दोस्तों ! Moral Stories की श्रृंखला में हम आज आपके लिए मन की पवित्रता नामक Moral Story लेकर आये हैं। यह कहानी- hindi story बताती है कि दिखावा जरूरी नहीं है। मन की पवित्रता जरूरी है।
मन की पवित्रता- Moral Story
एक समय की बात है। एक नगर के बाहर एक सन्यासी का भव्य आश्रम था। उन सन्यासी महाराज का नगर में बड़ा नाम था। वे बड़े नियम और धर्मपूर्वक जीवन व्यतीत करते थे। रोज सैकड़ों लोग उनके दर्शन को आते।
बाहर से देखने पर वे बड़े संयमित और धीर गंभीर लगते थे। परंतु सच्चाई यह थी कि उनका मन बड़ा चंचल था। सांसारिक सुख सुविधाओं का उन्हें बड़ा लोभ था। वे आरामपूर्ण और सुविधापूर्ण जीवन जीना चाहते थे।
उनका मन सदैव भोग विलास के लिए लालायित रहता था। उन्हीं के आश्रम के ठीक सामने एक वेश्या का घर था। किसी कारण से मजबूरीवश उसे वेश्या का पेशा अपनाना पड़ा था। लेकिन उसका मन पवित्र था। वह मजबूरन इस धंधे को कर रही थी।
उसे भोग विलास सुख सुविधा में कोई रुचि नहीं थी। समय मिलते ही वह ईश्वर के ध्यान में मग्न हो जाती थी। समय बीतता रहा, संयोगवश दोनों की मृत्यु एक साथ ही हुई। सन्यासी की शवयात्रा बड़ी धूमधाम से निकाली गई।
नगर के सभी गणमान्य लोग उनकी शवयात्रा में शामिल हुए। पूरे विधि विधान से उनका अंतिम संस्कार हुआ। जबकि वेश्या का शव जंगल में ले जाकर फेंक दिया गया। जहां वह जंगली जानवरों का भोजन बना।
लेकिन आश्चर्य की बात तब हुई। जब सन्यासी की आत्मा को ले जाने के लिए नर्क से यमदूत आये और वेश्या की आत्मा के लिए स्वर्ग से देवदूत आये। यह देखकर सन्यासी की आत्मा ने देवदूतों से प्रश्न किया-
“मैंने नियम संयम पूर्वक जीवन यापन किया। स्नान, पूजन, स्वच्छता के सभी संस्कार पालन किये। तब मुझे नर्क मिल रहा है। जबकि इस अपवित्र शरीर वाली, अधम वेश्या को स्वर्ग ले जाया जा रहा है। यह अन्याय क्यों?”
तब देवदूतों ने उत्तर दिया, “ईश्वरीय विधान में अन्याय की कोई गुंजाइश नहीं है। तुमने शरीर के सभी नियमों का पालन किया। इसलिए तुम्हारे शरीर के साथ बहुत अच्छा व्यवहार हुआ। पूर्ण विधि विधान से तुम्हारे शरीर का अंतिम संस्कार हुआ।”
“लेकिन तुम्हारा मन चंचल था। भोग विलास के प्रति आकर्षित था। जो एक सन्यासी के लिए उचित नहीं है। इसलिए तुम्हारी आत्मा को नर्क मिला है। इस वेश्या का शरीर अपवित्र था। इसलिए इसके शरीर को बिना अंतिम संस्कार के फेंक दिया गया।”
“लेकिन इसका मन पवित्र था। अधम कर्मरत होते हुए भी इसका मन पवित्र था। इसलिए इसकी आत्मा को स्वर्ग मिल रहा है। इसमें अन्याय कहाँ है ?”
इसीलिए कहा गया है कि तन से ज्यादा मन की पवित्रता का महत्व है। कबीरदास जी ने भी कहा है-
माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर। तन का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।
सीख- Moral
इस moral story से हमें यह शिक्षा मिलती है कि केवल बाहरी दिखावे से ईश्वर नहीं मिल सकते। मन का पवित्र होना जरूरी है।
यह भी पढ़ें-
80+ new moral stories in hindi- नैतिक कहानियां
15 short stories in hindi- लघु कहानियां
5 short stories for kids in hindi- बाल कहानियां
हितोपदेश की दो कहानियां
10 बेस्ट प्रेरक प्रसंग
हिन्दू धर्म, व्रत, पूजा-पाठ, दर्शन, इतिहास, प्रेरणादायक कहानियां, प्रेरक प्रसंग, प्रेरक कविताएँ, सुविचार, भारत के संत, हिंदी भाषा ज्ञान आदि विषयों पर नई पोस्ट का नोटिफिकेशन प्राप्त करने के लिए नीचे बाई ओर बने बेल के निशान को दबाकर हमारी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करें। आप सब्सक्राइबर बॉक्स में अपना ईमेल लिखकर भी सबस्क्राइब कर सकते हैं।
मन की पवित्रता- moral story आपको कैसी लगी ? कमेंट करके जरूर बताएं।