दोस्तों! आज हम आपके लिए हास्य व्यंग्य की कविताएं- hasya kavita लेकर आयें हैं। जो वर्तमान सामाजिक स्थितियों पर करारा व्यंग्य करती हैं। ये हिन्दी कविताएं हास्यपूर्ण ढंग से आज के समय की समस्याओं को प्रस्तुत करती हैं। साथ ही हमें सोचने पर मजबूर भी करती हैं।
1- अस्पताल -hasya kavita
किसी समय डॉक्टरों को भगवान के समतुल्य माना जाता था। लेकिन आज चिकित्सा भी एक व्यवसाय का रूप ले चुकी है। जिसका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक धन कमाना है। आज स्थिति यह है कि एक सामान्य व्यक्ति प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने में सक्षम नही है और सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था भगवान भरोसे है। इसी चिकित्सा व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य करती लोकभाषा की यह कविता– hasya kavita प्रस्तुत है—
अस्पताल मा पहुंच के भइया, होई गा अइसन हाल।
पहिले के हम सेठ रहिन, अब होई गैना कंगाल।
आईसीयू कै देख के खर्चा, मरिगै हमरौ नानी।
सारा जेबवा खाली होइगा, बची न कौड़ी कानी।
रेफर किहे पर मिलै कमीशन, ऐसा गोरखधंधा।
घर वाले सब भटक रहे अस, जस लाठी बिन अंधा।
कैप्सूल, टिकिया हैं इतनी, जस हम चबी चबैना।
देख के खर्चा घर वालेन के भर भर आवैं नैना।
कदम कदम पर जांच हैं एतनी जियरा होइगा तंग।
अस्पताल से लौट जो आवै जानौ जीतिस जंग।
पचास रुपया केर दवाई, पांच सौ रुपया फीस।
भीतर से मन रोय रहा है, बाहर निकलै खीस।।
नरसै डांट पिलाय रही हैं सिलवट डारे माथे।
जमादरनियाँ मारै दौड़ें, झाड़ू लैके हाथे।।
कहैं बुढ़ौनू सुधर जाव अब नहीं लगाउब पोछा।
हमरौ हिस्सा दै के जायो, नहीं उचारब मोछा।।
आठ रुपैया के पत्ता मा, छपा है रुपया साठ।
मेडिकल वाले मौज उडावै, देखौ इनके ठाठ।।
दीन धरम सब नाश होई गवा, होइगा हाल बेहाल।
जेहिके खातिर लुटे नरायन, गवा काल के गाल।।
येही बदे अब हियां आय के मांग रहिन है भीख।
जात जात बतलाय रहिन है, मानो हमरी सीख।।
जनम मरन ईश्वर के हाथे, बाकी लूट कै धंधा।
जौ किरपा उनकै होई जाई, कटि जइहैं सब फंदा।।
महंगाई की मार- kavita in hindi
हमारे देश में किसान की दशा सदैव सोचनीय रही है। किसान की मेहनत के बराबर उसे आय नहीं प्राप्त होती है। कभी दैवीय आपदाएं किसान के सपनों को चकनाचूर करती हैं तो कभी सरकारी योजनाएं। जै किसान और अन्नदाता जैसी उपमाएं केवल शाब्दिक महिमामंडन तक ही सीमित हैं।
ऐसे ही महंगाई से त्रस्त एक किसान की व्यथा का अवधी भाषा की इस व्यंग्यात्मक कविता– hasya kavita in hindi में मार्मिक चित्रण किया गया है—
आज किसानी महंगी होइगै,
जीवन मा अस तंगी होइगै।
घर कै इज्जत नंगी होइगै।
जइसे तइसे करब गुजारा, धर साधू का भेष।
तुमहूँ छोड़ किसानी बेटवा, भागौ अब परदेश।।
खाद पांस सब महंगा होइगा, महंगे होइगें बीज।
महंगी होइगै आज मजूरी, महंगी है सब चीज।।
गन्ना की पेमेंट फंसी है, किसना सिर धुन नोचै केश।
तुमहूँ छोड़ किसानी बेटवा, भागौ अब परदेश।।
अरहर, मटर खेत मा बोई, नीलगाय चर जावें।
यदा-कदा जौ उनका मारौ, पुलिसै आंख देखावै।।
कइसे आपन फसल बचाई, प्रश्न यही अवशेष।।
तुमहूँ छोड़ किसानी बेटवा, भागौ अब परदेश।।
हमसे अच्छा बुधुआ चपरासी, वेतन पावै अच्छी खासी।
वहिके लरिका ठाठ-बाठ से हमरे हैं दरवेश।
तुमहूँ छोड़ किसानी बेटवा, भागौ अब परदेश।।
बड़का बेटवा दिल्ली पहुंचा, छोटका गा मुल्तान।
रघुवा के दूनों बेटवन के पक्के बने मकान।
अपनी देखौ टूट मड़ैया, रातौ दिन कै क्लेश।।
तुमहूँ छोड़ किसानी बेटवा, भागौ अब परदेश।।
बिना कमीशन काम चलै न यह सरकारी नीति।
क्रेडिट कार्ड से लोन निकारब, मिर्चा जैसन तीत।
एहिते बेटवा छोड़ दियौ तुम, यह गौंवा यह देश।
तुमहूँ छोड़ किसानी बेटवा, भागौ अब परदेश।।
परिवार- हास्य व्यंग्य की कविताएं-hasya kavita
ग्रामीण क्षेत्रों से बच्चे रोजगार के लिए बड़े शहरों में चले जाते हैं और घर में रह जाते हैं बुजुर्ग और लाचार माँ बाप। आज के आर्थिक युग की इस बहुत बड़ी समस्या को चित्रित करती यह हास्य व्यंग्य कविता—
बेटवा पांच पतोहू पांचै,
नौ नातिन कै मेला है।
जीवन की सांझी बेला मा,
ई मनवा बहुत अकेला है।।
पाँचौ बेटवा परदेश रहैं,
मेहरारू अपने साथ लिए।
हम बूढ़ी बुढ़वा गांव रही,
ऊपर वाले कै आस लिए।।
घर दुआर खेती बाड़ी कै,
बहुतै बड़ा झमेला है।
जीवन की सांझी बेला मा,
ई मनवा बहुत अकेला है।।
रुपिया पैसा कै कमी नहीं,
लरिकै हर माह भेजावत हैं।
पर इन कागज के नोटन से
उ प्यार कहां मिल पावत है।।
भरा पुरा परिवार अहै,
पर तनहाई का रेला है।
जीवन की सांझी बेला मा,
ई मनवा बहुत अकेला है।।
बड़ी बहुरिया चतुर बड़ी,
वह सबपै हुकुम चलावत है।
मंझली है कुछ तुनकमिजाज,
पर आपन धरम निभावत है।।
छोटकी कै स्वभाव ऐसा,
जस नीमी चढ़ा करेला है।
जीवन की सांझी बेला मा,
ई मनवा बहुत अकेला है।।
नातिउ सब बड़े पढाका हैं,
सबके सब बड़े लड़ाका हैं।
छोट बड़े कै लाज नहीं,
फूटैं अस जइस पटाखा हैं।।
लरिकन कै धमाचौकड़ी मा,
रातौ दिन शोर मचेला है।
जीवन की सांझी बेला मा,
ई मनवा बहुत अकेला है।।
लरिकै जब छुट्टी आय जायँ,
हमरी बुढ़िया पर गाज गिरै।
करैं काम सब दौड़ दौड़,
वै खड़े खड़े जलपान करैं।।
बेटवा पतोहु की खातिर मा
आफत मा जान फँसेला है।
जीवन की सांझी बेला मा,
ई मनवा बहुत अकेला है।।
—श्री हरिशंकर दुबे—