सही राह- मोरल स्टोरी | Moral Story
सही राह- मोरल स्टोरी एक प्रेरणादायक कहानी है। जो हमें जीवन के सही तरीके के बारे में बताती है। यह हिंदी कहानी हमें सफलता और असफलता के क्षणों में हमारे कर्तव्य का बोध भी कराती है।
मुम्बई शहर में एक व्यक्ति रहता था। व्यापार में बड़ा घाटा लगने के के कारण उसकी सारी पूंजी खत्म हो गयी थी। इसी सदमे के कारण वह बीमार हो गया था।
पास में एक भी पैसा नहीं था। स्थिति ऐसी हो गयी थी कि तीन दिन से उसने खाना भी नहीं खाया था। भूख से बेहाल उस व्यक्ति के पास ही रास्ता बचा था। कहीं से खाना मांगने का।
उसके घर से थोड़ी दूर पर एक विशाल कोठी थी। जोकि किसी बहुत बड़े व्यापारी की थी। उसने वहीं जाकर खाना मांगने का निश्चय किया।
कोठी के सामने पहुंचकर उसने जोर से आवाज लगाई। कई बार आवाज देने के बाद मालिक बाहर निकला। ठीक ठाक दिखने वाले एक व्यक्ति को खाना मांगते देख वह क्रोधित हो गया।
उसने कहा, “तुम्हे शर्म नहीं आती खाना मांगते हुए। तुम जैसे लोगों की मुफ्त में खाने की आदत पड़ गयी है। जाओ, कहीं काम करो। कमाकर खाने की आदत डालो।”
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बीमार व्यक्ति ने उसे अपनी समस्याएं बताने की कोशिश की। लेकिन वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था। कोठी के मालिक ने अपने नौकर को बुलाया। नौकर से उस व्यक्ति को गेट से बाहर निकाल देने को कहकर वह अंदर चला गया।
इस घटना को कई साल बीत गए। एक दिन शहर के किसी दूसरे हिस्से में एक बहुत बड़ी कोठी के के सामने एक भूखा बूढ़ा खाने के लिए आवाज लगा रहा था। कोठी के मालिक ने अपने कमरे की खिड़की से देखा और अपने नौकर को बुलाकर कहा, “देखो एक बूढ़ा व्यक्ति आवाज लगा रहा है। उसे जो भी चाहिए दे दो।”
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नौकर ने बाहर जाकर बूढ़े से पूछा कि उसे क्या चाहिये? उसने उत्तर दिया, “इस समय तो मेरे लिए भोजन ही सबसे बड़ी चीज है। बस मुझे खाना खिला दो।”
नौकर ने उसे बिठाकर खाना खिलाया। उसके जाने के बाद नौकर अपने आंसू पोछते हुए कोठी के अंदर आया। मालिक ने उससे रोने का कारण पूछा तो उसने बताया, “पहले ये बहुत बड़े व्यापारी थे। इनकी कोठी इलाके में सबसे बड़ी थी। मैं इनके यहां ही काम करता था। आज इनकी यह हालत देखकर मेरे आंसू आ गए।”
मालिक बोला, “तूने उसे तो पहचान लिया, लेकिन मुझे नहीं पहचाना। मैं वही बीमार व्यक्ति हूँ, जिसे तूने अपने मालिक के कहने पर बिना खाना दिए भगा दिया था।”
कहानी से सीख – Moral of Story
कहानी तो यहां खत्म हो जाती है। लेकिन यह हमारे लिए एक बड़ा प्रश्न छोड़ जाती है कि सही कौन था? जिसने खाना दिया या जिसने खाना देने की जगह ज्ञान दिया।
वास्तव में सही रास्ता यह नहीं है कि असफलता और संकट के क्षणों में हम इतने अधीर हो जाएं कि अपनी क्षमताओं को ही भूल जाएं। या सफलता और समृद्धि के उन्माद में इतने अहंकारी हो जाएं कि परोपकार के अपने नैतिक कर्तव्य को ही भूल जाएं।सही रास्ता यह है कि जब हम हताश हों तो अपने मनोबल को न गिरने दें और जब उन्नति के शिखर पर हों तब दूसरों को न गिरने दें। सही राह- मोरल स्टोरी हमें यही सिखाती है.
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प्रेरणा दायक कहानी