आज हम आपके लिए बेटी पर मार्मिक कविताएं नामक पोस्ट लेकर आए हैं। 21वी शताब्दी बेटियों की है। आज विश्व के हर क्षेत्र में बेटियाँ बेटों के बराबर हैं। फिर भी कहीं न कहीं हमारे समाज में लड़कियों के साथ आज भी भेदभाव होता है। इसी को दूर करने के लिए भारत सरकार ने कई योजनाएं शुरू की है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना भी उनमें से एक है।
आज हम भ्रूण हत्या और बेटी की विदाई पर दो बेहद भावुक कर देने वाली कविताएं प्रस्तुत कर रहे है। ये beti per kavita आपको जरूर पसंद आयेंगी।
बेटी की विदाई- poem on daughter
बेटी जब तक माँ बाप के घर रहती है। तब तक कोई यह नहीं सोचता कि वह कभी उन्हें छोड़कर भी जाएगी। लेकिन हमारे समाज में कहा जाता है कि बेटी पराया धन होती है। जब एक दिन वह अपने पिया के घर जाने लगती है। तो प्रत्येक रिश्ते को वह किस प्रकार रुलाती है और कौन सी यादें ताजा कराती है। इसका बहुत ही मार्मिक वर्णन इस कविता में किया गया है–
बेटी है इक सोनचिरैया, इस आंगन से उड़ जाएगी।
हमराही संग दूर देश जा अपना नीड़ बसायेगी।।
याद आएगा उसका बचपन, अपने भाई से हठ करना।
टूटे हुए खिलौने को ले, दिन भर लड़ना और झगड़ना।।
राखी का दिन जब आएगा, भइया को रुलवायेगी।।
बेटी है इक सोनचिरैया, इस आंगन से उड़ जाएगी।
हरदम माँ के संग में रहना, सुख-दुख सारा माँ से कहना।
माँ के सारे गुण हैं उसमें, माँ के बिन इक पल न रहना।।
छोड़ चली माँ के आंचल को, माँ को भी रुलवायेगी।।
बेटी है इक सोनचिरैया, इस आंगन से उड़ जाएगी।
सखियाँ सारी याद कर रहीं, उसका बचपन बारी-बारी।
पिय के संग ससुराल चली वह, कदम उठ रहे भारी-भारी।।
सखियों के संग बचपन में जिसने खेली आंख मिचौली।
आज बिदाई की बेला में सखियों को रुलवायेगी।
बेटी है इक सोनचिरैया, इस आंगन से उड़ जाएगी।
रोज पिता से डरते रहना, चुप रहना, बस कुछ न कहना।
नजरें अपनी नीची करके, चुपके चुपके खूब सिसकना।।
बाबुल का घर छोड़ चली, वह बाबुल को रुलवायेगी।
बेटी है इक सोनचिरैया, इस आंगन से उड़ जाएगी।
घर सूना औ मंदिर सूना, महल अटारी सूना सूना।
तेरे बिन घर का हर कोना, लगता है बस सूना सूना।।
मन के सूनेपन में तेरी यादें बहुत सताएंगी।
बेटी है इक सोनचिरैया, इस आंगन से उड़ जाएगी।
हमराही संग दूर देश जा अपना नीड़ बसायेगी।।
अजन्मी बेटी की पुकार- beti par kavita
एक बेटी जो अभी गर्भ में ही है। दुर्भाग्यवश उसके माता पिता उसे जन्म न देने का निश्चय कर चुके हैं। ऐसे में वह अजन्मी बेटी अपने माता पिता से इस संसार में आने देने के लिए किस प्रकार गुहार लगती है? इस अवधी भाषा की कविता में इसी का वर्णन बहुत ही मार्मिक ढंग से किया गया है। जो इस समाज को सोचने पर मजबूर कर देगा–
कोख मा बिटिया करै गुहार।
करै चिरौरी बारम्बार।।
तोहरी खातिरदारी मा हम काट लेब जीवन सारा।
हे माई हमका जिन मारा, हे बापू हमका जिन मारा।।
हे माई हमका जनम दिया, हम तोहसे कछु न मांग करब।
भइया कै जूठन खाय खाय के तीनों जूनी पेट भरब।।
तुम्हरे उतरे कपड़न से तन ढाँक लेब आपन सारा।
हे माई हमका जिन मारा, हे बापू हमका जिन मारा।।
भइया अंग्रेजी पढ़ै जाय, हम हिंदी मा सारा ज्ञान लेब।
बन तोहरे माथे कै बिंदी, हम तुम्हरौ नमवा तार देब।।
करब नौकरी सरकारी दुख टार देब तुम्हरौ सारा।
हे माई हमका जिन मारा, हे बापू हमका जिन मारा।।
है माई तुमहूँ बेटी हौ, बेटी कै तनी खयाल करौ।
बिटिया से कउनो दुख होई, तू दिल मा नहीं मलाल करौ।।
तुम्हरी सेवा मा रात दिना हम काम करब घर कै सारा।
हे माई हमका जिन मारा, हे बापू हमका जिन मारा।।
हे बापू हमका पता अहै, तुम्हरौ भारी मजबूरी है।
ई दान दहेज की खातिर, का बिटिया कै मरब जरूरी है।।
तुम्हरी किरिया बिन ब्याहे हम, काट देब जीवन सारा।
हे माई हमका जिन मारा, हे बापू हमका जिन मारा।।
हे बापू तोहसे बिनती है, तू काहे हमका मारत हौ।
कन्या हत्या कै पाप लगी, काहे परलोक बिगारत हौ।।
बिन बिटिया के सब सून रही, यह घर, दुआर, जीवन सारा।
हे माई हमका जिन मारा, हे बापू हमका जिन मारा।।
कवि के बारे में
इन कविताओं के रचयिता श्री हरिशंकर दुबे जी हैं। जो मुख्यतः अवधी भाषा में सामाजिक समस्याओं एवं सामयिक विषयों पर कविताएं एवं व्यंग्य लिखते हैं। बेटी पर मार्मिक कविताएं इनकी उत्कृष्ट रचनाओं में से एक हैं।