चैत्र नवरात्रि 2021 (navratri 2020) का पर्व आने वाला है। ऐसे में मैं आज आप सब के लिए navratri 2021- व्रत एवं पूजन विधि नामक पोस्ट लेकर आया हूँ। जिसमें नवरात्रि व्रत कैसे रहना चाहिए? नवरात्रि में पूजा कैसे करते हैं? नवरात्रि और नवदुर्गाओं का परिचय एवं सभी जानकारियों का समावेश करने का प्रयास किया गया है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपकी नवरात्रि से सम्बंधित सभी जिज्ञासाओं का समाधान हो जाएगा।
नवरात्रि परिचय- why is navratri celebrated
नवरात्रि माँ दुर्गा के पूजन का समय है। यह तांत्रिक सिद्धियों, अनुष्ठान एवं तपस्या का काल है। इस समय की गई माँ की पूजा से कई गुना अधिक फल मिलता है।
वर्ष में चार नवरात्रि होती हैं। चैत्र नवरात्रि एवं आश्विन नवरात्रि सर्वविदित हैं। जो सभी के लिए हैं और सामान्यजन इन दोनों नवरात्रियों में माँ की पूजा आराधना करते हैं।
इनके अलावा वर्ष में दो नवरात्रियां और होती हैं। आषाढ़ मास और माघ माह में पड़ने वाली नवरात्रियां गुप्त नवरात्रि कही जाती हैं। जिनमें गुप्त तांत्रिक साधनाएं की जाती हैं।
इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। सभी नवरात्रियों में आश्विन नवरात्रि का महत्व सर्वाधिक है।
नवरात्रि निर्णय- navratri 2020 vrat evam pooja vidhi
आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि का आरम्भ होता है। नवरात्रि का प्रारंभ सूर्योदय के बाद प्रतिपदा तिथि होने पर ही करना चाहिए। अमावस्या युक्त प्रतिपदा नहीं ग्रहण करनी चाहिए। इस संबंध में देवीपुराण में स्पष्ट लिखा है-
अमायुक्ता न कर्तव्या प्रतिपूजने मम। आगे लिखा है- कलशस्थापने तत्र ह्यरिष्टं जायते ध्रुवं।।
अर्थात अमावस्या युक्त प्रतिपदा में पूजन करने से निश्चित ही अनिष्ट होता है।
रुद्रयामल के अनुसार-
अमायुक्ता सदा चैत्र प्रतिपननिन्दिता मता।
इसी प्रकार कात्यायन का मत है-
प्रतपद्याश्वीने मासि भवेद वैधृति चित्रयोः। आद्य पादौ परित्यज्य प्रारभे नवरात्रकम।।
प्रतिपदा से नवमी तक माँ दुर्गा की पूजा आराधना की जाती है।
सन 2021 में चैत्र नवरात्रि कब है? when is navratri starting

नवरात्रि पूजन विधि- navratri 2021
नवरात्रि के पूजन में विधान से अधिक माँ के प्रति सच्चे भावों का अधिक महत्व है। साथ ही इस पूजा में कुलाचार को वरीयता प्रदान की गई है। तात्पर्य यह है कि जिसके कुल में जिस प्रकार पूजा का विधान है। उसे उसी प्रकार पूजा करनी चाहिए।
नवरात्रि व्रत किसे रहना चाहिए
इस पूजन में सभी का अधिकार है। चारों वर्ण एवं स्त्रियां सभी इस पूजा की अधिकारी हैं।
माँ दुर्गा की पूजा सात्विक और तामसिक दोनों प्रकार से होती है। ब्राम्हण को सदैव सात्विक पूजा ही करनी चाहिए।
बाकी सभी वर्ण के लोग अपनी कुल परंपरा के अनुसार ही देवी पूजन करें। ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है।
navratri 2021- व्रत एवं पूजन विधि
नवरात्रि में घटस्थापन, देवीपूजन, हवन, कन्या पूजन एवं कन्या एवं सौभाग्यवती स्त्री भोजन प्रमुख हैं।
घटस्थापन प्रातः काल, दोपहर एवं सायंकाल में किया जा सकता है। तथापि प्रातः काल में करना ही उचित है। रात्रि में घटस्थापन एवं हवन करना निषिद्ध है। इस संबंध में देवीपुराण का कथन है–
प्रातरावाहएद्देवी प्रातरेव प्रवेशएत। प्रातः प्रातश्च सम्पूज्य प्रातरेव विसर्जयेत।
अर्थात प्रातः ही देवी का आवाहन और स्थापना करनी चाहिए। प्रातः ही पूजा करनी चाहिए तथा प्रातः ही विसर्जन करना चाहिए।
मत्स्यपुराण में उल्लेख है–
न रात्रौ स्थापनं कार्य न च कुंभाभिषेचनम।
प्रतिपदा के दिन प्रातःकाल स्नान आदि दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर पत्नी सहित आसन पर बैठकर ताम्रपात्र में जल लेकर संकल्प करें-
मैं अमुक नाम अमुक गोत्र कुटुम्ब सहित माँ दुर्गा की प्रसन्नता के लिए, समस्त अरिष्टों के नाश के लिए, आयु, धन, पुत्र की वृद्धि के लिए, शत्रु के पराभव एवं अक्षय कीर्ति प्राप्ति के लिए, चारों पुरुषार्थों की सिद्धि के लिए आज से महानवमी पर्यन्त प्रतिदिन मां दुर्गा की पूजा, उपवास,नियम सहित अखण्डदीप, कुमारीपूजन, शप्तशती पाठ, सौभाग्यवती भोजन आदि कर्म अपने कुल की रीति से करूंगा। देवीपूजन का अंग होने के कारण घटस्थापन, गणेश पूजन, पुण्याहवाचन, नवार्ण जप, शप्तशती पाठ, हवन आदि ब्राम्हण के द्वारा या स्वयं करूंगा।
संकल्प में जो कर्म करना हो उसी को कहे। उसके बाद स्वयं या ब्राम्हण के द्वारा घटस्थापना एवं विधि पूर्वक देवी का पूजन करे। प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का एक पाठ स्वयं करे या ब्राम्हण से कराए।
अपनी सामर्थ्य के अनुसार नौ दिन अथवा दो दिन का उपवास करे। navratri 2020 व्रत के नियम के विषय में विस्तारपूर्वक जानने के लिए पढ़ें-
नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती (Durga Saptshati) पाठ विधि एवं फल
दुर्गा सप्तशती के पाठ का फल एवं विधि निम्न प्रकार है–
दुर्गा सप्तशती पाठ की महत्ता
दुर्गा शप्तशती के पाठ की बड़ी महिमा है। नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के पाठ का फल कई गुना अधिक है। धर्म एवं कामना की इच्छा से सप्तशती का पाठ सदैव करना चाहिए।
इसके पाठ की महत्ता का वर्णन स्वयं भगवती ने निम्न प्रकार किया है–
शान्तिकर्म में, बुरे स्वप्न देखने पर, भयानक ग्रह पीड़ा होने पर मेरे महात्म्य को सुने। आग में घिर जाने पर, डाकुओं या शत्रुओं द्वारा पकड़े जाने पर मेरे महात्म्य का श्रवण करे।
बालकों के अरिष्ट ग्रहों की शांति के लिए, भूत-प्रेत आदि उपद्रव की शांति, सभी मनोकामनाओं को पूर्ति के लिए, धन, सुख, समृद्धि के लिए मेरे महात्म्य का पाठ करे अथवा श्रवण करें।
सप्तशती के पाठ की विधि दुर्गा सप्तशती नामक ग्रंथ में विस्तारपूर्वक वर्णित है। सम्पूर्ण फल प्राप्ति के लिए नियमानुसार ही पाठ करे अथवा पुरोहित द्वारा कराए।
पाठ संख्या के अनुसार फल
उपसर्ग की शांति के लिए तीन पाठ, ग्रह शान्ति के लिए पांच पाठ करना चाहिए। बड़े उग्र भय की शांति और बाजपेय यज्ञ की फल प्राप्ति के लिये नौ पाठ करना चाहिए।
राजा को वश में करने के लिए ग्यारह, शत्रुनाश के लिये बारह पाठ वर्णित हैं। स्त्री या पुरुष को वश में करने के लिए चौदह पाठ करने चाहिए। सुख और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए पंद्रह पाठ वर्णित हैं।
पुत्र, पौत्र, धन, धान्य की प्राप्ति के लिए सोलह पाठों का नियम है। राजभय नाश के लिए सत्रह, उच्चाटन के लिए अट्ठारह पाठ का नियम प्राप्त है।
जेल से छूटने के लिए पच्चीस, बड़े रोग, अल्पायु और अजेय शत्रु, बड़ी व्याधि, बड़े संकटों से मुक्ति के लिए सौ पाठ करने चाहिए। ऐसा वाराही तंत्र में लिखा है।
कुमारी पूजन विधि – navratri 2021
नवरात्रि कर्म में कुमारी पूजन का बड़ा महत्व है। कुमारी पूजन में दो वर्ष से कम उम्र की कन्या का पूजन वर्जित है। दो वर्ष से लेकर दशवर्ष तक की कुमारियों का पूजन करना चाहिए।
ब्राम्हण के लिए ब्राम्हण वर्ण की कुमारी का पूजन श्रेष्ठ है। प्रतिदिन एक एक कुमारी बढ़ाकर या प्रतिदिन एक कुमारी का पूजन करना चाहिए। अंगों से हीन या अधिक अंग वाली का पूजन वर्जित है।
रोगिणी, फोड़े या गांठ वाली, नेत्रहीन, श्रवण हीन, कुरूप कन्या का भी पूजन वर्जित है। इस संबंध में स्कन्दपुराण का मत है–
हीनधिकांगी कुष्ठादिविकारां कुनखां तथा। गंथिस्फुटितगरभांगी रक्तपूय व्रनांकिताम। जात्यन्धा केकरी काणी कुरूपां तनुरोमशाम। सन्त्यजेद रोगिनीं कन्यां दासीगर्भ समुद्भावाम। एकवर्षा तु या कन्या पूजार्थे तां विवर्जएत। गंधपुष्प फलादीनां प्रीतिस्तस्या न विद्यते।।
नवरात्रि व्रत के नियम
नवरात्रि navratri का उत्सव मलमास में नहीं होता। जन्म या मृत्यु का सूतक हो जाने पर घटस्थापन और पूजा पाठ आदि ब्राम्हण के द्वारा कराना चाहिए। व्रत आदि नियम स्वयं पालन करना चाहिए।
इसी प्रकार रजस्वला स्त्री भी व्रत स्वयं करे और पूजा दूसरे से कराए, ऐसा नियम है।
यह नवरात्रि व्रत के सामान्य नियम हैं। जिनका पालन करने से भगवती दुर्गा प्रसन्न होती हैं। साधक की सभी मनोकामनाएं की पूर्ति करती हैं। सभी व्रतों के नियम जानने के लिए पढ़ें–
व्रत के नियम | VRAT KE NIYAM
नवदुर्गा का परिचय- maa durga
देवी के नौ रूप का वर्णन देवी पुराण आदि ग्रंथों में प्राप्त होता है। नवरात्रि में इन्हीं नौ रूपों की पूजा की जाती है। देवी के नौ रूप निम्नवत हैं-
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रम्हचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम।। पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठम कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमं। नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।।
शैलपुत्री# navratri 2021
नवरात्रि के प्रथम दिन माँ दुर्गा शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। इनका वाहन बैल (वृषभ) है। इसीलिए इन्हें वृषारूढा भी कहा जाता है।
इनके एक हाथ में त्रिशूल और और दूसरे में कमल है। यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। संसार की सम्पूर्ण जड़ वस्तुओं पर इनका अधिकार है।
ब्रम्हचारिणी- maa durga
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रम्हचारिणी की पूजा की जाती है। इनके एक हाथ में कमण्डल है और दूसरे हाथ में वरदमुद्रा। इनको तपश्चारिणी के नाम से भी जाना जाता है।
पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म प्राप्ति के बाद शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्होंने घोर तप किया। जिसे देखकर देवों ने कहा कि ऐसा घोर तप न पहले किसी ने किया। न ही आगे कोई कर पायेगा।
माँ का यह रूप जीवन के संघर्षों में बिना विचलित हुए कठिन परिश्रम की सीख देता है।
चन्द्रघण्टा
तीसरे दिन माँ चन्द्रघण्टा की पूजा होती है। माँ के मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचंद्रमा विराजमान है। इसीलिए इनका नाम चन्द्रघण्टा पड़ा। मां का यह रूप सोने की कांति वाला है।
इनके दश हाथ हैं। जिनमें घण्टा और अनेक अस्त्र शस्त्र विभूषित हैं। ये सिंह पर सवार हैं और युद्ध के लिए उद्द्यत हैं।
इनकी पूजा से साहस, धैर्य और पराक्रम की वृद्धि होती है।
कूष्माण्डा# navratri 2020 व्रत एवं पूजन विधि
नवरात्रि के चौथे दिन कूष्मांडा देवी की पूजा होती है। इन्होंने अपने मन्द हास्य से अण्ड अर्थात ब्रम्हांड की उत्पत्ति की है। इनकी आठ भुजाएं हैं। जिन्हें कूष्माण्ड (कुम्हड़े) की बलि प्रिय है।
इसीलिए इन्हें कूष्माण्डा कहा जाता है। ये अत्यधिक तेजवान हैं। इनकी कृपा से साधक की सभी आधि व्याधियों का नाश होता है।
स्कंदमाता
नवरात्रि के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता की पूजा का विधान है। स्कंदकुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। ये ज्ञान एवं बुद्धि को प्रदान करने वाली हैं।
कात्यायनी
नवरात्रि का छठां दिन माता कात्यायनी को समर्पित है। कात्यायन ऋषि के यहां कन्या रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं।
माता कात्यायनी की बड़ी महत्ता है। गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हीं की पूजा की थी। ये शोध एवं वैज्ञानिकी की देवी हैं।
इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। साथ ही यह चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने वाली हैं।
कालरात्रि
सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा का विधान है। इनका स्वरूप रात्रि के गहन अंधकार की भांति है। इनका भयानक स्वरूप काल को भी भयभीत करने वाला है। इसीलिए इनका नाम कालरात्रि है।
इनके भक्त को काल का भय नहीं रहता। भयंकर स्वरूप होने के बाबा भी ये भक्तों के लिए शुभ फल प्रदान करती हैं। इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है।
ये सभी नकारात्मक और आसुरी शक्तियों का नाश करने वाली हैं। इनके भक्त को भूत-प्रेत, तन्त्र-मन्त्र, ग्रह पीड़ा, अकालमृत्यु का भय नहीं होता।
महागौरी- navratri 2021
देवी महागौरी की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन की जाती है। नवदुर्गाओं में इन्ही की पूजा सर्वाधिक होती है। जिनके गौर वर्ण की तुलना शंख, चन्द्रमा और कुंद के फूल से की जाती है।
ये अत्यंत सौम्य स्वभाव वाली हैं। ये भक्तों को मातृवत स्नेह प्रदान करती हैं। अष्टवर्षा भवेद गौरी के अनुसार इनकी आयु आठ वर्ष है। ये स्त्रियों को सौभाग्य प्रदान करने वाली हैं।
सिद्धिदात्री
नवरात्रिके नवें दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा करनी चाहिए। इनकी पूजा करने से बाकी सभी देवियों की पूजा स्वतः ही हो जाती है। ऐसा भी उल्लेख मिलता है।
सभी सिद्धियों को प्रदान करने के कारण ही इनका नाम सिद्धिदात्री पड़ा। इनकी साधना से अष्टसिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।
कहा जाता है कि भगवान शिव ने भी इन्हीं की कृपा से अनेक सिद्धियां प्राप्त की थीं। इनकी कृपा से सांसारिक और पारलौकिक सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
navratri 2021- व्रत एवं पूजन विधि का निष्कर्ष
इस प्रकार नवरात्रि में नवदुर्गा के पूजन से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। साथ ही आत्मबल और आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है। इसीलिये इसे शक्ति की आराधना का समय भी कहा जाता है। नवरात्रि 2021- व्रत एवं पूजा विधि इस महत्वपूर्ण समय का सही प्रकार से उपयोग करने के लिए प्रेरित करती है।
नवरात्रि के नियमों में एक उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें कुल परंपरा का बड़ा महत्व है। जिस कुल में जिस प्रकार से पूजा का विधान है। उसी प्रकार व्रत-पूजा आदि करनी चाहिए।
यह भी पढ़ें–
एकादशी व्रत एवं पूजा विधि
जन्माष्टमी व्रत विधि
पितृपक्ष एवं श्राद्ध विधि
नीम करोली बाबा की कहानी
80 new moral stories in hindi
हिन्दू धर्म, व्रत, पूजा-पाठ, दर्शन, इतिहास, प्रेरणादायक कहानियां, प्रेरक प्रसंग, प्रेरक कविताएँ, सुविचार, भारत के संत, हिंदी भाषा ज्ञान आदि विषयों पर नई पोस्ट का नोटिफिकेशन प्राप्त करने के लिए नीचे बाई ओर बने बेल के निशान को दबाकर हमारी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करें। आप सब्सक्राइबर बॉक्स में अपना ईमेल लिखकर भी सबस्क्राइब कर सकते हैं।
आशा है कि नवरात्रि 2021- व्रत एवं पूजा विधि नामक यह लेख आपको पसंद आया होगा। अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर लिखे।