आज हम आपके लिए मूर्ख बंदर और राजा – Moral Story नामक कहानी लेकर आये हैं। यह कहानी रोचक एवं मनोरंजक तो है ही। साथ ही एक महत्वपूर्ण शिक्षा भी प्रदान करती है।
मूर्ख बंदर और राजा – Moral Story
एक राजा था। उसे जानवर पालने का बहुत शौक था। अपने महल में उसने तरह तरह के जानवर पाल रखे थे। वह उनका बहुत खयाल रखता था। जानवरों की देखभाल के लिए उसने बहुत से आदमी रखे हुए थे।
अगर उसे खबर लग जाती कि राज्य में कहीं कोई जानवर है जिसमें कुछ खासियत है या किसी भी तरह प्रशिक्षित है। तो वह उसे मुंहमांगा दाम देकर खरीद लेता था। राजपरिवार के लोग और मंत्री आदि राजा किस सनक से बहुत परेशान थे।
वह जानवरों को राजदरबार में भी ले जाता था। जिससे राजकाज प्रभावित होता था। लेकिन भयवश कोई कुछ बोल नहीं पाता था।
एक दिन दरबार में दूसरे राज्य से एक व्यक्ति आया। उसके साथ एक बंदर था। वह राजा को उस बंदर को बेचना चाहता था। राजा ने दाम पूछा तो उसने एक हजार सोने की अशर्फियाँ बताईं।
डैम सुनकर राजा चौंक गया। उसने कहा कि इसमें ऐसी क्या खासियत है कि इसका दाम इतना महंगा है ? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “महाराज ! यह कोई साधारण बंदर नहीं है। यह तलवारबाजी में पूर्ण प्रशिक्षित है। यह बन्दर पहरेदारी के लिए पूर्ण रूप से तैयार किया गया है।”
“इसके रहते आपको कोई छू भी नहीं सकता। सोते जागते हर समय यह आपके साथ रहेगा और आपकी रखवाली करेगा।” राजा बहुत खुश हुआ। उसने एक हजार सोने की अशर्फियाँ देकर उस बंदर को खरीद लिया।
राजा ने बंदर को अपना निजी अंगरक्षक नियुक्त कर दिया। बन्दर सचमुच बहुत योग्य था। उसके कारण कोई भी राजा की आज्ञा के बिना उनके पास नहीं जा पाता था। बन्दर अपने साथ सदैव नंगी तलवार रखता था।
एक दिन भोजन के बाद राजा दोपहर में आराम कर रहे थे। थोड़े समय बाद उन्हें नींद आ गयी। बन्दर तलवार लिए उनकी पहरेदारी कर रहा था। अचानक उसकी नजर पड़ी कि राजा की नाक पर एक मक्खी बैठी है। बन्दर को यह बर्दाश्त कैसे होता कि उसके रहते कोई राजा को छू ले।
उसने मक्खी को उड़ा दिया। थोड़ी देर बाद मक्खी फिर से राजा की नाक पर बैठ गयी। बन्दर ने फिर उसे उड़ा दिया। लेकिन मक्खी कहाँ मानने वाली थी। वह फिर से बैठ गयी। फिर तो बन्दर को क्रोध आ गया।
उसने तलवार उठायी और राजा की नाक पर बैठी मक्खी पर वार कर दिया। मक्खी तो उड़कर बच गयी। लेकिन राजा की नाक नहीं बच पाई। राजा की नाक कट गई।
सीख – Moral
मूर्ख सेवक और मूर्ख मित्र कभी नहीं रखना चाहिए। ये सदैव संकट के कारण होते हैं। कहा भी गया है-
मूर्खजनैः सह मित्रता नोचिता।