दोस्तों ! आज हम आपके लिए संस्कृत भाषा के सबसे प्रसिद्ध कवि और नाटककार कालिदास की कहानी- Kalidas Story लेकर आये हैं। कालिदास (kalidas) को संस्कृत भाषा में वही स्थान प्राप्त है। जो शेक्सपियर का अंग्रेजी भाषा में है।
कालिदास की रचनाएँ संस्कृतभाषा में सबसे लोकप्रिय हैं। यहां तक कि उनकी कई रचनाओं का कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। उनके द्वारा दी गयी उपमाएं अनुपम और अद्वितीय हैं। जिनके कारण ही “उपमा कालिदासस्य” नामक सूक्ति प्रचिलित हुई।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि महान विद्वान कालिदास (kalidas) अपने प्रारम्भिक जीवन में अनपढ़ और मूर्ख थे ? उनके अनपढ़ और मूर्ख होने से लेकर संस्कृत भाषा के विद्वान एवं सबसे लोकप्रिय साहित्यकार बनने की पूरी कहानी आप के लिए प्रस्तुत है–
कालिदास की कहानी – Kalidas Story
कालिदास का जीवन परिचय
जन्म काल
कालिदास ने अपने जीवन के विषय में अपने काव्यों में कहीं भी उल्लेख नहीं किया है। साथ ही तत्कालीन या उनके बाद के ग्रंथों में भी उनके जन्मकाल या जीवन के संबंध में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है।
जिसके कारण उनके जन्मकाल के विषय में विद्वानों में मतभेद हैं। यद्यपि सर्वाधिक एवं निर्विवाद रूप से उनके जन्मकाल को एक विस्तृत कालखण्ड में तथ्यों के आधार पर रखा जा सकता है। वह कालखण्ड है ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी से लेकर छठीं शताब्दी ईसवी तक।
जन्म स्थान
कोई स्पष्ट प्रमाण न होने के कारण कालिदास (kalidas) के जन्मस्थान के विषय में भी अनेक मत हैं। कुछ विद्वान उन्हें उज्जैन का मानते हैं तो कुछ उत्तराखंड का। अन्य कुछ विद्वान इन्हें बिहार के मधुबनी जिले का भी मानते हैं।
फिर भी उज्जैन का मत अधिक तार्किक है क्योंकि वे उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के दरबारी कवि थे। इस कारण से इनका जन्म उज्जैन का मानना ज्यादा उचित है।
प्रारंभिक जीवन
कालिदास के प्रारंभिक जीवन के विषय में भी कहीं उल्लेख नहीं मिलता। न ही उन्होंने अपने खुद के काव्यों में इनका जिक्र किया है। तथापि यह माना जाता है कि ये एक साधारण निर्धन ब्राम्हण परिवार से थे। जिस कारण ये पढ़ लिख नहीं पाए।
वैवाहिक जीवन
कालिदास की कहानी- kalidas story में सबसे रोचक प्रसंग इनके विवाह का ही है। जनश्रुति है कि उस समय के राजा शारदानंद की राजकन्या विद्योत्तमा अत्यंत सुंदर एवं महान विदुषी थी। उसने शर्त रखी थी कि जो उसे शास्त्रार्थ में पराजित करेगा। वह उसी से विवाह करेगी।
अनेक विद्वानों ने प्रयास किया किन्तु वे उसे पराजित नहीं कर पाए एवं अपमानित होकर वापस लौटे। जिसके बाद उन्होंने अपने अपमान का बदला लेने के लिए विद्योत्तमा का विवाह किसी मूर्ख से कराने का निश्चय किया।
मूर्ख को खोजते हुए उन्हें कालिदास मिले। जो एक पेड़ की उसी डाल को काट रहे थे। जिस पर वे स्वयं बैठे थे। विद्वानों ने सोचा कि इससे बड़ा मूर्ख कहाँ मिलेगा। उन्होंने कालिदास को तैयार किया और कहा कि तुम्हें मौन रहना है। कुछ भी बोलना नहीं है।
इसके बाद वह विद्वानमण्डली कालिदास को लेकर विद्योत्तमा के पास पहुंची और बताया कि ये हमारे गुरु हैं। ये आपको शास्त्रार्थ में पराजित करेंगे। किन्तु इनका मौनव्रत है। जिसके कारण ये इशारों से आपके प्रश्न का उत्तर देंगे। जिसे हम लोग आपको शब्दों के द्वारा समझाएंगे।
विद्योत्तमा के तैयार होने पर शास्त्रार्थ शुरू हुआ। विद्योत्तमा ने कालिदास को एक उंगली दिखाई। जिसका अर्थ हुआ कि ब्रम्ह एक है जो कि मूल तत्व है। किंतु अनपढ़ कालिदास ने समझा कि ये राजकुमारी मेरी एक आंख फोड़ना चाहती है। इसलिए उसने राजकुमारी को दो उंगलियां दिखाईं।
तात्पर्य यह कि यदि तुम मेरी एक आंख फोड़ोगी। तो मैं तुम्हारी दोनों आंख फोड़ दूंगा। लेकिन विद्वानों की मंडली ने राजकुमारी को समझाया कि गुरूजी कह रहे है कि ब्रम्ह अकेला पूर्ण नहीं हो सकता। इसलिए मूलतत्व दो हैं ब्रम्ह एवं जीव। विद्योत्तमा को मानना पड़ा।
इसके बाद विद्योत्तमा ने दूसरे प्रश्न के लिए कालिदास को पांच उंगलियां दिखाईं। जिसका अर्थ था कि संसार में पांच तत्व ही प्रमुख हैं पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश। लेकिन कालिदास ने उसे भी उल्टा समझा।
उन्हें लगा कि ये मुझे थप्पड़ मारने को कह रही है। तो जवाब में कालिदास ने मुक्का दिखाया। जिसका अर्थ विद्वानों ने समझाया कि पांच तत्व अलग अलग अप्रभावी हैं। जब वे एक साथ मिलते हैं तभी सृष्टि का निर्माण होता है।
इसी प्रकार शास्त्रार्थ चलता रहा। विद्योत्तमा के गूढ़ प्रश्नों के कालिदास मूर्खतापूर्ण उत्तर देते रहे। किन्तु धूर्त विद्वान मण्डली उन्हें सही करती रही। अंततः विद्योत्तमा को हार मानकर कालिदास से विवाह करना पड़ा।
कालिदास को ज्ञान प्राप्ति
प्रथम रात्रि को ही कालिदास का भेद खुल गया। कमरे की खिड़की के बाहर एक ऊंट को देखकर विद्योत्तमा ने संस्कृत में प्रश्न किया की यह क्या है? उत्तर में कालिदास ने उष्ट्र के बजाय उट्र कहा।
जिससे विद्योत्तमा को पता चल गया कि यह मूर्ख है। उसने कालिदास को घर से निकाल दिया। यह अपमान कालिदास को सहन नहीं हुआ। वे मां काली की घोर आराधना करने लगे। जिससे प्रसन्न होकर मां काली ने उन्हें विद्वता एवं वाकसिद्धि का वरदान दिया।
विद्वान बनकर वे घर वापस लौटे तो उन्होंने “अनावृतम कपाटं द्वारं देहि” कहकर दरवाजा खुलवाया। जिसके जवाब में विद्योत्तमा ने “अस्ति कश्चिद कोपि वाग्विशेषः” कहकर दरवाजा खोला।
कालिदास की प्रमुख रचनाएँ
विद्योत्तमा के कहे चार शब्दों से कालिदास ने चार महान ग्रंथों की रचना की- कुमारसम्भव, मेघदूतम, अभिज्ञानशाकुंतलम, रघुवंशम। कालिदास की कुल सात रचनाएँ प्रसिद्ध और निर्विवाद हैं। इसके अलावा अन्य लगभग पच्चीस रचनाएँ कालिदास की कही जाती हैं। जिनके विषय में विद्वान एकमत नहीं हैं।
मालविकाग्निमित्रं
यह नाटक कालिदास की पहली रचना है। इसमें उन्होंने शुंगवंशी राजा अग्निमित्र और दासकन्या मालविका के प्रेम का बहुत ही सुंदर एवं भावपूर्ण वर्णन वर्णन किया है। यह काव्य प्रसाद गुण में सुंदर अलंकार पूर्ण एवं सरल पदविन्यास शैली में लिखा गया है।
विक्रमोर्वशीयम्
यह भी एक नाटक है। इसमें राजा विक्रमादित्य और स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी के प्रेम का वर्णन है। यह भी श्रृंगार रस का एक अनुपम ग्रंथ है। जो कथानक के साथ साथ अपनी लेखन शैली के कारण भी अत्यंत लोकप्रिय है।
अभिज्ञानशाकुंतलम
यह कालिदास का सबसे लोकप्रिय ग्रंथ है। इसका कई विदेशी भाषाओं यथा- जर्मन, फ्रेंच अंग्रेजी आदि भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इस ग्रंथ ने कालिदास को विश्व के सर्वश्रेष्ठ कवियों में प्रतिस्थापित कर दिया। इस ग्रंथ में भरतवंशी राजा दुष्यंत एवं ऋषिकन्या शकुंतला के प्रेम का वर्णन है।
इनके पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा। अभिज्ञानशाकुंतलम की प्रसंशा में कहा गया है
काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुंतला।
तत्रापि च चतुर्थो अंकः तत्र श्लोक चतुष्टयम्।।
कुमारसंभवम्
कालिदास द्वारा रचित यह एक महाकाव्य है। जिसमें भगवान शंकर एवं मां पार्वती के विवाह एवं कुमार कार्तिकेय के जन्म का वर्णन है। इस महाकाव्य में कालिदास ने शिव पार्वती के प्रेम विहार का बहुत खुलकर (अश्लील) वर्णन किया है।
कहा जाता है कि इस कारण से पार्वती जी ने इन्हें शाप दे दिया था। जिससे इन्हें कुष्ठ रोग हो गया। बाद में क्षमा याचना करने एवं रघुवंशम की रचना के बाद इनका कुष्ठ ठीक हुआ।
रघुवंशम
जनश्रुति है कि देवी पार्वती के शाप से मुक्ति के लिए उन्होंने रघुवंशम नामक महाकाव्य की रचना की। इसमें भगवान राम की चौदह पीढ़ियों का विस्तृत वर्णन है। यह महाकाव्य भी अपनी रचना शैली और अलंकार प्रयोग के लिए विख्यात है।
मेघदूतम
इस खण्डकाव्य में कालिदास की कल्पनाशीलता एवं काव्यप्रतिभा का पूर्ण संयोग देखने को मिलता है। इस खण्डकाव्य में कुबेर की नगरी अलकापुरी से निष्कासित एक यक्ष अपनी प्रियतमा को मेघ के माध्यम से बहुत सुंदर कवित्वपूर्ण भाषा में संदेश भेजता है।
मेघदूतम को दो भाग में लिखा गया है पूर्वमेघ और उत्तरमेघ। यह प्रेम एवं विरह का अत्यंत उत्कर्ष उदाहरण है।
ऋतुसंहार
इस खण्डकाव्य में ऋतुओं एवं उनमें होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों का सुंदर वर्णन है। कालिदास को प्रकृति का कवि भी कहा जाता है। प्रकृति के दृश्यों का जितना सुंदर और चित्रात्मक वर्णन कालिदास के काव्य में देखने को मिलता है उतना अन्य कहीं नहीं।
कालिदास की उपाधियां एवं प्रशस्ति
कालिदास को निम्न उपाधियों से विभूषित किया गया-
दीपशिखा कालिदास, रघुकार, कविकुलगुरु, कविताकामिनीविलास, उपमासम्राट आदि
विभिन्न कवियों ने कालिदास की प्रसंशा अलग अलग प्रकार से की है। आचार्य उदभट ने कहा है-
महिषं दधि सशर्करं पयः कालिदासकविता नवं वयः।
शारदेन्दुरबला च कोमला स्वर्गशेषमुपभुञ्जते जनः।।
हर्षचरित में बाणभट्ट ने कहा है–
निर्गतासु न वा कस्य कालिदासस्य सूक्तिषु।
प्रीतिर्मधुरसान्द्रासु मञ्जरीष्विव जायते।।
आचार्य दंडी ने अवंतिसुन्दरिकथा में लिखा है–
लिप्ता मधुद्रवेणासन् यस्य निर्विषया गिरः।
तेनेदं वर्त्म वैदर्भं कालिदासेन शोधितम्।।
अंग्रेज कवि Goethe ने शकुंतला की प्रसंशा में लिखा है-
Wouldst thou the young year
blossoms and the fruits of its decline
And all by which the soul is charmed
enraptured, fearted, fed.
Wouldst thou the earth and heaven
itself in one soul name combine ?
I name the, O’ Shakuntala
And all atonce is said.
कालिदास की मृत्यु
किंवदंती के अनुसार श्रीलंका के राजा कुमारदास कालिदास के अभिन्न मित्र थे। उनके आग्रह पर कालिदास कुछ समय के लिए श्रीलंका गए। वहां धन के लोभ में एक वेश्या ने उनकी हत्या करा दी।