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कुसंग का फल – Moral Story

by staff

दोस्तों ! moral stories की श्रृंखला में हम आज आपके लिए हितोपदेश की एक और कहानी कुसंग का फल- Moral Story लाये हैं। ये moral story in hindi बुरी संगति के भयानक परिणाम को दर्शाती है। साथ ही यह कहानी हमें दुष्टों की संगति से दूर रहने की शिक्षा देती है।

कुसंग का फल- Moral Story

गंगा तट पर एक विशाल पाकड़ का वृक्ष था। उस पर सैंकड़ों पक्षी मिलजुलकर रहते थे। उसी वृक्ष पर एक वृद्ध गीध भी रहता था। उम्र की अधिकता ने उसकी दृष्टि छीन ली थी। जिस कारण वह कहीं आने जाने और भोजन की व्यवस्था करने में असमर्थ था।

पेड़ पर रहने वाले सभी पक्षी अपने भोजन से कुछ हिस्सा उसे दे देते थे। जिससे उसका भरण पोषण हो जाता था। बदले में वह उन्हें अपने विशाल अनुभव से ज्ञान और व्यवहार की बातें बताता था। साथ ही उनके बच्चों की देखभाल और शिक्षा का दायित्व उठाता था।

इस प्रकार वे सब एक परिवार की भांति बड़े सुख चैन से रहते थे। दिन में वे सब भोजन की खोज में चले जाते थे। तब गीध उनके बच्चों को तरह तरह की कहानियाँ सुनाकर व्यवहारिक शिक्षा प्रदान करता था।

एक दिन कहीं से एक बिलाव उस वृक्ष के पास आ गया। उसने पक्षियों के छोटे छोटे बच्चों को देखा तो उसने सोचा कि कई दिनों के भोजन का प्रबंध हो गया। लेकिन जब वह पास आया तो उसकी आवाज सुनकर गीध सतर्क हो गया और तेज स्वर में बोला-

“कौन है?” गीध की आवाज सुनकर बिलाव डर गया। उसने गीध को नहीं देखा था। उसे लगा कि उसका अंत समय आ गया। क्योंकि गीध उसे मार डालेगा। जान बचाने के लिए उसने बहुत विनयपूर्ण स्वर में उत्तर दिया, “मैं एक बिलाव हूँ। मैं आपके अपार ज्ञान और अनुभव से शिक्षा लेने आया हूँ।”

गीध पुनः बोला, “तुम एक मांस भोजी जीव हो। तुम तुरंत यहां से चले जाओ। अन्यथा मैं तुम्हें मार डालूंगा।” बिलाव गिड़गिड़ाकर बोला, “मैं बहुत सदाचारी हूँ। मैंने मांसभक्षण कबका छोड़ दिया है। अब तो मैं दान, धर्म, पूजा, पाठ करता हूँ। मैं केवल आपसे ज्ञान की बातें सुनने के लिए इतनी दूर आया हूँ।”

“आप मुझे यहीं नीचे रिहन्द की अनुमति दें। मुझसे आपको कोई शिकायत नहीं होगी।” बिलाव के बार बार प्रार्थना करने पर गीध मान गया। उसने उसे नीचे रहने की अनुमति दे दी।बिलाव कुछ दिन संयमपूर्वक बिना दूसरे पक्षियों की नजर में आये रहा।

इस बीच उसे यह भी ज्ञात हो गया कि गीध अंधा है। फिर उसने पक्षियों के बच्चों को खाना शुरू कर दिया। उनको खाकर वह हड्डियां गीध के कोटर में चुपचाप रख देता था। अंधे गीध को इसका पता नहीं चल पाता था।

शाम को जब पक्षी वापस आते तो अपने बच्चों को न देखकर बहुत दुखी होते। एक दिन उसने बाकी सारे बच्चों को खा लिया और भाग गया। शाम को पक्षी वापस आये तो घोसले खाली पाकर बच्चों को ढूढने लगे।

देखते हुए जब वे गीध के कोटर में पहुंचे तो वहां उन्हें बच्चों की हड्डियां मिलीं। उन्होंने समझा कि गीध ने ही उनके बच्चों को खाया है। सब ने मिलकर गीध को मार डाला। इस प्रकार कुसंग के कारण गीध मारा गया।

Moral- सीख

कुसंग का परिणाम सदैव बुरा ही होता है। इसलिए कुसंग से हमेशा बचना चाहिए।

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