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karak in hindi – कारक की परिभाषा, भेद और उदाहरण

by staff

आज हम आपके लिए karak in hindi- कारक की परिभाषा, भेद और उदाहरण नामक पोस्ट लेकर आये हैं। कारक का प्रयोग किसी भी वाक्य के अर्थ को प्रकट करने के लिए आवश्यक है।

इस पोस्ट में कारक को सरल तरीके से उदाहरण के द्वारा समझाने का प्रयास किया गया है। जोकि विभिन्न कक्षाओं के विद्यार्थियों एवं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा।

karak in hindi

किसी वाक्य में प्रयोग किये गए शब्द आपस में सम्बद्ध होते हैं। सम्बद्ध न होने पर इनका अर्थ ही स्पष्ट नहीं होगा। इस प्रकार वे निरर्थक हो जाएंगे। वाक्यों में सार्थकता लाने के लिए शब्दों में आपसी संबंध बताने का काम कारक करते हैं।

उदाहरण–
रचना शैली देखती है।
शिल्पा शैली अलग हो गयी है।
कविता लेखराज पुस्तक दी।

ऊपर दिए गए तीनों वाक्यों में संज्ञाओं और क्रिया के बीच कोई सम्बंध प्रकट नहीं होने से वाक्य का कोई स्पष्ट अर्थ समझ में नही आ रहा है। कारक का काम यही है कि वह शब्दों का वाक्य में संगत संबंध प्रकट करता है। उदाहरण देखिए-

रचना शैली को देखती है।
शिल्पा शैली से अलग हो गयी।
कविता ने लेखराज को पुस्तक दी।

यहां उद्देश्य और विधेय का प्रयोग और अर्थ स्पष्ट है।

कारक की परिभाषा

संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध वाक्य के किसी दूसरे शब्द के साथ विशेषतः क्रिया के साथ ज्ञात होता है, उसको कारक कहते हैं।
जैसे- राम ने राक्षसों को बाणों से मारा।

विभक्ति- karak in hindi

कारक सूचित करने के लिए संज्ञा अथवा सर्वनाम के साथ जो प्रत्यय लगाया जाता है, वह विभक्ति कहलाता है।

कारक के भेद

संस्कृत भाषा में कारकों की संख्या छह होती है। कुछ विद्वान हिंदी में भी संस्कृत की तरह छह कारक ही मानते हैं। किंतु अधिकतर विद्वान हिंदी में आठ कारक मानते हैं। अतः कारक के विभक्तियों सहित आठ भेद होते हैं। जो निम्न तालिका में प्रदर्शित हैं–

कारकविभक्ति चिन्ह
कर्ता कारकने
कर्म कारकको
करण कारकसे, द्वारा
सम्प्रदान कारकको, के लिए, हेतु, निर्मित, वास्ते
अपादान कारकसे (अलग होने के अर्थ में)
संबंध कारकका, की, के, रा, री, रे, ना, नी, ने
अधिकरण कारकमें, भीतर, पर, पै
संबोधन कारकहे !, हो !, अजी !, अरे !, ए !, रे ।

कर्ता कारक

वाक्य में होने वाली क्रिया को करने वाला कर्ता कारक कहलाता है। इसके लिए विभक्ति चिन्ह ने का प्रयोग किया जाता है। परंतु यह कभी कर्ता के साथ प्रयुक्त होता है और कभी नहीं।

कर्ता कारक को पहचानने का सरलतम तरीका है कि वाक्य में हो रहे कार्य को देखना। जो शब्द उस कार्य को कर रहा होता है। वही कर्ता कारक कहलाता है।

उदाहरण-
1- अंशु ने भोजन किया।
2- माही खेल रहा है।
3- शीला कविता लिख रही है।
4- मोहन ने माली को पीट दिया।

कर्म कारक

संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप पर क्रिया का फल गिरता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। सरल शब्दों में समझें तो क्रिया का प्रभाव सबसे ज्यादा जिसपर पड़ता है। वही कर्म कारक कहलाता है। इसका विभक्ति चिन्ह को होता है। जो कभी कर्म कारक के साथ प्रयुक्त होता है तो कभी छुपा हुआ रहता है।

उदाहरण-
1- संध्या ने पुस्तक को पढ़ लिया।
2- मनीष ने राधे को पीटा।
3- शीला गीत गाती है।
4- लड़के क्रिकेट खेलते हैं।

कर्ता और कर्म की पहचान

वाक्य में कभी कभी कर्ता और कर्म की पहचान करने में कठिनाई होती है। ऐसी स्थिति में वाक्य में कौन लगाकर प्रश्न करने से जो उत्तर प्राप्त होता है। वही कर्ता होता है।

कर्म की पहचान के लिए वाक्य में क्या अथवा किसको लगाकर प्रश्न करने से कर्म ज्ञात हो जाता है।

करण कारक

क्रिया को संपादित करने में जिस साधन का प्रयोग किया जाता है। उसे करण कारक कहते हैं। क्रिया को पूर्ण करने में जो सहायक हो अथवा जिसकी सहायता के द्वारा क्रिया पूरी की जाए, वह करण कारक होता है।

इसका विभक्ति चिन्ह से होता है। इस से का तात्पर्य द्वारा होता है। प्रायः करण कारक का प्रयोग वाक्य में क्रिया के साधन के लिए किया जाता है।

उदाहरण-
1- रामू ने कुत्ते को डंडे से मारा।
2- मोहन पेन से लिखता है।
3- राहुल पेंसिल से चित्र बना रहा है।

कई स्थानों पर विभक्ति चिन्ह छिपा हुआ होता है। जैसे-
न आंखों देखा न कानों सुना।

हिंदी में संस्कृत के कुछ करण कारक के पद ज्यों के त्यों प्रयुक्त किये जाते हैं। जैसे- येन केन प्रकारेण आदि।

सम्प्रदान कारक- karak in hindi

वाक्य में जिसके लिए क्रिया सम्पादित की जाती है। उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। अर्थात जब किसी के लिए कोई कार्य किया जाता है, तब वहां सम्प्रदान कारक होता है।

इसका विभक्ति चिन्ह के लिए होता है। कभी कभी को का भी प्रयोग होता है। किंतु उसका अर्थ के लिए ही होता है।

उदाहरण-
1- शीला माँ के लिये दवा लाती है।
2- मनोहर बेटे के लिए खिलौना लाया।
3- मैंने बहन के लिए पुस्तक खरीदी।
4- बच्चे को गेंद लाओ।

अपादान कारक

जिस संज्ञा या सर्वनाम से किसी वस्तु का अलग होना ज्ञात हो, उसे अपादान कारक कहते हैं। इसमें कोई वस्तु जिससे अलग होती है, उस संज्ञा या सर्वनाम में अपादान कारक होता है। इसका विभक्ति चिन्ह भी से होता है। जिसका प्रयोग यहां अलग होने के अर्थ में किया जाता है।

उदाहरण-
1- वृक्ष से पत्ता गिरा।
2- रेलगाड़ी प्लेटफॉर्म से जा चुकी थी।
3- घुड़सवार घोड़े से गिर गया।

संबंध कारक

संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों से प्रकट होता है, उसे सम्बंध कारक कहते हैं। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि संबंध कारक संज्ञा अथवा सर्वनाम का संबंध क्रिया से न बताकर किसी दूसरे संज्ञा अथवा सर्वनाम से बताता है।

इसके विभक्तियुक्त शब्द निम्न होते हैं- मेरे, मेरा, मेरी, अपना, अपनी, अपने, तुम्हारा, तुम्हारी, तुम्हारे, उसका, उसकी, उसके आदि।

उदाहरण-
1- मेरी घड़ी खो गयी।
2- मैंने अपनी पुस्तक लिखी।

3- उसका बैग मिला गया।

अधिकरण कारक

संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है। उसे अधिकरण कारक कहते हैं। अर्थात क्रिया के स्थान, समय, अवसर आदि का बोध कराने वाला शब्द अधिकरण कारक कहलाता है।

इसके कारक चिन्ह में, पर, अंदर आदि होते हैं। जो कभी प्रकट और कभी छुपे हुए होते हैं।

उदाहरण-
1- मेज पर पुस्तक रखी है।
2- मैं तीन मिनट में आ रहा हूँ।
3- सामान पैकेट के भीतर है।

संबोधन कारक

जिस शब्द से किसी को पुकारने का बोध होता है, उसे संबोधन कारक कहते हैं। संस्कृत व्याकरण में इसे कर्ता से अलग नहीं माना जाता। परंतु हिंदी में इसे एक अलग कारक के रूप में मान्यता दी गयी है।

इसके कारक चिन्ह हे !, अरे !, ओ !, ए ! आदि होते हैं। संबोधन कारक शब्दों के बाद विस्मय बोधक चिन्ह का प्रयोग होता है।

उदाहरण-
1- विभु ! इधर आओ।
2- हे प्रभु ! हम पर कृपा करो।
3- अरे ! तुम मेरी बात नहीं सुन रहे।

करण कारक और अपादान कारक में अंतर

करण कारक और अपादान कारक दोनों का विभक्ति चिन्ह से होने से कभी कभी दोनों की पहचान में दिक्कत होती है। लेकिन दोनों की पहचान करना बहुत ही आसान है। करण कारक में से का अर्थ क्रिया के साधन से सम्बंध बताने के लिए होता है।

जबकि अपादान कारक में से का अर्थ किसी वस्तु से अलग होने के अर्थ में किया जाता है।

उदाहरण-
1- शीला ने कलम से पत्र लिखा। (करण कारक)
2- मुकेश गांव से चला गया। (अपादान कारक)

कारक एक नजर में-

कर्ता कारक- क्रिया को सम्पन्न करने वाला।
कर्म कारक- क्रिया से प्रभावित होने वाला।
करण कारक- क्रिया का साधन या उपकरण।
सम्प्रदान कारक- जिसके लिए क्रिया की जाय।
अपादान कारक- जहां किसी से अलगाव हो।
संबंध कारक- जहां दो पदों में संबंध का बोध हो।
अधिकरण कारक- जिससे क्रिया के आधार का बोध हो।
संबोधन- किसी को पुकारने का बोध कराने वाला।

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