हिन्दी दिवस के अवसर पर आज हम आपके लिए हिंदी दिवस पर कविता- Hindi Diwas Poem नामक पोस्ट लेकर आए हैं। जिसमें हिन्दी की दशा का वर्णन करती दो नई कविताएं हैं।
हिंदी दिवस पर कविता – 1
वास्तव में हमारे देश में हिन्दी की वर्तमान स्थिति बहुत सोचनीय है। कवि ने हिन्दी भाषा की स्थिति की तुलना कौरवों के दरबार में असहाय खड़ी द्रौपदी से की है। दोनों की स्थिति का तुलनात्मक चित्रांकन प्रस्तुत कविता में किया गया है–
बनी द्रौपदी खड़ी है हिंदी, इंगलिश खींचे चीर।
अंधा राजा, सभा है बहरी, किसे सुनाए पीर।।
इंग्लिश स्कूल बने हैं कौरव।
नष्ट कर रहे देश का गौरव।
निपट अकेली हिंदी रोये, भर नैनों में नीर।
अंधा राजा, सभा है बहरी, किसे सुनाए पीर।।
हिंदी के कर्ता-धर्ता सब बनकर पांडव दूर खड़े हैं।
हिंदी प्रेमी दरबारी सब बंधे हाथ मजबूर खड़े हैं।
इज्जत सारी दांव लग गयी, स्थिति है गंभीर।
अंधा राजा, सभा है बहरी, किसे सुनाए पीर।।
पदवी है महरानी की पर दासी सा व्यवहार।
हिंदी सहती देश में अपने कितना अत्याचार।
कहाँ गए अब किशन कन्हाई, कौन बढ़ाये चीर।
अंधा राजा, सभा है बहरी, किसे सुनाए पीर।।
इंग्लिश में जो बात कर रहा, वही बड़ा विद्वान।
देश में हिंदी भाषा का है, नहीं मान-सम्मान।
हिंदी लगती कड़वी उनको इंग्लिश जैसे खीर।
अंधा राजा, सभा है बहरी, किसे सुनाए पीर।।
अंग्रेजों ने भारत आकर हमें गुलामी थोपा।
जाते-जाते इंग्लिश रूपी पौधा देश में रोपा।
आज वही नासूर बना है, चुभता जैसे तीर।
अंधा राजा, सभा है बहरी, किसे सुनाए पीर।।
hindi diwas par kavita in hindi- 2
प्रस्तुत कविता में कवि ने हिन्दी भाषा के गौरव एवं महत्व का वर्णन करते हुए बताया है कि किस प्रकार हिन्दी पूरे भारत को एक सूत्र में बांधने का कार्य करती है–
आओ हम सब मिल हिंदी का करें मान-सम्मान।
हिंदी एक अकेली भाषा जोड़े हिंदुस्तान।।
तुलसी, सूर, कबीरा की भी हिंदी ही थी बानी।
नीतिपरक रहीम के दोहे कहते अजब कहानी।
सरस सवैया हिंदी में लिख अमर हुए रसखान।
हिंदी एक अकेली भाषा जोड़े हिंदुस्तान।।
आजादी के दीवानों ने हिंदी की अपनाया।
हिंदी में करते बातचीत सब हिंदी में ही गाया।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा आजादी का गान।
हिंदी एक अकेली भाषा जोड़े हिंदुस्तान।।
हिंदी में ही प्रेमचंद ने लिख दी अमर कहानी।
‘बूढ़ी काकी’, ‘कफ़न’, ‘ईद’ का नहीं है कोई सानी।
सरस सरल हिंदी ने कवि व लेखक दिए महान।
हिंदी एक अकेली भाषा जोड़े हिंदुस्तान।।
हिंदी से है हिन्द महासागर समुद्र का नाम।
हिंदी से है हिंदुस्तान, भारत का उपनाम।
एक सूत्र में बांधे हिंदी भाषा बड़ी महान।
हिंदी एक अकेली भाषा जोड़े हिंदुस्तान।।
कवि के बारे में
इन कविताओं के रचयिता श्री हरिशंकर दुबे जी हैं। जो मुख्यतः अवधी भाषा में सामाजिक समस्याओं एवं सामयिक विषयों पर कविताएं एवं व्यंग्य लिखते हैं।
हिन्दी दिवस पर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के दोहे
आधुनिक हिंदी कविता के पितामह कहे जाने वाले कवि और साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चन्द जी ने मातृभाषा के विषय में कुछ दोहे लिखे हैं। जो हिंदी दिवस के अवसर पर मातृभाषा हिंदी के महत्व को परिभाषित करते हैं। जिनको अर्थ सहित प्रस्तुत किया जा रहा है-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥
अर्थ- अपनी मातृभाषा की उन्नति ही सभी उन्नति का मूल है। अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन का दुख दूर नहीं हो सकता।
करहुँ बिलम्ब न भ्रात अब, उठहु मिटावहु शूल।
निज भाषा उन्नति करहु, प्रथम जो सब को मूल।।
अर्थ- भाइयों अब देर मत कर करो और मन के कष्ट को दूर करो। सबसे पहले अपनी हिंदी भाषा की उन्नति करो, जो सबका मूल है।
प्रचलित करहु जहान में, निज भाषा करि जत्न।
राज काज दरबार में, फैलावहु यह रत्न।।
अर्थ- विशेष प्रयास करके संसार में अपनी भाषा का प्रचार प्रसार करो। हिंदी भाषा रूपी इस रत्न शासकीय कार्यों, दरबार, समाज में इस को फैलाओ।
सुत सो तिय सो मीत सो, भृत्यन सो दिन रात।
जो भाषा मधि कीजिये, निज मन की बहु बात।।
अर्थ- पत्नी, पुत्र, मित्र और नौकरों से अपनी मातृभाषा में ही अपने मन की बात करनी चाहिए।
निज भाषा निज धरम, निज मान करम व्यवहार।
सबै बढ़ावहु बेगि मिलि, कहत पुकार पुकार।।
अर्थ- अपनी भाषा, धर्म, मान सम्मान, व्यवहार को सभी लोग मिलकर बढ़ाओ।
पढ़ो लिखो कोउ लाख विध, भाषा बहुत प्रकार।
पै जबहीं कछु सोचिहो, निज भाषा अनुसार।।
अर्थ- कोई कितना भी पढ़ लिख ले, बहुत सी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर ले। किन्तु जब भी कुछ सोचेगा तो अपनी भाषा में ही सोचेगा।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन॥
अर्थ- अंग्रेजी भाषा पढ़कर यद्यपि बहुत से गुण प्राप्त होते हैं। किंतु यदि अपनी हिंदी भाषा का ज्ञान नहीं है तो वह व्यक्ति हीन ही रहेगा।