दोस्तों! आज हम आपके लिए 10+ hindi moral stories 2021 लेकर आये हैं। जिनमें आपके लिए 10 से अधिक नई कहानियों का संकलन किया गया है। ये moral stories हमें रोचक ढंग से moral values सिखाती हैं। ये कहानियां kids के लिए बहुत ही उपयोगी हैं। क्योंकि ये सरल और interesting तरीके से जीवन के हर पहलू की शिक्षा देती हैं। इस पेज पर कहानियाँ लगातार अपडेट की जाती हैं।
लक्ष्मी का वास# hindi moral stories
एक बहुत धनी सेठ थे। एक रात उन्होंने स्वप्न देखा कि लक्ष्मीजी उनसे कह रही हैं, “सेठ! मैंने बहुत दिनों तक तुम्हारे यहां निवास किया है। अब तुम्हारा पुण्य समाप्त हो गया है। अब थोड़े दिनों में मैं तुम्हारे यहां से चली जाउंगी। मुझसे जो भी माँगना हो मांग लो।”
सेठजी बोले, “मैं अपने परिवार से सलाह लेकर आपको कल बताऊंगा।” सुबह जब सेठ की नींद खुली तो उसने पूरे परिवार को सारी बात बताई। क्या मांगा जाय? इसके बारे में सबके अलग अलग विचार थे। कोई कह रहा था कि इतनी धन दौलत मांग लो कि पूरा जीवन आराम से बीत जाए।
तो कोई कह रहा था कि जीवन भर के लिए अन्न मांग लो। किसी ने सलाह दी कि ढेरों जमीन मांग ली जाय। जिसमें खेती करके हम अपना जीवन आराम से काट लेंगे। सेठ की छोटी बहू बहुत बुद्धिमान थी। वह चुपचाप सबकी बातें सुन रही थी।
अंततः वह बोली, “पिताजी! मेरे हिसाब से धन दौलत और खेती बाड़ी मांगना ठीक नहीं है। क्योंकि यह सब लक्ष्मी जी के साथ ही चला जायेगा। आखिर ये सब लक्ष्मी का ही हिस्सा है। हमें इनकी बजाय परस्पर प्रेम का वरदान मांगना चाहिये।”
“अगर परिवार के सभी सदस्यों में प्रेम बना रहेगा तो बड़ी से बड़ी मुसीबत भी आराम से कट जाएगी। सब मिलकर सामना करेंगे तो सारे संकट दूर हो जाएंगे।”
सेठ को छोटी बहू की बात बहुत पसंद आई। दूसरे दिन स्वप्न में उसने लक्ष्मी जी से परिवार का प्रेम मांगा। लक्ष्मीजी बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने कहा, “जिस परिवार के सदस्यों में आपस में प्रेम होता है। कभी झगड़ा नहीं होता, वहां से मैं कभी जा ही नहीं सकती।
इस प्रकार सेठ के घर में लक्ष्मी का वास सदैव के लिए हो गया।
सीख- Moral of Story
हमें परस्पर प्रेमपूर्वक रहना चाहिए। जिन घरों में सदस्यों में प्रेम नहीं होता। उन्हें देवता भी पसंद नहीं करते। एक बार स्वयं लक्ष्मीजी ने इंद्र को बताया था कि वे कहां निवास करती हैं–
गुरवो यत्र पूज्यन्ते, यत्रावाहनम सुसंस्कृतम।
अदन्तकलहो यत्र, तत्र शक्र वसाम्यहम।।
अर्थात जहां बड़ों और गुरुओं सम्मान होता है। जहां सभ्यतापूर्वक बात की जाती है। जहां कलह नहीं होती। हे इन्द्र! मैं वहां निवास करती हूँ।
दुष्टों से दूरी भली# hindi stories with moral
एक बार एक दुष्ट बाघ के गले में हड्डी फंस गई। अब न तो वह ठीक से सांस ले पा रहा था। न ही बोल पा रहा था। बहुत प्रयास करने के बाद भी वह हड्डी नहीं निकाल पाया। वह इस तकलीफ से निजात पाने के लिए मदद ढूंढने लगा।
वह सभी जानवरों के पास गया। सबसे गले में फंसी हड्डी निकालने को कहा। साथ ही उसने यह प्रलोभन भी दिया कि जो उसके गले में फंसी हड्डी निकालेगा। उसे वह ईनाम भी देगा।
जंगल के सभी जानवर उसके दुष्ट स्वभाव से परिचित थे। इसलिये किसी ने उसकी मदद नहीं की। बाघ निराश हो चुका था। तभी उसे एक बगुला दिखाई दिया। बगुले को देखकर उसके मन में आशा जगी।
बगुले के पास जाकर उसने कहा, “मेरे गले में एक हड्डी फंस गई है। जिसके कारण मैं बहुत तकलीफ में हूँ। तुम्हारी चोंच लंबी है। इससे तुम मेरे गले में फंसी हड्डी निकाल दो। मैं तुम्हें ईनाम दूंगा।
बगुला ईनाम के लालच में तैयार हो गया। उसने अपनी लम्बी चोंच बाघ के गले में डालकर हड्डी निकाल दी। बाघ की तकलीफ दूर हो गयी। वह जोर से दहाड़ा और जाने लगा। ईनाम के बारे में कोई बात न करते देख बगुले ने ईनाम के बारे में पूछा।
इस पर बाघ बोला, “तू पागल है क्या? तेरी चोंच मेरे मुंह में जाकर भी सही सलामत वापस आ गयी। यह क्या किसी ईनाम से कम है? तुझे देखकर मेरी भूख फिर से जाग रही है। भाग जा, नहीं तो मैं तुझे भी खा जाऊंगा।
यह सुनकर बगुला मन मसोसकर रह गया और वहां से उड़ जाने में ही अपनी भलाई समझी।
Moral of Story- सीख
दुष्टों की संगति से हमेशा बचना चाहिए। क्योंकि ऐसे लोग कभी किसी का भला नहीं कर सकते।
बिन मांगी सीख
एक जंगल में एक विशाल बरगद का पेड़ था। जिसपर बया चिड़िया का एक बहुत ही सुंदर घोसला था। घोसले में चिड़िया के अंडे और कई बच्चे थे। घोसले की सुरक्षा में वे आनंदपूर्वक हर मौसम का आनन्द लेते थे।
ठंडी के मौसम में एक दिन तेज़ बारिश हो रही थी। चिड़िया और उसके बच्चे घोसले में बैठे बारिश का मजा ले रहे थे। तभी कहीं से भीगता हुआ एक बंदर बारिश से बचने के लिए उसी पेड़ पर आ गया।
बंदर पूरी तरह भीग चुका था और ठंड से कांप रहा था। उसकी हालत देखकर बया चिड़िया बोली, “भैया! सारे पशु पक्षी अपने लिए एक सुरक्षित ठिकाना बनाते हैं। शायद तुमने नहीं बनाया है। इसीलिए इस मौसम में तुम्हें परेशान होना पड़ रहा है।”
बंदर सचमुच ठंड और बारिश से परेशान था। वह कुछ नहीं बोला। उसे चुप देखकर चिड़िया फिर बोली, “मुझे देखो! मैंने अपने और बच्चों के लिए कितना सुंदर घोसला बनाया है। हम सब इसमें हर मौसम में आनंद से रहते हैं।”
“तुम्हारे तो हाथ पैर मनुष्यों जैसे हैं। दिमाग भी वैसा होगा। तुम चाहते तो अपने लिए एक सुंदर घर बना सकते थे। लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया। उसी का फल तुम्हें अब भुगतना पड़ रहा है।”
चिड़िया की बातें सुनकर पहले से परेशान बन्दर को गुस्सा आ गया। उसने गुस्से में चिड़िया का घोसला तोड़कर जमीन पर फेंक दिया। उसके बच्चे और अंडे जमीन पर गिरकर बारिश में भीगने लगे।
चिड़िया रोने लगी। उसे सबक मिल गया कि बिना मांगे किसी को सलाह नहीं देनी चाहिए। उसी पेड़ के नीचे बारिश से बचने के लिए एक आदमी भी खड़ा था। इस घटनाक्रम को देखकर उसने कहा–सीख वाको दीजिये, जाको सीख सुहाय। सीख न दीजै बानरा, घर बैया को जाय।।
Moral of Story- सीख
सलाह हमेशा उसे देना चाहिए जो सलाह मांगे। उसे कभी भी सलाह नहीं देनी चाहिए जो सुनना न चाहता हो।
निंदा का फल# story for kids
एक बार अपना राजा चुनने के लिए पक्षियों की सभा हुई। उसमें जंगल के सभी पक्षी एकत्र हुए। सबके आ जाने पर सबसे बुजुर्ग एक चील ने उठकर सभा में कहा, “इंसानों ने अपने बीच में से एक व्यक्ति को राजा चुन लिया है। जो उनकी भलाई के लिए सभी काम करता है।”
“जंगल के जानवरों ने भी शेर को अपना राजा चुन लिया है। केवल हम पक्षियों में ही राजा का चुनाव नहीं हुआ है। अगर हम भी अपने बीच से किसी पक्षी को राजा चुन लेते हैं तो यह बहुत फायदेमंद होगा।”
“किसी भी विवाद अथवा सार्वजनिक महत्व के कार्य में राजा का निर्णय कई समस्याओं से हमें बचाएगा। मैं राजा बनाने के लिए उल्लू का नाम प्रस्तावित करता हूँ। क्योंकि हम लोग दिन में तो अपनी देखभाल कर लेते हैं। लेकिन रात में आने वाले खतरों से केवल उल्लू ही निपट सकता है। अगर किसी को कोई आपत्ति हो तो बताये।”
“यह सुनकर सभा में बैठा एक कौआ उठकर बोला, “मुझे इस उल्लू का न तो स्वभाव पसंद है न ही इसका मुख। इस प्रसन्नता के अवसर पर भी यह किस प्रकार मुंह बनाकर बैठा है? अगर कोई समस्या आएगी तो इसका मुख कैसा होगा?”
“यह राजा मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है।” बार बार यह कहता हुआ कौवा आकाश में उड़ गया। उधर कौवे की बात सुनकर क्रोधवश उल्लू भी उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे उड़ चला।
इधर सभी पक्षियों ने सर्वसम्मति से गरुण को अपना राजा चुन लिया। राजा का चुनाव तो खत्म हो गया। लेकिन कौवे द्वारा की गई निंदा के कारण उल्लू और कौवे में आज भी दुश्मनी है।
Moral of Story- सीख
निंदा करना एक बहुत बड़ा दुर्गुण है। अगर किसी की कमियों को बताना भी हो। तो उसे अकेले में बताना चाहिए। सार्वजनिक रूप से की गई निंदा दुश्मनी का कारण बनती है।
तिनके का महत्व
कोमल, हरी भरी घास से भरा एक मैदान था। उन्हीं हरी घास के बीच में एक सूखा तिनका भी पड़ा था। घास ने तिनके को देखकर हंसते हुए कहा, “हरी भरी कोमल घास के बीच में तुम क्या कर रहे हो?
“तुम तो सूखे और मुरझाए हुए हो। न तो तुम देखने में सुंदर हो, न ही किसी काम के ही हो। तुम्हारा तो जीवन ही व्यर्थ है। घास की बात सुनकर तिनके को बहुत दुख हुआ। उसने सोचा “सच ही तो है। मैं सचमुच किसी काम का नहीं हूँ।”
तभी तेज़ हवा चलने लगी। हवा के जोर से घास जोर जोर से हिलने लगी। घास पर पड़ा तिनका तेज़ हवा से उड़कर पास की पानी की खुली टंकी में जा गिरा। उस टंकी के पानी में बड़ी देर से एक चींटी मृत्यु से संघर्ष कर रही थी।
तिनका जैसे ही बहते हुए उसके पास पहुंचा। वह जल्दी से तिनके पर चढ़ गई। बहते बहते तिनका टंकी के किनारे पहुंच गया। चींटी टंकी की दीवार पर चढ़कर बाहर निकल गयी। बाहर पहुंचकर उसने तिनके को धन्यवाद दिया।
तिनका बोला, “धन्यवाद तो मुझे तुम्हारा करना चाहिये। तुम्हारे कारण आज मुझे अपना महत्व पता चल गया। मुझे आज ही पता चला कि इस धरती पर मौजूद हर वस्तु का महत्व है।
Moral of Story- सीख
यह मोरल स्टोरी हमें सिखाती है कि हर छोटे बड़े जीव का इस पृथ्वी पर अपना अलग महत्व है। निराशा के समय में भी हमें अपना आत्मविश्वास बनाये रखना चाहिए।
लालच का परिणाम
एक मुर्गे और एक कुत्ते में बड़ी दोस्ती थी। दोनों साथ रहते, साथ ही खाते पीते और घूमते। एक दिन दोनों ने जंगल घूमने का कार्यक्रम बनाया। दोनों मित्र सुबह सुबह जंगल की सैर पर निकल पड़े।
दोनों जंगल के सुंदर दृश्य देखकर प्रसन्न होते। नए नए जानवरों से बातें करते। भूख लगती तो जंगली फल फूल खाकर अपनी भूख मिटाते। इस तरह घूमते घूमते रात हो गयी।
दोनों मित्र आराम करने के लिए एक बड़े से बरगद के पेड़ के पास पहुंचे। मुर्गा पेड़ के ऊपर सो गया और कुत्ता पेड़ की जड़ में बने बड़े से कोटर में।
सुबह होते ही मुर्गे ने अपनी आदत के अनुसार बांग दी। वहीं पास में एक सियार भी रहता था। मुर्गे की बांग सुनकर उसने सोचा, “अरे वाह! आज तो मुर्गे का नर्म मांस खाने का मौका मिलेगा। मुझे किसी प्रकार इसे पेड़ से नीचे उतारना चाहिए।”
यह सोचकर सियार पेड़ के पास जाकर मुर्गे से बोला, “अरे मुर्गे भाई, लगता है कि तुम इस जंगल में नए हो। मैं भी यहां नया ही हूँ। हम दोनों दोस्त बन सकते हैं। तुम नीचे आ जाओ। हम लोग ढेर सारी बातें करेंगे।”
मुर्गा सियार की चालाकी समझ गया। उसने मीठे स्वर में कहा, “क्यों नहीं भाई! हम बिल्कुल दोस्त बन सकते हैं। तुम जरा पास तो आओ। फिर मैं नीचे उतरता हूँ।”
शिकार की लालच में सियार नीचे कोटर में बैठे कुत्ते को नहीं देख पाया। जैसे ही वह पेड़ के नीचे आया, कुत्ते ने उस पर हमला करके उसे खत्म कर दिया। लालच के कारण सियार अपनी जान गवां बैठा।
Moral of Story- सीख
लालच कभी नहीं करना चाहिये। लालच विवेक को अंधा कर देता है। जिसके कारण मनुष्य लालच के पीछे छिपे खतरे को नहीं देख पाता।
बुद्धि की जीत
एक जंगल के एक विशाल पेड़ पर एक कौवा अपनी पत्नी सहित रहता था। उस पेड़ पर हर प्रकार की सुख सुविधा थी। केवल एक ही कष्ट था कि उस पेड़ के एक खोखले भाग में एक भयंकर काला सर्प भी रहता था। जब कौवे की पत्नी अंडे देती तो वह उन्हें खा जाता था।
इससे दोनों बहुत दुखी रहते थे। एक दिन वे अपने मित्र सियार के यहां मिलने गए। बातों बातों में उन्होंने सियार को अपनी कहानी बताई। उनकी दुखभरी दास्तान सुनकर सियार भी बहुत दुखी हुआ।
उसने कहा, “देखो भाई! ताकत के बल पर हम उस सर्प से नहीं जीत सकते। लेकिन बुद्धि और युक्ति से उसे हराया जा सकता है।” यह सुनकर कौवे को उम्मीद जगी। उसने कहा, “भाई! कोई उपाय बताओ जिससे हमारा दुख दूर हो जाये।”
थोड़ी देर सोचने के बाद सियार बोला, “तुम्हे एक काम करना होगा। तुम राजधानी जाओ और राजमहल में राजा या रानियों में से किसी का हार चुराकर पहरेदारों को दिखाते हुए उस सांप के कोटर में डाल दो। बाकी काम राजा के पहरेदार कर लेंगे।”
यह सुनकर दोनों पति पत्नी राजधानी की ओर उड़ चले। वहां राजमहल में रानियां शाही तालाब में जलक्रीड़ा कर रही थीं। उनके आभूषण किनारे पर रखे थे। पहरेदार उनकी सुरक्षा कर रहे थे।
मौका देखकर कौवे की पत्नी ने झपट्टा मारकर रानी का हार उठाया और जंगल की ओर उड़ चली। पहरेदार शोर मचाते हुए उसके पीछे भागे। जंगल में पहुंचकर उसने हार सांप के कोटर में डाल दिया।
पीछे आ रहे पहरेदारों ने उसे कोटर में हार डालते हुए देख लिया। जब वे हार निकालने पहुंचे तो देखा कि एक सांप फन उठाये हुए खड़ा है। पहरेदारों ने उसे मार डाला और रानी का हार निकाल लिया।
इस प्रकार बुद्धि के प्रयोग से काकदम्पति वर्षों से चली आ रही समस्या से मुक्त हो गए।
Moral of Story- सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि बल से अधिक बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए। बुद्धि के प्रयोग से बड़े बड़े बलवानों को भी पछाड़ा जा सकता है।
समूह की शक्ति
नंदनवन के एक वृक्ष पर गौरैया का एक जोड़ा रहता था। उस वृक्ष पर अनेक पक्षी रहते थे। गौरैया ने अंडे दिए थे। गौरैया का जोड़ा बड़ी बेसब्री से उनमें से बच्चे निकलने का इन्तजार कर रहा था।
उसी जंगल में एक दुष्ट हाथी रहता था। उसे अपनी ताकत का बड़ा घमंड था। यहां तक कि जंगल का राजा शेर भी उससे लड़ने से बचता था। उसे जंगल के पशु पक्षियों को सताने में बड़ा मजा आता था।
वह जानवरों को अपनी सूड़ में लपेटकर दूर फेंक देता था। पक्षियों के घोसले तोड़ देता था। यहां तक कि पेड़ की डाल पर बैठे पक्षियों को देखकर वह डाल ही तोड़ देता था।
इसी तरह एक दिन उसने गौरैया दंपति को पेड़ की डाल पर प्रेमपूर्वक बैठे देखा तो उससे रहा नहीं गया। उसने अपनी सूड़ में फंसा कर वह डाल ही तोड़ डाली। गौरैया का जोड़ा तो किसी प्रकार बच गया। लेकिन सारे अंडे जमीन पर गिरकर टूट गए।
गौरैया दंपति को अपार दुख हुआ। दुख और क्रोध से गौरैया रोने लगी। उसी वृक्ष पर एक कठफोड़वा भी रहता था। उससे गौरैया का दुख नहीं देखा गया। वह उसे सांत्वना देने लगा।
तब गौरैया बोली, “इस दुष्ट हाथी ने हमारा घर उजाड़ दिया। साथ ही हमारे बच्चों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया। जब तक इसे सजा नहीं मिलेगी। मेरे मन को चैन नहीं मिलेगा।”
कठफोड़वा ने जवाब दिया, “हम बहुत छोटे और शक्तिहीन हैं। अकेले तो हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। लेकिन साथ मिलकर हम उसे सजा देने का प्रयास कर सकते हैं। एक मक्खी मेरी मित्र है। मैं उससे बात करता हूँ वह हमारी सहायता अवश्य करेगी।
कठफोड़वा, गौरैया जोड़े के साथ मक्खी के पास गया। सारी बात सुनकर मक्खी ने कहा, “मैं तुम्हारी सहायता के लिए तैयार हूं। लेकिन मेरे पास कोई योजना नहीं है। एक मेंढक मेरा मित्र है। वह बहुत बुद्धिमान है। हम उसके पास चलते हैं। वह जरूर कोई न कोई उपाय करेगा।”
सब लोग मेंढक के पास पहुंचे। उसने सारी बात सुनी और बोला, “यह सच है कि वह हाथी बहुत ताकतवर है। जंगल का राजा भी उससे भिड़ने में संकोच करता है। लेकिन समूह में शक्ति होती है। साथ मिलकर बड़े से बड़े शक्तिशाली को भी हराया जा सकता है। मेरे पास एक योजना है। अगर हम उसके अनुसार काम करें तो हम उसे दंड दे सकते हैं।
दूसरे दिन जब हाथी एक पेड़ के नीचे आराम कर रहा था। तभी योजनानुसार मक्खी उसके कान के पास जाकर मधुर स्वर में गीत गाने लगी। मदमस्त होकर हाथी ने अपनी आंखें बंद कर ली।
कठफोड़वा इसी के इंतजार में था। उसने अपनी नुकीली चोंच से हाथी की दोनों आंखें फोड़ दीं। हाथी अंधा हो गया। उसे प्यास लगी तो वह इधर उधर पानी तलाश करने लगा। इस समय मेंढक एक गहरे सूखे गड्ढे के पास बैठकर टर्र टर्र करने लगा।
हाथी को लगा कि उस जगह तालाब है। वह पानी पीने के लिए आगे बढ़ा और गड्ढे में गिर गया। गड्ढा इतना गहरा था कि हाथी उसमें से निकल नहीं पाया। जिसके कारण भूख प्यास से उसकी मृत्यु हो गयी।
इस तरह सामूहिक प्रयास से छोटे छोटे जीवों ने विशालकाय हाथी को खत्म करके उसे सजा दे दी।
Moral of Story – सीख
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि समूह में शक्ति होती है। सामूहिक प्रयास से असम्भव दिखने वाले कार्य को भी पूर्ण किया जा सकता है। कहा भी गया है– संघे शक्ति कलियुगे।
देने का आनंद
एक बार एक गुरु शिष्य कहीं टहलते हुए जा रहे थे। रास्ते में उन्हें सड़क किनारे एक जोड़ी पुराने जूते रखे मिले। उन्होंने इधर उधर देखा तो थोड़ी दूर पर एक किसान खेतों में काम कर रहा था। वे जूते उसी के थे।
यह देखकर शिष्य को शरारत सूझी। उसने कहा, “गुरुजी! क्यों न हम ये जूते कहीं छुपा दें। फिर जब किसान यहां आएगा तो बड़ा मजा आएगा। गुरुजी ने कहा, “किसी को परेशान करना अच्छी बात नहीं है।”
“बल्कि जूते छुपाने की बजाय हम दोनोँ जूतों में एक एक चांदी के सिक्के डाल देते हैं। फिर पास की झाड़ियों में छुपकर देखते हैं कि क्या होता है?”
जूतों में सिक्के डालकर दोनों झाड़ियों में छिप गए। थोड़ी देर बाद किसान वहां आया। जैसे ही उसने एक जूते में पैर डाला, उसे जूते में कुछ होने का अहसास हुआ। उसने देखा तो चांदी का एक सिक्का जूते में था। किसान ने आश्चर्य से इधर उधर देखा। लेकिन उसे कोई नहीं दिखाई दिया।
उसने सिक्का जेब में रख लिया। फिर उसने दूसरे जूते में पैर डाला। उसमें भी एक सिक्का निकला। किसान भावुक हो उठा। उसने दोनो हाथ ऊपर उठाकर ईश्वर से कहा, “हे भगवान! तू बड़ा दयालु है। आज मेरी बीमार पत्नी की दवा और बच्चों के खाने का इंतजाम तूने कर दिया। आज मेरा विश्वास दृढ़ हो गया कि तू सबका खयाल रखता है।”
यह कहकर अपने आंसू पोंछता हुआ किसान घर चला गया। यह नजारा देखकर गुरु ने अपने शिष्य से पूछा, “अब बताओ, इसमें ज्यादा आनंद आया या तुम्हारे जूते छिपाने में ज्यादा मजा आता?”
शिष्य ने जवाब दिया, “आज आपने मुझे जीवन की सच्ची सीख दी है। जो आनंद देने में है, वह किसी और चीज में नहीं।”
Moral of Story – सीख
किसी जरूरतमंद को कुछ दे देने या उसकी मदद करने से बढ़कर कोई और पुण्यकार्य नहीं है। इसलिए हमें जरूरतमंद लोगों की हमेशा मदद करनी चाहिए।
सत्य की विजय
शहर के मुख्य चौराहे पर एक लड़का तरबूज और दूसरा ककड़ी की दुकान लगाकर बैठा था। उधर से गुजरने वाला एक व्यक्ति रुककर तरबूज की दुकान पर गया। एक तरबूज उठाकर वहां मौजूद लड़के से उसने पूछा, “यह तरबूज कैसा है?”
लड़के ने उत्तर दिया, “यह तो अंदर से सड़ा है, श्रीमान। आप दूसरा ले लीजिए।” व्यक्ति ने कहा कि जब एक सड़ा है तो और भी सड़े होंगे। वह बिना तरबूज लिए ही आगे बढ़ गया। ककड़ी वाले लड़के की दुकान पर जाकर उसने पूछा कि ककड़ी कैसी है?
ककड़ी वाले लड़के ने उत्तर दिया, “एकदम ताजी और ठंडी है, श्रीमान।” उस व्यक्ति ने ककड़ी खरीदी और चला गया। ग्राहक के जाने के बाद ककड़ी वाले लड़के ने तरबूज वाले से कहा, “तू बहुत बड़ा मूर्ख है। कोई अपने सामान को भी खराब बताता है भला। इस तरह तो तू कुछ भी नहीं बेच पायेगा।”
“मुझे देख, मैंने तीन दिन की बासी ककड़ी ताजी बताकर बेंच दी। ग्राहक भी खुशी खुशी ले गया। इस पर तरबूज वाला लड़का बोला, “चाहे मेरा माल बिके या नहीं। मैं झूठ नहीं बोलूंगा। मैं झूठ बोलकर किसीको ठगूंगा नहीं। सत्य की हमेशा विजय होती है। इसी सच्चाई के दम पर एक दिन मेरा माल बिकेगा।”
दूसरे दिन ककड़ी लेने वाला ग्राहक वापस आया। बासी ककड़ी देने के लिए उसने ककड़ी बेचने वाले लड़के को खूब फटकार लगाई। उस दिन वह तरबूज लेकर गया। ईमानदारी और सच्चाई के कारण लड़के के तरबूज की बिक्री बढ़ने लगी।
धीरे धीरे उसकी ख्याति पूरे शहर में फैल गयी। शहर के दूसरे किनारे से भी लोग उसकी दुकान से तरबूज लेने आने लगे। क्योंकि सबको विश्वास था कि लड़का झूठ नहीं बोलता। इसका माल अच्छा ही होगा।
इस प्रकार धीरे धीरे लड़का उस शहर का एक प्रसिद्ध व्यवसायी बन गया। यह सब सच्चाई और ईमानदारी के कारण हुआ।
Moral of Story – सीख
यह कहानी हमें बताती है कि सच्चाई और ईमानदारी से किया गया काम जरूर सफल होता है।
नजरिया
एक बार एक अमीर व्यक्ति अपने लड़के को गांव ले गया। वह अपने लड़के को यह दिखाना चाहता था कि वे लोग कितने अमीर हैं और कितना सुख सुविधापूर्ण जीवन जीते हैं? जबकि गांव के लोग कितने गरीब हैं?
गांव पहुंचकर वे एक किसान के यहां दो दिन रुके। वापस लौटते समय पिता ने अपने पुत्र से कहा, “तुमने अपने और गांव के जीवन में अंतर देखा?” पुत्र ने उत्तर दिया, “हाँ पिताजी, हमारे पास एक कुत्ता है। जबकि उनके पास चार कुत्ते हैं।”
“हम लोग भोजन खरीदकर खाते हैं। जबकि वे अपना भोजन खुद उगाते हैं। हमारे यहां रात में केवल कुछ लाइटें जलती हैं। जबकि उनके यहां अरबों तारे रोशनी करते हैं। हमारे यहां नहाने के लिए एक छोटा सा स्वीमिंगपूल है। जबकि उनके यहां पूरी नदी है”
“हमारे पास टहलने और खेलने के लिए एक छोटा सा गार्डन है। लेकिन उनके पास बड़े बड़े बगीचे और हरे भरे मैदान हैं। हमारे परिवार छोटा सा है। जबकि उनके यहां पूरा गांव ही उनका परिवार है।”
“पिताजी! आपका बहुत बहुत धन्यवाद। यह बताने के लिए कि हम लोग कितने गरीब हैं।” बेटे की बात सुनकर पिता से कुछ बोलते नहीं बना।
Moral of Story -सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी चीज को देखने का हमारा नजरिया ही उसे अच्छा या बुरा बनाता है। इसलिए हमें सदैव अपना नजरिया सकारात्मक रखना चाहिए।