ होता है।
40- विद्याविहीनः पशुः।
अर्थ- विद्याहीन व्यक्ति पशु के समान है।
41- बुभुक्षितः किं न करोति पापं।
अर्थ- भूखा व्यक्ति कौन सा पाप नहीं करता है।
42- क्षीणाः नराः निष्करुणा भवन्ति।
अर्थ- कमजोर व्यक्ति दया से रहित होते हैं।
43- शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनं।
अर्थ- शरीर की रक्षा करना ही सबसे बड़ा धर्म है।
44- शठे शाठ्यं समाचरेत।
अर्थ- दुष्ट के साथ दुष्टतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
45- शुभस्य शीघ्रम्, अशुभस्य कालहरणम्।
अर्थ- अच्छे कार्य शीघ्रता से करने चाहिए और बुरे कार्यों को टालना चाहिए।
46- सत्यमेव जयते नानृतं।
अर्थ- सत्य की ही जीत होती है असत्य की नहीं।
47- संतोषम् परमं सुखं।
अर्थ- संतोष ही सबसे बड़ा सुख है।
48- सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ते।
अर्थ- सारे गुण धन में ही निवास करते हैं।
49- सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्।
अर्थ- सत्य बोलो प्रिय बोलो।
50- हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः।
अर्थ- हितकर भी हों और प्रिय भी। ऐसे वचन दुर्लभ हैं।
51- शीलं परम् भूषणम।
अर्थ- सच्चरित्र या सज्जनता सबसे बड़ा आभूषण है।
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