आज हम आपके लिए दशरथ कृत शनि स्तोत्र- dashrath krit shani stotra लाये हैं। जिसके नियमित पाठ से शनि की साढ़ेसाती, ढ़ैया, अथवा अन्य शनि ग्रह के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
dashrath krit shani stotra
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥
दशरथ उवाच:
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।
अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥
दशरथ कृत शनि स्तोत्र की कथा
अयोध्या के राजा दशरथ परम प्रतापी और प्रजावत्सल थे। पूरे आर्यावर्त पर उनका शासन था। वे प्रजा के सुख दुख का पूरा ध्यान रखते थे। वीर इतने थे कि दैत्यों से युद्ध के लिए स्वयं देवराज इंद्र उन्हें आमंत्रित करते थे।
उनके राज्य के ज्योतिषियों ने एक बार देखा कि शनि देव कृतिका नक्षत्र के अंतिम चरण को पार कर रोहिणी नक्षत्र का भेदन करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं।
यदि शनि रोहिणी नक्षत्र का भेदन कर दें तो यह एक अशुभ स्थिति होती है। जिसे रोहिणी शकट भेदन कहते हैं। ज्योतिषियों ने बताया कि इस योग के प्रभाव से राज्य में बारह वर्ष तक अकाल और सूखा पड़ेगा।
जिससे प्रजा का जीवन घोर संकट में आ जायेगा। राजा दशरथ बहुत चिंता में पड़ गए। प्रजा की रक्षा करना राजा का कर्तव्य होता है। यह सोचकर राजा दशरथ अपने दिव्य रथ पर बैठकर अंतरिक्ष में पहुंच गए।
वहां वे धनुष पर बाण चढ़ाकर रोहिणी नक्षत्र के सामने खड़े हो गए। जब शनिदेव वहां पहुंचे तो महाराज दशरथ को रोहिणी नक्षत्र की रक्षा में तत्पर देखकर वे सारी बात समझ गए और बोले-
“हे राजन ! मैं आपकी प्रजावत्सलता से अत्यंत प्रसन्न हूँ। अपनी प्रजा की रक्षा के लिए आप प्रकृति के नियमों से भी लड़ने के लिए तत्पर हैं। राजन ! वर मांगो।”
महाराज दशरथ ने हाथ जोड़कर कहा, “यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो आप कभी रोहिणी शकट भेदन न करें।” शनिदेव के एवमस्तु कहने पर राजा दशरथ ने प्रसन्न होकर इसी स्तोत्र से उनकी स्तुति की।
जिससे शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए और बोले, “जो भी इस स्तोत्र से मेरी स्तुति करेगा। उससे साढ़ेसाती, ढैया अथवा गोचर के शनि के बुरे फल नहीं प्राप्त होंगे। शानिजन्य पीड़ा कभी उसे प्राप्त नहीं होगी।”