देवरहा बाबा की जीवनी- Devraha baba से पहले यह एक घटना जान लेना आवश्यक है. आपातकाल के बाद आम चुनाव में हुई हार से व्यथित इंदिरा गांधी अगले चुनाव में जीत को लेकर आश्वस्त नहीं थीं। वह किसी संबल की तलाश में थीं।
तब किसी ने उन्हें वृंदावन में यमुना तट पर रहने वाले एक सिद्ध महात्मा से मिलने का परामर्श दिया। इंदिरा जी अपने कुछ प्रमुख लोगों के साथ उन महात्मा के दर्शन के लिए यमुना तट पर पहुंची। वहां उन्हें नदी के किनारे लगभग बारह फुट ऊंचे एक मचान पर विराजित जटा जूट धारी एक महात्मा के दर्शन हुए।
थोड़ी सी बातचीत के बाद ही इंदिरा जी उनसे बहुत प्रभावित हुईं। महात्मा ने उन्हें अपना पंजा उठाकर आशीर्वाद दिया। अगले चुनाव में इंदिराजी ने हाथ के पंजे को ही अपना चुनाव निशान बनाया और बड़ी जीत दर्ज की।
वह महात्मा थे देवरहा बाबा । उनके पास आने वाले लोगों में केवल सामान्य जन ही नहीं बल्कि देश की कई विशिष्ट हस्तियां भी शामिल थीं। बीसवीं सदी के एक बड़े कालखंड पर अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले इस संत को सचमुच कालजयी की संज्ञा दी जा सकती है।
देवरहा बाबा का जीवन परिचय
devraha baba age
देवरहा बाबा (devraha baba) के प्रारंभिक जीवन के विषय में कुछ पता नहीं चलता। यहां तक कि उनकी सही उम्र के विषय में भी प्रामाणिक रूप से कुछ भी ज्ञात नहीं है। कुछ लोग उनकी उम्र 900 वर्ष कुछ 250 वर्ष तो कुछ लोग 500 वर्ष बताते हैं। यहां भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का यह कथन प्रामाणिक है — जब मैं पहली बार अपने पिता जी के साथ उनसे मिला था तो उनकी उम्र 74 वर्ष थी। मेरे पिता की उम्र भी अधिक थी। उन्होंने उनकी उम्र 150 वर्ष आंकी थीं।
निष्कर्ष: कुछ नहीं कहा जा सकता जो व्यक्ति 150 वर्ष जीवित रह सकता है वह 250 और अधिक भी जीवित रह सकता है। ज्ञात तथ्यों के आधार पर वह “नाथ” नदौली ग्राम, लार रोड, जिला देवरिया के रहने वाले थे।अनेक वर्षों तक विभिन्न स्थानों पर साधना करने के उपरांत वे पूर्वी उत्तप्रदेश के देवरिया जिले की सलेमपुर तहसील के एक गांव मईल में सरयू नदी के तट पर अवस्थित हुए।
यहां प्रवास के संबंध में भी एक जन श्रुति है कि प्रतिवर्ष सरयू की कटान में इस गांव की बहुत सारी भूमि नदी में समा जाती थी। यहां के लोगों के दुख को देखकर बाबा ने कहा कि यहीं सरयू के तट पर मेरी कुटिया डाल दो। फिर कटान नहीं होगी।
लोगों ने बाबा की कुटिया वहीं डाल दी। सचमुच उसके बाद सरयू ने कभी उस कुटिया की सीमा रेखा नहीं लांघी। नदी की रेत को जनभाषा में देवरा कहते हैं वहां रहने के कारण बाबा को देवरहा बाबा कहा जाने लगा। कुछ लोगों का मत है कि देवरिया क्षेत्र में रहने के कारण बाबा को देवरहा बाबा कहा जाता है। कुछ भी हो वे देवरहा बाबा के नाम से देश ही नहीं वरन विदेशों में भी प्रसिद्ध थे।
1911 में जब जार्ज पंचम भारत कि यात्रा पर आ रहे थे तो उन्होंने भारत के संतों के बारे में अपने भाई से पूछा कि भारत के संत सचमुच महान होते हैं तो प्रिंस फिलिप ने उत्तर दिया, हां। कम से कम तुम देवरहा बाबा से जरूर मिलना। जार्ज पंचम भारत आकर देवरहा बाबा से मिले और प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।
बाबा का व्यक्तित्व- devraha baba
बाबा का व्यक्तित्व ऐसा था कि लोग एक बार मिलकर ही प्रभावित हो जाते थे। महान योगी होकर भी वे सर्वसाधारण से बड़े प्रेम और सरलता से मिलते थे। स्मरण शक्ति इतनी तेज़ थी जिससे मिलते उसके दादा परदादा तक के बारे में बता देते थे। दिल खोलकर हंसते और खूब बातें करते।
बाबा बड़े दयालु भी थे। कोई दीन दुखी जो भी फरियाद लेकर आता वो उसे पूरा कर देते। वे अंतिम दिनों में कमर से आधा झुककर चलने लगे थे यद्यपि वे बलिष्ठ शरीर के स्वामी थे। लकड़ी का मचान ही आजीवन उनका आश्रय स्थल रहा। वे प्राय: निर्वस्त्र रहते या केवल एक मृगचर्म धारण करते थे। मचान से वे केवल स्नान के लिए ही उतरते थे।
अलौकिक शक्तियों के स्वामी
देवरहा बाबा को अनेक सिद्धियां प्राप्त थीं।वे लोगों के बिना बताए ही उनके मन की बातें जान लेते थे। उन्हें भूख प्यास पर विजय प्राप्त थी। आजीवन उन्होंने अन्न नहीं ग्रहण किया। वे केवल दूध और शहद पीते थे। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था।
लोगों के कथनानुसार उन्हें आकाशगमन, जल पर चलने,एक साथ दो स्थानों पर उपस्थित होने की सिद्धियां प्राप्त थीं। बाबा तीस मिनट तक जल के भीतर बिना सांस लिए रह सकते थे।
कुंभ, वृंदावन एवं अन्य स्थानों पर जाते थे परन्तु कभी किसी ने उन्हें सवारी पर बैठे नहीं देखा। वे पेड़, पौधों एवं जीव जंतुओं की भाषा समझ लेते थे और उनसे बातें करते थे। उनके आश्रम के बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। चारों ओर सुगंध का वातावरण रहता था।
मिलने आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को वे प्रसाद देते थे। प्रसाद देने के लिए वे मचान के खाली स्थान में हाथ रखते और जब उठाते तो उनके हाथ में फल, मिठाई या अन्य कोई पदार्थ देखकर लोग आश्चर्यचकित हो जाते।
योगिराज श्री देवरहा बाबा के चमत्कार- Miracles of devraha baba
देवरहा बाबा अष्टांग योग में पूर्ण पारंगत थे। उनका जीवन चमत्कारों से भरा था। जिनमें एक का वर्णन दस वर्षों तक उनकी सेवा में रहने वाले मार्कण्डेय सिंह के शब्दों में इस प्रकार है —
मुझे अच्छी तरह याद है और मैं वहां मौजूद भी था। सन 1987 की बात है। जून का महीना था।वृंदावन में यमुनापार देवरहा बाबा का डेरा लगा था। अधिकारियों में अफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन के लिए आना था।
प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई थी। आला अफसरों ने हेलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के आदेश दिए। इसकी भनक बाबा को लगी। बाबा ने पुलिस के एक बड़े अफसर को बुलाया और पूछा पेड़ क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है।
बाबा बोले तुम यहाँ अपने प्रधानमंत्री को लाओगे। उनकी प्रसंशा पाओगे। पीएम का नाम भी होगा कि साधु संतों के पास जाता है। लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा। वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं क्या जवाब दूँगा? नहीं, यह पेड़ नहीं काट जाएगा।
अफ़सर ने अपनी मजबूरी बताई कि यह आदेश दिल्ली से आए अफ़सरों का है। इसलिए इसे काटना पड़ेगा और फिर पूरा पेड़ तो काटना नहीं है केवल एक टहनी ही काटनी है, लेकिन बाबा टस से मस नहीं हुए। उन्होंने कहा ये पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है।
दिन रात मुझसे बातें करता है। ये पेड़ नहीं कटेगा। इस घटनाक्रम से अफ़सरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी। आख़िरकार बाबा ने ही तसल्ली दी और कहा घबरा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा। तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैन्सल करा देता हूँ। आश्चर्य की बात है की दो घंटे बाद ही पीएम कार्यालय से रेडीयोग्राम आ गया कि कार्यक्रम स्थगित हो गया है। कुछ हफ़्तों बाद राजीव गांधी वहाँ आए लेकिन पेड़ नहीं कटा। ये बाबा का चमत्कार ही था।
डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद दो या तीन साल की उम्र में अपने माता पिता के साथ देवरहा बाबा के दर्शन के लिए गए थे। उन्हें देखते ही बाबा बोले ये तो राजा बनेगा। डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रपति बनने के बाद कुंभ में उनका पूजनकर धन्यवाद दिया था।
देवरहा बाबा की शिक्षाएँ – devraha baba teachings
देवरहा बाबा रामभक्त थे। इसीलिए सरयू किनारे वास करते थे। वे रामानंदाचार्य की परम्परा के संत थे। उनके मन में सदा राम नाम का वास रहता था। देवरहा बाबा का मंत्र था-
एक लकड़ी ह्रदय को मानो, दूसर राम नाम पहचानो।
राम नाम नित उर पे मारो, ब्रम्ह दिखे संशय न जानो।।
वे भक्तों को राम नाम की दीक्षा भी दिया करते थे। वे कहा करते थे ‘’ इस भारत भूमि की दिव्यता का प्रमाण है कि भगवान राम और भगवान कृष्णा ने यहाँ अवतार लिया।” देवरहा बाबा ने योग्य जिज्ञासुओं को हठयोग की दसों मुद्राओं का प्रशिक्षण दिया।
देवरहा बाबा का प्रवचन
जब वे योग एवं साधना पद्धतियों का विवेचन करते तो बड़े बड़े विद्वान उनके ज्ञान से चकित हो जाते थे। सन 1989 में प्रयागराज कुंभ में विश्व हिन्दू परिषद के मंच से उन्होंने संदेश दिया कि दिव्य भूमि भारत कि समृद्धि गोरक्षा एवम् गौसेवा के बिना संभव नहीं। गौहत्या का कलंक मिटाना अत्यंत आवश्यक है।
देवरहा बाबा के शिष्य
बाबा के अनुयायियों में बड़े बड़े राजनीतिज्ञ, फिल्मी सितारे,राजपरिवारों के लोग शामिल थे। डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद, मालवीयजी, बूटा सिंह, इंदिरा जी, राजीव गांधी, पुरुषोत्तम दास टंडन, अटल बिहारी बाजपेई, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, कमलापति त्रिपाठी आदि प्रमुख थे।
देवरहा बाबा(devraha baba) ने वृंदावन में यमुना तट पर चार वर्षों तक साधना की। वहीं प्रतिदिन लोगों से मिलते और दर्शन भी देते थे। 11जून 1990से बाबा ने भक्तों को दर्शन देना बंद कर दिया। भक्त अनहोनी की आशंका से व्याकुल होने लगे। 19 जून 1990 को योगिनी एकादशी मंगलवार के दिन सुबह से ही मौसम खराब था। मानो प्रकृति भी अनहोनी की आशंका से व्याकुल थी। आंधी तूफान के बीच यमुना की लहरें तटबंधों को तोड़ने पर आमादा थीं। शाम चार बजे त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे बाबा ने इस नश्वर शरीर का त्याग कर दिया।
भारत के संत श्रृंखला की प्रथम कड़ी में देवरहा बाबा जैसे महान योगी एवम् उच्च कोटि के संत से आपको परिचित कराने का प्रयास किया गया है। देवरहा बाबा की जीवनी हमारे संतों की अलौकिक शक्तियों और महान व्यक्तित्व को प्रदर्शित करती है। आगे की कड़ियों में आपको अन्य संतों को जानने का अवसर मिलेगा जिनमें से कुछ के नाम आपने सुने होंगे और कुछ नामों से आप सर्वथा अपरिचित होंगे। भारतीय संस्कृति एवम् हिन्दू धर्म को समझने के लिए इन संतों के जीवनचरित्र, शिक्षाएं एवम् कार्यवृत को जानना आवश्यक है।
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