लालच का फल- मोरल स्टोरी एक प्रेरणादायक कहानी है जो हमें लालच के दुष्परिणाम के विषय में बताती है। कहानियों के माध्यम से दी गयी शिक्षा का मानव मन पर अमिट प्रभाव पड़ता है। लालच का फल एक ऐसी ही रोचक और शिक्षाप्रद hindi story है।
एक गांव में रामू और श्यामू दो किसान रहते थे। दोनों अपने अपने खेतों में खूब मेहनत करते और फसल उगाते थे। लेकिन दोनों के स्वभाव में बड़ा अंतर था। जहां रामू विनम्र, दयालु, परोपकारी था वहीं श्यामू लालची और ईर्ष्यालु था।
रामू के पास ज्यादा खेती नहीं थी। वह केवल गुजारे लायक ही अनाज पैदा कर पाता था। फिर भी वह संतुष्ट और प्रसन्न रहता था। इतना ही नहीं वह यथाशक्ति दूसरों की मदद भी करता था। श्यामू के पास रामू से अधिक खेती थी। उसके खेतों में अनाज अधिक पैदा होता था। लेकिन वह अपनी स्थिति से खुश नहीं था।
वह हमेशा इसी जुगत में लगा रहता था कि किस प्रकार अधिक से अधिक धन प्राप्त किया जाय। एक दिन जब दोनों अपने खेतों से काम करके लौट रहे थे। तभी रास्ते में एक पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें एक महात्मा बैठे हुए मिले। श्यामू ने उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने घर चला गया।
जबकि रामू ने उन्हें प्रणाम किया और आग्रह करके उन्हें अपने घर ले आया। घर पर उसने उनकी बड़ी सेवा की।महात्मा रामू की सेवा और उसके स्वभाव से बहुत प्रसन्न हुए। जाते समय उन्होंने रामू को एक शंख देते हुए कहा, ” बेटा ! मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हूं। इसलिए तुम्हे यह चमत्कारी शंख दे रहा हूँ। इसे मैंने वर्षों की तपस्या के फलस्वरूप प्राप्त किया है।”
महात्माजी ने आगे कहा, ” इस शँख की विशेषता यह है कि इससे तुम जो भी मांगोगे यह तुम्हें दे देगा।” इतना कहकर महात्मा वहां से चले गए। अब तो रामू की सारी समस्यायें दूर हो गईं। उसको जो भी आवश्यकता होती वह शंख से मांग लेता। थोड़े दिनों में ही उसकी गणना गांव के धनी लोगों में होने लगी।
अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद वह धन का सदुपयोग दूसरों की मदद करने के लिए करता। इतना सब होने के बाद भी वह प्रतिदिन अपने खेतों पर काम करता था। श्यामू को उसकी उन्नति से ईर्ष्या होती थी। एक दिन उसने रामू से उसकी उन्नति की राज पूछा। सरल स्वभाव के रामू ने उसे सारी बात बता दी।
अब तो श्यामू को अपने उस दिन के व्यवहार पर बड़ा पछतावा हुआ। तभी एक दिन जब श्यामू खेतों से लौट रहा था। उसे वही महात्मा उसी पीपल के पेड़ के नीचे बैठे मिल गए। उन्हें देखकर श्यामू की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने सोचा कि वह भी महात्माजी की सेवा करके रामू की तरह इच्छा पूरी करने वाला शंख प्राप्त करेगा और गांव का सबसे अमीर आदमी बनेगा। वह महात्माजी के पैरों पर गिर पड़ा और जबर्दस्ती आग्रह कर के उन्हें अपने घर ले गया। वहां उसने उनकी खूब सेवा की।
सुबह महात्माजी जाने लगे तो वह बोला, “महात्माजी ! अपने आशीर्वाद के रूप में कुछ दे दीजिए। महात्माजी उसके मन की बात जान गए। वह मुस्कुराते हुए बोले, ” बेटा ! मेरे पास ये दो शंख हैं। एक शंख जो माँगोगे, वह दे देगा। दूसरा शंख जितना मांगोगे, उससे दो गुना देने की बात कहेगा।”
श्यामू ठहरा लालची व्यक्ति, उसने तुरंत दूसरा वाला शंख ले लिया। महात्माजी के जाने के बाद उसने शंख का परीक्षण करने का विचार किया। उसने शंख से एक बोरी गेहूं मांगा। शंख बोला, “एक बोरी की क्या बात है? आप दो बोरी ले लीजिए।” श्यामू बहुत खुश हुआ। उसने थोड़ी देर इंतजार किया लेकिन गेंहू की बोरी नहीं मिली।
उसने फिर से शंख से पांच हजार रुपये मांगे। शंख ने कहा, ” पांच हजार नहीं आप दस हजार लीजिये।” लेकिन इंतजार के बाद भी श्यामू को रुपये नहीं मिले। अब श्यामू परेशान होने लगा। वह शंख से जो भी मांगता, शंख उससे दुगुना देने के लिए कहता। परन्तु देता कुछ नहीं था। श्यामू शंख लेकर महात्माजी के पीछे भागा। गांव से थोड़ी दूर पर उसे महात्माजी जाते हुए मिल गए।
उसने महात्माजी को सारी बात बताई तो वे बोले, ” मैने तुम्हें पहले ही बता दिया था कि दूसरा शंख जितना मांगोगे उससे दुगुना देने के लिए कहेगा। मैंने ये नहीं कहा कि वह दुगुना देगा। लेकिन तुमने लालच के चक्कर में मेरी बात ध्यान से नहीं सुनी। अब कुछ नहीं हो सकता। अब तो तुम्हें जो मिला है उसी से संतोष करना पड़ेगा।” इतना कहकर महात्मा आगे बढ़ गए।
कहानी से सीख | Moral of Story
लालच का फल- मोरल स्टोरी हमें सिखाती है कि कभी भी ज्यादा का लालच नहीं करना चाहिए। अन्यथा जो मिल रहा है उससे भी हाथ धोना पड़ सकता है। संतोष सबसे बड़ा धन होता है।