आज हम आपके लिए हिंदी व्याकरण के अंतर्गत kriya in hindi– क्रिया की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण नामक पोस्ट लेकर आये हैं। जिसमें क्रिया के विषय में विस्तारपूर्वक समझाने का प्रयास किया गया है।
kriya in hindi- क्रिया
किसी भी काम को करने की अवस्था बताने वाले शब्द ही क्रिया हैं। ऐसा कोई भी शब्द जिससे किसी काम के होने का पता चलता है। उसे क्रिया कहते हैं।
क्रिया की परिभाषा
“ऐसे शब्द जिनसे किसी कार्य का करना या होना पाया जाता है, क्रिया कहलाते हैं।” जैसे-
पढ़ना, लिखना, खेलना, रोना, जागना आदि।
धातु
वे मूल शब्द जिनसे क्रिया बनती है वे धातु कहलाते हैं। जैसे-
क्रिया | धातु |
पढ़ना | पढ़ |
लिखना | लिख |
खेलना | खेल |
रोना | रो |
जागना | जाग |
धातु के भेद
व्युत्पत्ति के आधार पर धातु दो प्रकार की होती हैं–
1- मूल धातु 2- यौगिक धातु
1- मूल धातु
मूल धातु एक स्वतंत्र शब्द होती है। यह किसी अन्य शब्द से मिलकर नहीं बनती है। परंतु इसमें अन्य शब्द अथवा प्रत्यय आदि जोड़कर नई क्रिया बनाई जा सकती है। जैसे-
खेल, जाग, पढ़ आदि।
2- यौगिक धातु
यौगिक धातु स्वतंत्र शब्द नहीं होती है। इसमें प्रत्यय जोड़कर बनाया जाता है। जैसे-
धातु यौगिक धातु
खेलना खेला
रोना रोया
मारना मारा
इस प्रकार धातुएं अनंत हैं। कुछ धातुएं एकाक्षरी कुछ द्वि अक्षरी और चार अक्षरी भी होती हैं।
यौगिक धातु की रचना- kriya in hindi
यौगिक धातुओं की रचना तीन प्रकार से होती है–
1- धातु में प्रत्यय लगाकर अकर्मक से सकर्मक और प्रेरणार्थक धातुएं बनायीं जाती हैं।
2- कई धातुओं को जोड़ने से संयुक्त धातु बनती है।
3- संज्ञा अथवा विशेषण से नाम धातु बनाई जाती है।
प्रेरणार्थक क्रिया (धातु)
जिस क्रिया से यह पता चले कि कर्ता स्वयं कार्य नहीं करता है। बल्कि वह किसी को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। वह प्रेरणार्थक क्रिया या धातु कहलाती है। जैसे-
क्रिया | प्रेरणार्थक क्रिया |
करना | कराना |
काटना | कटवाना |
लिखना | लिखवाना |
देना | दिलवाना |
प्रेरणार्थक क्रिया के रूप- kriya in hindi
प्रेरणार्थक क्रिया के मुख्यतः दो रूप होते हैं-
1- अकर्मक क्रिया प्रेरणार्थक होने पर सकर्मक क्रिया बन जाती है। जैसे-
अकर्मक क्रिया सकर्मक क्रिया
दौड़ना दौड़ाना
रोना रुलाना
लजाना लजवाना
सोना सुलाना
हँसना हँसाना
2- प्रेरणार्थक क्रियाएं सकर्मक और अकर्मक दोनों क्रियाओं से बनती हैं। जैसे-
सकर्मक क्रिया प्रेरणार्थक क्रिया
काटना कटाना
पढ़ना पढ़ाना
माँगना मँगवाना
लिखना लिखवाना
यौगिक क्रिया
दो या दो से अधिक धातुओं और दूसरे शब्दों के योग से या फिर धातुओं में प्रत्यय लगाने से जो क्रिया बनती है, उसे यौगिक क्रिया कहते हैं। जैसे-
चलना- चलाना, रोना- धोना, उठना- बैठना, रो पड़ना, चल देना, खा लेना, उठ जाना आदि।
नाम धातु
जो धातु संज्ञा या विशेषण से बनती है, उसे नाम धातु कहते हैं। जैसे-
संज्ञा | नाम धातु | विशेषण | नाम धातु |
हाथ | हथियाना | गरम | गरमाना |
बात | बतियाना | ठंडा | ठंडाना |
लात | लतियाना | पागल | पगलाना |
क्रियार्थक संज्ञा
कोई क्रिया साधारण रूप में क्रिया नहीं होती है। विधि और काल के रूप को छोड़कर उसका प्रयोग प्रायः संज्ञा के समान होता है। इसलिए इस प्रकार के शब्दों को क्रियार्थक संज्ञा कहते हैं। इस प्रकार की क्रियार्थक संज्ञाएँ भाववाचक संज्ञा के अंतर्गत आती हैं। जैसे-
टहलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। यहां टहलना भाववाचक संज्ञा है।
क्रिया के कार्य
1- किसी कार्य के होने या किये जाने का बोध कराना। जैसे-
(क) गाय घास खा रही है। (ख) हिमांशु किताब पढ़ रहा है। (ग) पारुल गीत गा रही है।
2- किसी व्यक्ति अथवा वस्तु की क्रियाशीलता का बोध कराना। जैसे-
(क) भैंस चरती है। (ख) लड़के खेलते हैं।
3- स्थिति अथवा अवस्था का बोध कराना-
(क) नीतू पढ़ती है। (ख) महेंद्र खड़ा है।
4- अस्तित्व का बोध कराना-
(क) मनुष्य समाज में रहता है। (ख) मछली जल में रहती है।
5- मनः स्थिति का बोध कराना-
(क) लड़के प्रसन्न हो रहे हैं। (ख) आलोक रो रहा है।
क्रिया के भेद- kriya ke kitne bhed hote hain
मुख्यतः क्रिया दो प्रकार की होती हैं-
1- सकर्मक क्रिया 2- अकर्मक क्रिया
1- सकर्मक क्रिया- kriya in hindi
जिस क्रिया के व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है। अर्थात क्रिया का सर्वाधिक प्रभाव वाक्य में कर्म पर पड़ता है। वह सकर्मक क्रिया होती है। जिस क्रिया के साथ कर्म का प्रयोग होता है। वह प्रायः सकर्मक क्रिया होती है।
इसकी पहचान का तरीका यह है कि क्रियासे पहले क्या अथवा कौन के द्वारा प्रश्न किया जाय तो यदि उत्तर प्राप्त हो जाये तो वह क्रिया सकर्मक क्रिया होती है जैसे-
बालिका निबंध लिख रही है।
अब यहां क्या लगाकर प्रश्न किया जाय-
बालिका क्या लिख रही है ? उत्तर- निबंध
अतः लिखना सकर्मक क्रिया है।
सकर्मक क्रिया के दो भेद होते हैं-
(i) द्विकर्मक क्रिया
जब वाक्य में दो कर्म होते हैं और क्रिया का प्रभाव दोनों कर्मों पर पड़ता है, तो ऐसी क्रिया द्विकर्मक क्रिया कहलाती है। जैसे-
श्वेता ने रीना को बांसुरी दी।
यहां रीना और बांसुरी दोनों कर्म हैं। यहां देना बांसुरी मुख्य कर्म और रीना गौण कर्म है।दी क्रिया का प्रभाव दोनों पर पड़ता है। अतः देना द्विकर्मक क्रिया है।
(ii) संयुक्त क्रिया
संयुक्त क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनती है। इसकी विशेषता है कि उसकी पहली क्रिया प्रायः मुख्य क्रिया होती है और दूसरी क्रिया उसके अर्थ में विशेषता प्रकट करती है। जैसे-
राम विद्यालय पहुंच गया।
यहां पहुंच गया संयुक्त क्रिया है। जोकि पहुंच और गया दो क्रियाओं का मेल है।
2- अकर्मक क्रिया
जिस क्रिया का सर्वाधिक प्रभाव कर्ता पर पड़ता है। या वाक्य में कर्म का अभाव होता है। अर्थात बिना कर्म के प्रयोग के भी वाक्य का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे-
शीला गयी। वे खेलते हैं। मीना पढ़ती है।
पूरक- kriya in hindi
कुछ अकर्मक और सकर्मक क्रियाएं ऐसी होती हैं। जो कर्ता और क्रिया के होते हुए भी वाक्य का पूरा अर्थ नहीं प्रकट कर पातीं। ऐसी स्थिति में वाक्य के अर्थ को पूर्ण और स्पष्ट करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें पूरक कहते हैं। जैसे-
उन्होंने उसे गीतकार बनाया।
यहां उन्होंने कर्ता और बनाया क्रिया है। फिर भी वाक्य का अर्थ स्पष्ट नहीं होता। तब गीतकार शब्द जोड़ने से वाक्य का अर्थ पूर्ण होता है। इसलिए गीतकार पूरक शब्द हुआ।
व्युत्पत्ति के अनुसार क्रिया के भेद
क्रिया के तीन भेद होते हैं-
1- मूल क्रिया 2- यौगिक क्रिया 3- पूर्वकालिक क्रिया
(क) मूल क्रिया
जो क्रिया दूसरे शब्द न बनी हो। अर्थात अपने मूल रूप में हो। उसे मूल क्रिया कहते हैं। जैसे-
आना, जाना, खाना, पीना, सोना, जागना आदि मूल क्रियाएं हैं।
है, हैं, हूँ, था, थे, थी आदि भी मूल क्रिया के ही उदाहरण हैं।
(ख) यौगिक क्रिया- kriya in hindi
जो क्रिया अन्य शब्दों अथवा प्रत्ययों को मूल क्रिया में जोड़कर बनाई जाती हैं। उसे यौगिक क्रिया कहते हैं। जैसे-
आ जाना, चले जाना, खा लेना, सिखाना, पढ़ाना आदि।
(3) पूर्वकालिक क्रिया
जो क्रिया वाक्य में उपस्थित दूसरी क्रिया से पहले पूर्ण होती है और कर्ता के लिंग, वचन आदि के अनुसार नहीं होती है। उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं। जैसे-
सुकन्या पढ़कर सोती है।
यहां पढ़ने का काम सोने से पूर्व हो चुका है। इसलिए पढ़कर पूर्वकालिक क्रिया है।
क्रिया की अवस्था
प्रत्येक काल भवन क्रिया की तीन अवस्थाएं होती हैं–
1- सामान्य अवस्था 2- विधि अवस्था 3- संभाव्य अवस्था।
1- सामान्य अवस्था
जिस क्रिया से किसी कार्य की सामान्य स्वीकारात्मक अवस्था का बोध हो। उसे क्रिया की सामान्य अवस्था कहते हैं। जैसे-
अजय आया। शकुंतला खेल रही है।
2- विधि अवस्था
जिस क्रिया से आज्ञा, प्रार्थना, प्रश्न आदि का भाव प्रकट हो, उसे क्रिया की विधि अवस्था कहते हैं। जैसे-
तुम खाओ। क्या मैं अंदर आऊं ? कृपया मुझे सौ रुपये दीजिए।
यह अवस्था दो प्रकार की होती है-
1- प्रत्यक्ष विधि 2- परोक्ष विधि
1- प्रत्यक्ष विधि– इस विधि में आज्ञा, प्रार्थना, प्रश्न आदि का वर्तमान काल में कार्यान्वित होना ज्ञात होता है। जैसे-
हे प्रभु ! उसकी रक्षा करो। अभी विद्यालय जाओ।
2- परोक्ष विधि– इस विधि में आज्ञा, प्रार्थना, प्रश्न आदि का भविष्यकाल में होना पाया जाता है। जैसे-
तुम कल विद्यालय जाना। हे प्रभु ! उसकी रक्षा करना।
3- संभाव्य अवस्था- kriya in hindi
जिस क्रिया से अनुमान, इच्छा, संदेह आदि का बोध होता है, उसे संभाव्य अवस्था की क्रिया कहते हैं। जैसे-
शायद वह बाजार में मिल जाये।
वह घर पर होगा या नहीं।
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