पितृपक्ष- श्राद्ध विधि 2020 एवं फल
हिन्दू धर्म में न केवल जीवन काल में माता-पिता के सेवा की परंपरा है। बल्कि मृत्यु के उपरांत भी पितृपक्ष में श्राद्ध विधि के द्वारा पितरों के पूजन की व्यवस्था दी गयी है। 2020 में श्राद्ध कब है? पितृ पक्ष कब से शुरू होगा? 2020 में पितृ विसर्जन अमावस्या कब है? श्राद्ध shradh कैसे करते हैं? पितृ पक्ष में श्राद्ध विधि का क्या महत्त्व है ?महालय क्या है ? अगर आपके मन में भी ये प्रश्न हैं तो यह पोस्ट आपके लिए है. पूरी पोस्ट पढने के बाद श्राद्ध या पितृपक्ष के विषय में आपके सारे सवालों के जवाब मिल जायेंगे.
पितरों का महत्व
सनातन धर्म में पितृ कर्म को देवकर्म से भी बढ़कर मान्यता दी गयी है। यह मान्यता है कि पितृगण ही अपने कुल की वृद्धि एवं सुख समृद्धि के लिए देवताओं से सिफारिश करते है। अगर हमारे पितृ प्रसन्न नहीं हैं। तो देवता भी हमसे प्रसन्न नहीं हो सकते।
जिनके पितृ अपने वंशजों से प्रसन्न नहीं होते प्रायः उनकी कुंडली में पितृ दोष होता है। जिसके कारण उनके प्रत्येक कार्य में रुकावट आती है। संतानप्राप्ति में समस्या होती है। घर के लोग रोगी होते हैं।
विशेषकर घर के बड़े लड़के को विभिन्न समस्याएं होती हैं। यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। पुराणों में कहा गया है कि पितर हमारे और देवताओं के बीच सेतु का कार्य करते हैं। इसलिए पितरों को प्रसन्न रखना आवश्यक है।
पितृ पक्ष का महत्व
पितरों की प्रसन्नता के लिए श्राद्ध किया जाता है। वैसे तो प्रत्येक माह की अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है। लेकिन हमारे हिन्दू धर्म में पूरे पन्द्रह दिन के एक पक्ष को पितरों की पूजा अर्चना एवं श्राद्ध के लिए निर्धारित कर दिया गया है।
जिसे पितृ पक्ष- श्राद्ध पक्ष या महालय के नाम से जाना जाता है। जो आश्विन माह की पतिपदा से आश्विन कृष्णपक्ष की अमावस्या तक होता है। गरुण पुराण में कहा गया है कि पितृ पक्ष- श्राद्ध पक्ष में पितृ लोक से पितृ गण पृथ्वी पर अपने वंशजों के घर आते है।
जो व्यक्ति पितृ पक्ष में श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को श्राद्ध के द्वारा संतुष्ट करता है। उसके पितर उसे सुख समृद्धि और वंश वृद्धि का आशीर्वाद देकर जाते हैं।
इसके विपरीत जो व्यक्ति पितृ पक्ष- श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त श्राद्ध नहीं करता। उसके पितर उसे श्राप देते हैं। इसलिए पितृ पक्ष- श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों का श्रद्धापूर्वक श्राद्ध जरूर करना चाहिए।
2020 में श्राद्ध या पितृपक्ष कब हैं ?
सन 2020 में पितृ पक्ष 02 सितम्बर से शुरू होंगे और 17 सितम्बर पितृ विसर्जन अमावस्या (pitru visarjan amavasya) को समाप्त होंगे.
प्रतिपदा का श्राद्ध — 2 सितम्बर 2020
द्वितीया का श्राद्ध 3 सितम्बर 2020
तृतीया के श्राद्ध 4 सितम्बर 2020
चतुर्थी का श्राद्ध 6 सितम्बर 2020
पंचमी का श्राद्ध 7 सितम्बर 2020
षष्ठी का श्राद्ध 8 सितम्बर 2020
सप्तमी का श्राद्ध 9 सितम्बर 2020
अष्टमी का श्राद्ध 10 सितम्बर 2020
नवमी के श्राद्ध 11 सितम्बर 2020 माता, स्त्रियों का श्राद्ध
दशमी का श्राद्ध 12 सितम्बर 2020
एकादशी का श्राद्ध 13 सितम्बर 2020
द्वादशी का श्राद्ध 14 सितम्बर 2020 सन्यासियों का श्राद्ध
त्रयोदशी का श्राद्ध 15 सितम्बर 2020
चतुर्दशी का श्राद्ध 16 सितम्बर 2020 अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध
अमावस्या का श्राद्ध 17 सितम्बर 2020 सर्व पितृ श्राद्ध – पितृ विसर्जन
किसका श्राद्ध कब करें
जिस तिथि में जिनकी मृत्यु हुई हो। पितृ पक्ष की उसी तिथि में उनका श्राद्ध करने चाहिए। जैसे किसी की मृत्यु चतुर्थी तिथि को हुई हो। तो उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की चतुर्थी तिथि को ही करना चाहिए।
यदि किसी पुरुष की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो ऐसे लोगों का श्राद्ध अमावस्या के दिन करना चाहिए। अमावस्या को सबका श्राद्ध किया जा सकता है। इसीलिए इसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।
सभी सुहागिन मृत्यु को प्राप्त हुई महिलाओं का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है। सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी तिथि को करने की परंपरा है। अकाल मृत्यु, जलने से मृत्यु, किसी शस्त्र के द्वारा जिनकी मृत्यु होती है। उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।
पितृ पक्ष में श्राद्ध की विधि
श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा से है। इसलिए श्राद्ध में मुख्य रूप से श्रद्धा का होना आवश्यक है। गरुण पुराण में मदालसा अपने पुत्र अलर्क को श्राद्ध विधि का वर्णन करती हैं। जिसे संछिप्त रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
श्राद्ध से एक दिन पूर्व श्रेष्ठ द्विजों को आमंत्रित करने चाहिए। एक दिन पूर्व निमंत्रण भेजने का कारण यह है कि श्राद्ध में सम्मिलित होने वाले ब्राम्हणों को संयमित एवं ब्रम्हचर्य का पालन करना आवश्यक है।
श्राद्ध में विषम संख्या में ब्राम्हणों को भोजन कराना चाहिए। घर पर आए हुए ब्राम्हणों का स्वागतपूर्वक पूजन करके आचमन कराके उन्हें कुश के आसन पर बिठाए। उसके बाद उनकी आज्ञा लेकर मंत्रोच्चार पूर्वक पितरों का आवाहन करे।
अपसव्य (जनेऊ को दाएं कंधे पर डालकर) होकर पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल मिश्रित जल से अर्घ्य निवेदित करे। तदनंतर ब्राम्हणों की आज्ञा से अग्निकार्य करे। नमक और व्यंजन से रहित अन्न लेकर विधिपूर्वक अग्नि में आहुति दे।
“अग्नये कव्यवाहनाय स्वाहा” इस मंत्र से पहली आहुति दे। “सोमाय पितृमते स्वाहा” इस मंत्र से दूसरी और “यमाय प्रेतपतये स्वाहा” इस मंत्र से तीसरी आहुति अग्नि में डाले।
आहुति से बचे हुए अन्न को ब्राम्हणों के पात्र में परोसे। फिर ब्राम्हणों के पात्र में और अन्न डालकर कोमल वचनों से उनसे कहे- “आप लोग सुखपूर्वक भोजन करें।” ब्राम्हण शांतचित्त और मौन होकर भोजन करें।
जब ब्राम्हण लोग पूर्ण भोजन कर लें तो उनसे पूछे- ‘क्या आप लोग भलीभांति तृप्त हो गए हैं?’ इसके उत्तर में ब्राम्हण कहें- ‘हाँ! हम पूर्ण रूप से तृप्त हो गए।’ फिर पृथ्वी पर सब ओर अन्न बिखेरे।
फिर ब्राम्हणों की आज्ञा लेकर मन, वाणी और शरीर को संयम में रखकर तिलसहित पूरे अन्न से पितरों के लिए अलग-अलग पिंड दे। यह पिंडदान कुशों पर करे। उसके बाद पितृ तीर्थ से पिंडों पर जल दे।
अंत में यथाशक्ति ब्राम्हणों को दक्षिणा देकर उनसे कहे- सुस्वधा अस्तु अर्थात यह श्राद्धकर्म भलीभांति सम्पन्न हो।
श्राद्ध के विशेष नियम – पितृपक्ष- श्राद्ध विधि
1- श्राद्ध में पुत्री का पुत्र, दोपहर का समय और तिल को अत्यंत पवित्र माना गया है।
2- श्राद्ध में लोहे के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
3- हविष्यान्न से पितरों को एक माह, गाय के दूध से बनी खीर से एक वर्ष और गया श्राद्ध से अनंतकाल तक तृप्ति होती है।
4- लहसुन, गाजर, मूली, प्याज, सत्तू, रसहीन, रंगहीन वस्तुएं, लौकी, भोजन के साथ अलग से नमक श्राद्ध में वर्जित है।
5- ब्याज का धन, अन्याय से कमाया धन भी श्राद्धकर्म में वर्जित है।
6- रोगी, चांडाल, नग्न, पातकी, कुत्ता, मुर्गा, सुअर ये अपनी दृष्टि से श्राद्ध को दूषित कर देते हैं। इसलिए ओट करके श्राद्ध करे।
7- पितरों को उनके नाम और गोत्र का उच्चारण करके जो भी श्रद्धापूर्वक दिया जाता है। वे जिस लोक या जिस योनि में होते हैं। वह उसके अनुरूप होकर उन्हें मिलता है।
पितरो के महत्व को बताती प्रजापति रुचि की कथा
पितृपक्ष- श्राद्ध विधि के अंतर्गत गरुण पुराण की एक कथा का वर्णन इस प्रकार है। पूर्वकाल में एक ऋषि हुए जिनका नाम रुचि था। वे बड़े ही त्यागी थे। उन्होंने न तो आश्रम बनाया न ही विवाह किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने किसी भी वस्तु का संग्रह नहीं किया। वे केवल ईश्वर आराधना में ही लिप्त रहते थे।
एक बार उनके पितृ गणों ने आकर उनसे कहा “पुत्र! गृहस्थ आश्रम ही समस्त पुण्यकर्मों का आधार है। गृहस्थ व्यक्ति स्वाहा के उच्चारण से देवताओं को, स्वधा के उच्चारण से पितरों को और अन्नदान से सभी प्राणियों और अतिथियों को तृप्त करता है।”
बेटा! गृहस्थ आश्रम का पालन न करने के कारण तुम्हें इस जीवन में बहुत कष्ट भोगने पड़ेंगे। साथ ही मृत्यु के बाद दूसरे जन्मों में भी तुम्हें कष्ट ही उठाने होंगे। साथ ही हमें भी तुम्हारे कारण अतृप्त रहना पड़ेगा।”
तब महर्षि रुचि ने गृहस्थ धर्म के पालन हेतु योग्य कन्या की प्राप्ति के लिए ब्रम्हाजी की सौ वर्षों तक घोर तपस्या की। ब्रम्हाजी ने प्रकट होकर स्त्री प्राप्ति के निमित्त पितरों की आराधना करने की सलाह दी।
महर्षि रुचि की तपस्या से प्रसन्न होकर पितर प्रकट हुए। प्रकट हुए पितरों का महर्षि रुचि ने एक स्तोत्र के द्वारा पूजन किया। जिससे प्रसन्न होकर पितरों ने उन्हें उत्तम स्त्री प्राप्त होने का वरदान दिया। साथ ही उन्हें प्रजापति बनने का भी आशीर्वाद दिया। पितरों ने रुचि की संतान को मनु का पद प्राप्त होने का भी वरदान दिया।
चमत्कारी पितृ स्तोत्र
जिस स्तोत्र से उन्होंने पितरों को प्रसन्न किया था। उसकी प्रसंशा में पितृगणों ने कहा, ” जो मनुष्य इस स्तोत्र से भक्तिपूर्वक हमारी स्तुति करेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगीं। वह धन, समृद्धि, पुत्र पौत्र, आरोग्य, ऐश्वर्य प्राप्त करेगा।
जो श्राद्ध में भोजन करने वाले ब्राम्हणों के सामने खड़ा होकर इस स्तोत्र का पाठ करेगा। उसके यहां हम निश्चित रूप से उपस्थित होंगे। उसका श्राद्धकर्म चाहे दूषित हो, अपूर्ण हो, या बिना श्रद्धा के किया गया हो। हम उसे ग्रहण करते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
यह स्तोत्र जहां श्राद्ध में पढ़ा जाता है। वहां हम लोगों को बारह वर्षों तक संतुष्टि बनी रहती है। ऐसा चमत्कारी स्तोत्र यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। लेखन में त्रुटि से बचने के लिये गरुण पुराण के इस स्तोत्र को स्कैन करके दिया जा रहा है-


पितृपक्ष में श्राद्ध का फल- कहानी
श्राद्ध का महत्व बताता एक और प्रसंग प्रस्तुत है- एक महात्मा बहुत सिद्ध और ज्ञानी थे। एक दिन दोपहर के समय उनका एक शिष्य उनके पास आकर बोला, “गुरुजी! आज सुबह से मुझे कटहल के पकवान की गंध आ रही है। मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैंने खुद कटहल का सेवन किया है। ऐसी तृप्ति महसूस हो रही है। इसका कारण क्या है?”
महात्मा जी ने ध्यान लगाकर देखा और शिष्य से कहा, “चलो हम लोग नदी के उस पार सैर करके आते हैं।” दोनों लोग नाव से नदी के उस पार गए। महात्मा जी उसे लेकर पास के गांव पहुंचे।
वहां उन्होंने देखा एक व्यक्ति कटहल के पकवान से अपने पिता का श्राद्ध कर रहा था। महात्माजी ने शिष्य को बताया कि यह तुम्हारे पूर्वजन्म का पुत्र है। जो तुम्हारा श्राद्ध कर रहा है। तुम्हे कटहल बहुत प्रिय था। इसलिए यह कटहल के पकवानों से तुम्हारा श्राद्ध कर रहा है।
इस कथा से सिद्ध होता है कि पितृपक्ष- श्राद्ध विधि का नियम से पालन करने का फल मिलता है। चाहे मनुष्य किसी भी योनि में हो। श्राद्ध का भोजन उसकी योनि के अनुरूप होकर उसे प्राप्त होता है।
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उपसंहार
सुख, समृद्धि, संतान, आरोग्य की इच्छा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पितृ पक्ष के पखवारे में अपने पितरों का श्राद्ध विधि से अवश्य करना चाहिए. पितरों के प्रसन्न होने से कई समस्याएँ दूर होती हैं.
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