आज हम आपके लिए Bhojan Mantra– भोजन मंत्र एवं सही भोजन विधि नामक पोस्ट लेकर आये हैं। क्योंकि हमारे विद्यालयों में भोजन से पूर्व भोजन मंत्र पढ़ने की परंपरा है। जो bhojan mantra पढ़ा जाता है, वास्तव में वह भोजन का मंत्र नहीं है। बल्कि वह कृष्ण यजुर्वेद से ली गयी प्रार्थना है। जो गुरु शिष्य सामूहिक रूप से करते हैं-
सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यम् करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।।
अर्थ- हमारी साथ-साथ रक्षा करें। हमारा साथ-साथ पालन करें। हम दोनों को साथ-साथ वीर्यवान (पराक्रमी) बनाएं। हम जो कुछ पढ़ते हैं, वह तेजस्वी हो। हम गुरु और शिष्य एक दूसरे से द्वेष न करें।
यह इस मंत्र का अर्थ है। वस्तुतः यह एक प्रार्थना है जो गुरु शिष्य अपने कल्याण हेतु करते हैं। किसी कारणवश इसका समय भोजन के पूर्व रखा गया। इसलिए इस मंत्र को भोजन मन्त्र समझ लिया जाता है।
जबकि हमारे शास्त्रों में भोजन का मंत्र और भोजन की विधि अलग ही दी गयी है।
भोजन विधि और भोजन मन्त्र – Bhojan Mantra
भोजन से पूर्व हाथ पैर धोकर मुंह को अच्छे से साफ करना चाहिए। फिर कुल्ला करके ओम् भूर्भुवः स्वः इस मंत्र से दो बार आचमन करना चाहिए। उसके पश्चात आसन पर बैठकर भोजन की थाल के चारों ओर जल से एक चौकोर घेरा बनाना चाहिए।
उसके बाद भोजन पात्र से थोड़ा हटकर जमीन पर जल छिड़कना चाहिए। उस पर निम्न मंत्र पढ़कर तीन ग्रास (कौर) निकालना चाहिए-
ओम् भूपतये स्वाहा।
ओम् भुवनपतये स्वाहा।
ओम् भूतानांपतये स्वाहा।
इन तीन मंत्रों से पृथ्वी सहित चौदह भुवनों एवं सभी जीवों के स्वामी परमात्मा तृप्त हो जाते हैं। जिससे समस्त चराचर विश्व तृप्त हो जाता है।
पंच प्राणाहुति
इसके बाद हाथ में थोड़ा सा जल लेकर ओम् अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा इस मंत्र से एक बार फिर से आचमन करना चाहिए। इसके बाद मौन होकर बेर के बराबर के पांच ग्रास मौन होकर निम्न मंत्र पढ़ते हुए ग्रहण करे। इन्हें पंच प्राणाहुति भी कहते हैं।
ओम् प्राणाय स्वाहा।
ओम् अपानाय स्वाहा।
ओम् व्यानाय स्वाहा।
ओम् उदानाय स्वाहा।
ओम् समानाय स्वाहा।
इसके बाद हाथ धोकर प्रेमपूर्वक प्रसन्न मन के अन्न की प्रसंशा करते हुए भोजन ग्रहण करे। जिनके पिता अथवा बड़े भाई जीवित हों। वे केवल प्राणाहुति तक ही मौन रहें।
भोजन के अंत में बेर के बराबर भोजन थाली में बचा लें। फिर उसे दाहिने हाथ की हथेली पर रखकर उसी में थोड़ा सा जल रखकर निम्न मंत्र पढ़ें–
अस्मत्कुले मृता ये च पितृलोकविवर्जिताः ।
भुञ्जन्तु मम चोच्छिष्टं पात्रादन्नं बहिःकृतम् ।।
उसे जमीन पर रख दें। ये उच्छिष्ट भोजन अपने कुल पूर्वजों के लिए अथवा जो निम्न योनियों में विचरण कर रहे हैं। उनके निमित्त निकाला जाता है।
तदुपरांत दाहिने हाथ में जल लेकर ओम् अमृतापिधानमसि स्वाहा इस मंत्र को पढ़कर आधा जल पी लेना चाहिए। शेष आधे जल को निम्न मंत्र पढ़ते हुए निकाले गए उच्छिष्ट अन्न पर छिड़क देना चाहिए–
रौरवेऽपुण्यनिलये पद्मार्बुदनिवासिनाम् ।
अर्थिनामुदकं दत्तमक्षय्यमुपतिष्ठतु ।।
विभिन्न नरकों में निवास करने वाले प्राणियों के निमित्त यह जल दिया जाता है।
इसके बाद निकाले गए अन्न को कौवों को दे देना चाहिए। फिर अच्छी तरह हाथ मुंह धोकर कुल्ला करने चाहिए। भोजनोपरांत कम से कम सौ कदम टहलना चाहिए।
भोजन पचाने का मंत्र
भोजन के पश्चात भोजन को पचाने के लिए निम्न मंत्र पढ़कर तीन बार पेट पर हाथ फेरने से भोजन जल्दी और सही प्रकार से पचता है–
अगस्त्यं वैनतेयं च शनिं च वडवानलम्।
अन्नस्य परिणामार्थं स्मरेद् भीमं च पञ्चमम्।।
यह bhojan mantra सहित शास्त्रों में वर्णित सनातन भोजन विधि है।