चिंता एक बीमारी
चिंता एक बीमारी है हम सभी ने कही न कही यह वाक्यांश सुना या पढा जरूर होगा. ये भी सुना होगा – चिंता चिता के समान होती है। अब तो कई स्वास्थ्य सर्वेक्षण भी यह साबित करने के लिए काफी हैं कि हमारी ८० फीसदी स्वास्थ्य समस्याओ के पीछे कोई मानसिक कारण होता है।
चिंता एक ऐसा ही मानसिक कारण है। वैसे तो चिंता एक सामान्य मानसिक प्रक्रिया है।जब हम किसी परिस्थिति विशेष के विषय में गहराई से चिंतन करते हैं तो उसे चिंता कहते है परन्तु जब यह चिंता हमारी आदत में शामिल हो जाती है तो यही चिंता एक बीमारी का रूप ले लेती है जिसे एंजाइटी कहते है।
जो घबराहट, बेचैनी, किसी कार्य में मन न लगना, हमेशा अनजाना डर बना रहना, उच्च या निम्न रक्तचाप, धड़कन का बढ़ना आदि अनेक शारीरिक या मानसिक समस्याएँ पैदा करती है। अत्यधिक चिंता अवसाद (dipression) का रूप ले लेती है।
कभी कभी मनुष्य अवसाद में आत्महत्या तक कर लेते हैं या बार बार इस तरह के विचार उनके मन में उत्पन्न होते हैं। इतनी अधिक ख़तरनाक है चिंता। कहा भी गया है—
चिता है चीज़ ऐसी जो मुर्दे को जलाती है।
बड़ी है इसलिए चिंता ये ज़िन्दे को जलाती है।।
विश्लेषण करने पर हम पाएंगे कि ४० फीसदी चिंता हमारे गलत नजरिए का परिणाम होती है, शेष कुछ वास्तविक समस्याओं के कारण। चिंता के कई कारण हो सकते हैं। कुछ कारण नीचे दिए गये हैं—
परिवर्तन को अस्वीकार करने की प्रवृत्ति- परिवर्तन संसार का नियम है परंतु हमारा स्वभाव हमेशा स्थायित्व खोजता है। जैसे ही हमारी वर्तमान स्थिति में परिवर्तन होता है, हम भविष्य के प्रति चिंतित हो जाते हैं।हम भूल जाते हैं कि हर परिवर्तन अपने साथ कुछ अवसर लेकर आता है।
चीज़ों का नकारात्मक मतलब निकालना– हम कई बार चीज़ों को उस रूप में नहीं लेते जैसी वे हैं, बल्कि उनका मतलब अपनी कल्पना के आधार पर निकालते है। उदाहरण के लिए हमने किसी को फोन किया और फोन स्वीकार नही हुआ तो हम तुंरत इसका नकारात्मक मतलब निकालने लगते हैं कि कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गयी। जबकि हम यह भी सोच सकते हैं कि शायद वह व्यक्ति कही और व्यस्त होगा।
अत्यधिक सोचने की प्रवृत्ति– कुछ लोग परिस्थितियों या समस्याओं के बारे मे कुछ ज्यादा ही गम्भीरता से सोचते हैं। ऐसे लोग सामान्य परिस्थिति को भी बढ़ा-चढ़ाकर देखते है , जबकि हमें स्थिति का सही आकलन करके निर्णय करना होता है।
वित्तीय चिंता- लोगों की चिंता का बहुत बड़ा हिस्सा वित्तीय समस्याएं होती है। वैसे ऐसी समस्याओं की चिंता होना स्वाभाविक है, लेकिन हमें इसकी चिंता न करके हल खोजना चाहिए। वित्तीय जरूरतों का आकलन करके उन्हें पूरा करने की कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए। जब भी ऐसी चिंताएं परेशान करें, हमें इसके दुष्परिणामों के बारे में स्वयं को समझाना चाहिए।
आइए, अब हम उन तरीकों के बारे मे जानते हैं जिनकी मदद से इस बीमारी से मुक्ति पा सकते हैं-
व्यस्त रहें, मस्त रहें– किसी भी प्रकार की चिंता से मुक्ति का सर्वोत्तम साधन खुद को व्यस्त रखना है। हमें खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से व्यस्त रखना है।
कई बार हम शारीरिक रूप से तो किसी काम में संलग्न होते हैं लेकिन हमारा मन कुछ सोचने में लगा होता है। हमें ऐसी परिस्थितियों से बचना चाहिए।
शारीरिक व्यायाम– शारीरिक व्यायाम जैसे-दौड़ना,योगा, खेलकूद हमें चिंता की अवस्था से निकालने मे सहायक है। शारीरिक गतिविधियों से हमारा शरीर तो स्वस्थ होता ही है साथ ही साथ इससे मस्तिष्क में आक्सीजन और रक्त का प्रवाह बढ़ता है, जिससे हमारा मस्तिष्क तनावमुक्त होता है।
चिंता का विश्लेषण एवं निर्णय लेना – किसी भी प्रकार की चिंता हो , हमें उसका पूरे तथ्यों के आधार पर विश्लेषण करना चाहिए। एक बार विश्लेषण करने के बाद हमें खुद को उससे मिलने वाले सबसे बुरे परिणाम के लिए तैयार करना चाहिए। हमें इस बुरे परिणाम को बेहतर बनाने के लिए निर्णय लेने चाहिए।एक बार जब हम निर्णय कर लेंगे तो पाएंगे कि काफी हद तक चिंताएं समाप्त हो चुकी है।
धार्मिक आस्था– धार्मिक आस्था ऐसी चिंताओं को रोकने में सहायक होती हैं जो परिणामों से जुड़ी होती हैं। ऐसी स्थिति में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम केवल किसी चीज के लिए परिश्रम और प्रयास कर सकते हैंपरंतु उनके परिणाम हमारे हाथ में नहीं होते। ऐसी स्थिति में हमें परिणाम की चिंता न करके उसे ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए।
तो इन बातों का ध्यान रखकर इस भयानक बीमारी से बचिए।
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लेखक– सुधांशु मिश्र
अरे भैया जी