इस पोस्ट में आपके लिए 31+ बेस्ट प्रेरक प्रसंग का संकलन किया गया है। जिनसे आपको अपने जीवन में बहुत प्रेरणा मिलेगी। ये best prerak prasang सफल एवं महान लोगों के जीवन पर आधारित हैं। जोकि आपके एवं आपके बच्चों के लिए भी प्रेरणास्रोत का काम करेंगे।
प्रेरक प्रसंग #1 लाल बहादुर शास्त्री की सादगी
लाल बहादुर शास्त्री जी अपनी सादगी और देशसेवा की भावना के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार की बात है, तब शास्त्रीजी केंद्रीय मंत्री थे। उस समय के प्रधानमंत्री नेहरूजी उन्हें किसी जरूरी काम से कश्मीर भेजना चाहते थे।
लेकिन शास्त्रीजी ने उन्हें कहा कि किसी और को उनकी जगह भेज दिया जाय। नेहरूजी ने उनसे इसका कारण पूछा। उन्होंने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया कि इस समय कश्मीर में बड़ी सर्दी पड़ रही है।
मेरे पास गर्म कोट नहीं है। इसलिए आप किसी और को वहां भेज दें। नेहरू जी उनकी सादगी से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने बहुत आग्रह करके शास्त्री जी को अपना एक कोट दे दिया।
लेकिन चूंकि शास्त्रीजी छोटे कद के थे और नेहरूजी लंबे। इसलिए नेहरूजी का कोट शास्त्रीजी को फिट नहीं आया। इसलिए मजबूरी में शास्त्रीजी अपने एक मित्र को साथ लेकर नया कोट खरीदने बाजार गए।
वहां उन्होंने बहुत सी दुकानें देखी। लेकिन कोई कोट पसंद नहीं आया। अगर कोई पसंद आता तो वह बहुत महंगा होता और सस्ता कोट उन्हें फिट नहीं आता। अंत में एक दुकानदार ने उन्हें एक दर्जी का पता दिया।
जो सस्ते कोट सिलता था। शास्त्रीजी ने एक सस्ता कपड़ा खरीदा और सिलने को दे दिया। वापसी में उनके मित्र ने पूछा, “आप केंद्रीय मंत्री हैं। अगर आप चाहें तो आपके पास कोटों की लाइन लग जाये।”
“फिर भी आप एक सस्ते कोट के लिए बाजार में मारे-मारे फिर रहे हैं।” शास्त्रीजी ने उत्तर दिया, ” भाई मुझे इतना वेतन नहीं मिलता की मैं महंगा कोट पहन सकूं। मेरे लिए सभी सुख-सुविधाओं से बढ़कर देश सेवा है। जोकि मैं सस्ते कपड़ों में भी कर सकता हूँ।”
ऐसे थे जय जवान-जय किसान का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्रीजी। यह प्रेरक प्रसंग उनकी सादगी और देशप्रेम को दिखाता है।
31+ best prerak prasang #2 नियमनिष्ठ शास्त्रीजी
घटना उस समय की है। जब शास्त्रीजी गृहमंत्री थे। यह तो सब जानते हैं कि शास्त्रीजी बहुत सादगी पसंद और मितव्ययी थे। वे अपने और परिवार के ऊपर एक भी पैसा अनावश्यक नहीं खर्च करते थे।
नियमों का कड़ाई से पालन करना उनकी आदत थी। इतने महत्वपूर्ण पद पर होते हुए भी उन्होंने कभी भी अपने पद का दुरुपयोग नहीं किया। उनकी नियमनिष्ठा का एक प्रसंग इस प्रकार है।
उस समय वे इलाहाबाद में एक किराए के मकान में रहते थे। किसी कारणवश मकानमालिक को उस मकान की आवश्यकता पड़ी। उसने शास्त्रीजी से मकान खाली करने का अनुरोध किया। शास्त्रीजी तो सदैव खुद से अधिक दूसरों का ख्याल रखते थे।
उन्होंने तुरंत मकान खाली कर दिया। साथ ही दूसरे मकान के लिए आवेदन कर दिया। काफी समय बीत गया लेकिन शास्त्रीजी को मकान नहीं मिला। तब उनके किसी मित्र ने अधिकारियों से पूछताछ की।
तब अधिकारियों ने बताया कि शास्त्रीजी के शख्त निर्देश हैं कि नियमानुसार जिस नम्बर पर उनका आवेदनपत्र दर्ज है। उसी क्रम उनको मकान आवंटित किया जाय। किसी तरह का पक्षपात नहीं किया जाय।
शास्त्रीजी के पूर्व 176 लोगों के आवेदन होने कारण देश के तत्कालीन गृहमंत्री को लंबे समय तक मकान के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी। लेकिन उन्होंने किसी भी प्रकार की वरीयता या पद का दुरुपयोग अपने लिए नहीं किया।
यह 31+ बेस्ट प्रेरक प्रसंग शास्त्रीजी की कर्तव्यनिष्ठा को प्रदर्शित करता है।
प्रेरक प्रसंग #3 अब्राहम लिंकन की विनम्रता
यह उन दिनों की बात है। जब अब्राहम लिंकन अमेरिका के बड़े नेता के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे। एक बार वे एक गांव में सभा करने गए। वे वहां भाषण दे रहे थे। वहीं सामने उनके गांव का एक परिचित किसान भी बैठा था। तभी उनके विचारों से प्रसन्न होकर वह किसान मंच पर पहुंचा।
उसने भाषण देते लिंकन के कंधे पर हाथ रखकर कहा, “अरे लिंकन! तू तो बड़ा होशियार हो गया है। तेरा भाषण सुनने के लिए बड़ी संख्या में दूर दूर से लोग आए हैं।”
उसे इस प्रकार बात करते और भाषण में व्यवधान उत्पन्न करते देख आयोजक बहुत नाराज हुए। लेकिन इससे पहले कि वे कुछ करते। लिंकन ने बड़े प्यार से उस किसान का हाथ पकड़ा और अपने लिए रखी कुर्सी पर उसे बैठाया।
उसके बाद उन्होंने उसका और परिवार का हल चाल पूछा। थोड़ी देर बात करने के बाद उन्होंने अपना भाषण फिर से प्रारम्भ किया।
यह प्रेरक प्रसंग उन लोगों के लिए एक नजीर है। जो कुछ बन जाने के बाद अपने परिवार और पुराने मित्रों का परिचय देने में शर्म महसूस करते हैं।
31+ बेस्ट प्रेरक प्रसंग#4 लिंकन की सत्यनिष्ठा
अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन बचपन में एक चाय की दुकान में नौकरी करते थे।
एक दिन उसी मोहल्ले की एक बुजुर्ग महिला उनकी दुकान पर चाय लेने आयी। दुकान पर भीड़ अधिक थी। उसने एक पाव चाय के पैसे दिए। लेकिन जल्दबाजी में लिंकन ने उसे आधा पाव चाय ही दी।
महिला चाय लेकर चली गयी। शाम को हिसाब के समय लिंकन को जब इस गड़बड़ी का पता चला। तो वे टार्च लेकर रात के अंधेरे में उस महिला के घर चाय लेकर गए।
महिला के दरवाजा खोलने पर उन्होंने कहा, “माताजी! सुबह भीड़भाड़ में मैंने आपको कम चाय दे दी थी। वही पहुंचाने आया हूँ।” महिला बहुत प्रसन्न हुई।
उसने कहा, “तेरी सच्चाई और ईमानदारी से मैं बहुत खुश हुई। तुम एक दिन बहुत बड़े आदमी बनोगे। ईश्वर तुम्हें ईमानदारी और सच्चाई का फल जरूर देगा”
बूढ़ी महिला का आशीर्वाद सच हुआ। वे अमेरिका के राष्ट्रपति बने। यह प्रेरक प्रसंग ईमानदारी और सच्चाई के महत्व को प्रकाशित करता है।
प्रसंग #5 चरित्र का बल
भौतिकशास्त्र के वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता डॉक्टर सी0 वी0 रमन एक प्रख्यात वैज्ञानिक थे। एक बार अपने विभाग में काम करने के लिए उन्हें एक वैज्ञानिक की आवश्यकता थी।
इसके लिए कई वैज्ञानिकों के इंटरव्यू लिए गए। इंटरव्यू समाप्त होने के बाद डॉ0 रमन बाहर निकले। तब उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति जिसको उन्होंने रिजेक्ट कर दिया था। वह कार्यालय के बाहर टहल रहा था।
यह देखकर डॉ0 रमन उससे पूछा, “जब तुम्हें रिजेक्ट कर दिया गया था। तो तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” उसने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया, “मुझे आने जाने के लिये आपके कार्यालय की ओर से जो पैसे मिले थे। शायद भूलवश ज्यादा दे दिए गए थे।”
वही वापस करने के लिए मैं क्लर्क ढूढ रहा हूँ। पैसे वापस करने के बाद मैं चला जाऊंगा।” डॉ0 रमन बोले, “अब तुम्हे जाने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हें इस नौकरी के लिए सेलेक्ट किया जाता है।”
“क्योकि भौतिकी के ज्ञान की कमी को तो मैं पढ़ाकर दूर कर दूंगा। लेकिन एक ईमानदार चरित्र का निर्माण मैं कैसे करूंगा? तुम ईमानदार चरित्र के व्यक्ति हो। यही सबसे बड़ी योग्यता है।
प्रेरक प्रसंग #6 विपरीत परिस्थितियों का सही उपयोग
जब गांधीजी अफ्रीका में थे। तब उन्हें अंग्रेज सरकार के कड़े दमन का सामना करना पड़ता था। अंग्रेज तानाशाह जनरल स्मट्स बार बार उन्हें जेल में डाल देता था। ताकि उनका मनोबल टूट सके।
एक बार उनका अपमान करने के लिए उन्हें एक मोची के साथ बन्द कर दिया गया। लेकिन गांधी जी ने इसका उपयोग अवसर की भांति किया। उन्होंने उस मोची से जूते बनाने सीखे।
तीन महीने बाद जब वे जेल से छूटे। तो उन्होंने जनरल स्मट्स को एक जोड़ी खुद के बनाये हुए जूते भेंट किये। जनरल इससे भौंचक्का रह गया।
कई वर्षों बाद उसने गांधीजी को भारत में पत्र भेज कर अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। पत्र में उसने लिखा कि आपके भेंट किये हुए जूते मैंने गर्मियों में पहने। हालांकि मैं उनके लिये योग्य व्यक्ति नहीं हूँ।” गांधीजी ने जबाब में लिखा कि मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है।
इस प्रेरक प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को विपरीत परिस्थितियों का भी अपने पक्ष में सही उपयोग करना चाहिये।
प्रसंग #7 मुक्ति की सीढ़ी
एक बार एक नवयुवक स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास पहुंचा। उसने स्वामीजी के सामने पूरे भक्तिभाव से प्रार्थना की कि वे उसे अपना शिष्य बना लें। वह सब कुछ छोड़कर सन्यास ग्रहण करना चाहता था।
स्वामीजी ने बड़े प्रेम से उससे पूछा, ” तुम्हारे परिवार में कौन कौन है?” उसने बताया कि उसके परिवार में केवल उसकी बूढ़ी मां है। स्वामीजी ने फिर पूछा, “तुम सन्यास क्यों लेना चाहते हो?”
उसने बताया, “मैं संसार की मोह माया से मुक्ति पाना चाहता हूँ।” तब स्वामीजी मुस्कुराते हुए बोले, “अपनी बूढ़ी मां को निःसहाय छोड़कर तुम किसी भी प्रकार मुक्ति नहीं पा सकोगे। जाओ अपनी मां की सेवा करो। वही तुम्हारी मुक्ति की सीढ़ी है।”
यह प्रेरक प्रसंग हमें सिखाता है कि मातृसेवा ही सबसे बड़ी सेवा है।
बेस्ट प्रेरक प्रसंग #8 जहां चाह, वहां राह
लगभग 8 दशक पहले उत्तर प्रदेश के गोपामऊ नामक गाँव में एक बालक पैदा हुआ। दुखद बात यह थी कि उसके दोनों हाथ कलाई के पास से जुड़े हुए थे। जिसकी वजह से वह बालक अपने हाथों से कोई काम नहीं कर सकता था।
उसके माता-पिता बालक की स्थिति से दुखी थे। थोड़ा बड़े होने पर बालक ने पढ़ना चाहा। बालक की को हिंदी और संस्कृत का ज्ञान था। जबकि पिता को फ़ारसी आती थी।
उसने अपनी मां से हिंदी पढ़ी और रामचरितमानस की चौपाइयां गाने लगा। बालक लिखना चाहता था। लेकिन हाथों की स्थिति के कारण लिखना संभव नहीं था।
फिर एक दिन बहुत सुंदर घटना घटी। हुआ यूं कि उसके पिता एक दिन कुछ लिख रहे थे। बालक वहीं बैठा उन्हें ध्यान से देख रहा था। तभी उसके पिता के एक मित्र आ गए। उनसे मिलने के लिए उसके पिता उठ कर बाहर चले गए।
बालक ने किसी तरह हाथ की एक उंगली से कलम उठाकर उंगलियों के बीच में फंसा ली। फिर पेअर की सहायता से हाथों को घुमाकर लिखने लगा। उसके पिता ने एक पन्ने पर जो भी लिखा था। लड़के ने वह हूबहू उतार दिया।
पिता ने वापस आकर देखा तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने उसे एक विद्यालय में भर्ती करा दिया। वह बालक पी0 एच0 डी0 करके इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बना और बाद में विभागाध्यक्ष भी।
आगे चलकर यह बालक हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान डॉ0 रघुवंश के नाम से विख्यात हुआ। यह प्रेरक प्रसंग हमें सिखाता है कि बाधाएं दृढ़प्रतिज्ञ मनुष्य की राह नहीं रोक सकतीं।
प्रेरक प्रसंग #9 संकल्प की ताकत
लंदन के उपनगर था वालवर्थ। यह बस्ती निर्धनों और अशिक्षित लोगों की थी। यहां के निवासी आपराधिक कृत्यों के लिए बदनाम थे। इस बस्ती को सभ्य समाज में उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता था।
एक बार कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़कर एक लड़का यहां रहने आया। उसने यहां की दयनीय स्थिति को देखा और इसे बदलने का निश्चय किया। सबसे पहले उसने यहां के बच्चों को इकठ्ठा कर के पढ़ाना शुरू किया।
पढ़ाई के साथ साथ उसने उन्हें अच्छे संस्कार देना भी प्रारम्भ किया। बस्ती के लोगों उससे बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने सोचा कि कोई तो है जो उनके बच्चों की परवाह करता है।
कुछ दिनों बाद उस युवक ने बड़े लोगों को भी रविवार के दिन कक्षा में आने के लिए मना लिया। वह उन्हें भी शिक्षा के साथ अच्छी बातें सिखाने लगा। सभी उसका बहुत आदर करने लगे।
फिर कुछ दिन बाद उसने बस्ती वालों से एक संकल्प लेने के लिए कहा। संकल्प यह था कि वे सप्ताह में एक दिन कोई अपराध नहीं करेंगे। एक दिन अपराधमुक्त जीवन जीकर बस्तीवालों को अच्छा लगा।
फिर उन्होंने स्वयं संकल्प लिया कि वे सप्ताह में चार दिन कोई अपराध नहीं करेंगे। धीरे धीरे बस्ती और बस्तीवालों की स्थिति सुधरने लगी। उन्होंने अच्छे काम शुरू किए और अपराधियों के लिए कुख्यात एक उपनगर सभ्य लोगों का शहर बन गया।
वह नवयुवक बाद में भारत आया और दीनबंधु एंड्रूज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह प्रेरक प्रसंग हमें सिखाता है निरंतर प्रयास से कुछ भी संभव है।
प्रसंग #10 आत्मविश्वास की शक्ति
जिम कार्बेट एक महान शिकारी थे। एक बार वे एक हैजे से पीड़ित मरणासन्न व्यक्ति को अपने घर ले गए। लोग कह रहे थे कि यह जीवित नहीं बचेगा। लेकिन कुछ दिनों बाद देखा गया कि वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया।
आश्चर्यचकित लोगों ने जिम कार्बेट से पूछा कि किस औषधि से आपने उसे स्वस्थ किया? जिम ने लोगों को औषधियाँ लाकर दिखाई। दवाओं को देखकर लोगों ने कहा कि ये सब दवाइयाँ तो हमने भी अपने परिजनों को दी थी।
फिर भी हम उन्हें नहीं बचा सके। तब जिम कार्बेट ने जवाब दिया, “इसे मैंने एक और दवा दी थी जिसका नाम है आत्मविश्वास की औषधि। मैंने पहले ही दिन इसे बता दिया था।
तुम्हें दुनिया की कोई दवा नहीं बचा सकती। तुम्हें केवल तुम्हारा आत्मविश्वास ही बचा सकता है। अगर तुम ठान लो कि मुझे जीवित रहना है। तो तुम जीवित रहोगे। दवाओं के साथ साथ मैं इससे रोज यही बातें करता था। आत्मविश्वास के बल पर यह ठीक हो गया।”
इस प्रेरक प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि आत्मविश्वास की शक्ति से कुछ भी किया जा सकता है।
31+ बेस्ट प्रेरक प्रसंग #11 उधार का रुतबा
एक बालक के विद्यालय में पिकनिक का प्रोग्राम बना। उसमें सभी बच्चों को अपने घर से कुछ कहने के लिए लाना था। बालक ने घर आकर अपनी माता से कुछ नाश्ते के लिए ले जाने की बात बताई।
मां ने देखा तो घर में केवल कुछ खजूर पड़े थे। लेकिन बालक को खजूर ले जाना अच्छा नहीं लगा। जब उसके पिता घर आये तो माँ ने उन्हें सारी बात बताई। लेकिन उनकी जेब में भी पैसे नहीं थे।
किंतु वे बालक को निराश नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने पड़ोसी से कुछ पैसे मांगने की सोची। जब वे पैसे मांगने जाने लगे। तो बालक ने मना कर दिया। उसने कहा, “पिताजी! पिकनिक में जाना जरूरी नहीं। अगर जाना भी होगा तो मैं उधार के पैसों से कुछ ले जाने के बजाय खजूर ले जाना पसंद करूंगा।
उधार लेकर दिखावा करना ठीक नहीं है। हमेशा अपनी वास्तविक स्थिति के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए। यही बालक आगे चलकर लाला लाजपतराय के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यह प्रेरक प्रसंग आज के समय के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। जब लोग दिखावे के जीवन जीने के चक्कर में कर्जदार हुए जा रहे हैं।
12- सीखने की धुन# 31+ best prerak prasang
1947 के लगभग की घटना है। न्यूयॉर्क की एक विज्ञापन एजेंसी में एक युवक कार्य करता था। जिसका नाम लेस्टर वंडरमैन था। वह बहुत जिज्ञासु स्वभाव का था। वह बड़ी बारीकी से चीजों का अवलोकन करता और सीखता था।
एक बार एजेंसी के मालिक मिस्टर सैकहीम को लगा कि एजेंसी में जरूरत से कुछ कर्मचारी अधिक है। इसलिए कुछ कर्मचारियों की छंटनी कर देनी चाहिए। जिससे कम्पनी कुछ खर्च बच जाएगा।
उन्होंने कई कर्मचारी हटा दिए। वंडरमैन भी उनमें से एक था। लेकिन उसे तो सीखने की धुन थी। अतः वह निराश नहीं हुआ। निकाले जाने के बावजूद वह प्रतिदिन समय से आता और पूरी मेहनत और लगन से काम करता।
जब साथी कर्मचारी कहते कि तुम्हें निकल दिया गया है। तुम बेकार मेहनत करते हो। तुम्हें वेतन भी नहीं मिलेगा। तब वह जवाब देता, “मुझे लगता है कि मैं यहां बहुत कुछ सीख सकता हूँ।”
एजेंसी के मालिक मिस्टर सैकहीम उसको देखकर भी नजरअंदाज कर देते थे। एक महीने से अधिक बीत गए। वंडरमैन बिना वेतन के काम करता रहा।
आखिरकार एक दिन मिस्टर सैकहीम उसके पास आकर बोले, “तुम जीत गए। मैंने अपने जीवन में पहला व्यक्ति देखा है। जो वेतन से ज्यादा काम से प्यार करता है। अब तुम यहाँ के नियमित कर्मचारी हो। तुम्हे पिछला वेतन भी मिलेगा।
वंडरमैन ने वहां कई वर्षों तक पूरी लगन और ईमानदारी से काम सीखा। उसके बाद उसने अपनी एजेंसी खोली और अपने अलग तरीके और विज्ञापन की समझ से दुनिया में छा गया। आज लेस्टर वंडरमैन को डायरेक्ट मार्केटिंग के जनक के रूप में याद किया जाता है।
13- सच्चा अपराध# 31+ बेस्ट प्रेरक प्रसंग
न्यूयॉर्क शहर के मेयर ला गार्डियाको अपने प्रबंधन कौशल और दयालुता के लिए प्रसिद्ध थे। उनके समय में न्यूयॉर्क शहर बहुत फला- फूला। वे पुलिस के मुकदमों में गहरी रुचि रखते थे।
वे प्रायः मुकदमों की अध्यक्षता स्वयं करते थे। क्योंकि उनसे शहर की वास्तविक स्थिति पता चलती थी। एक बार उनके सामने एक अपराधी को पेश किया गया। जिसने एक रोटी चुराई थी।
जब उससे सफाई देने को कहा गया तो उसने केवल इतना कहा, “मेरे बच्चे और मेरा परिवार दो दिन से भूखा था। इसलिए मैंने रोटी चुराई। उसका जवाब सुनकर मेयर गम्भीर हो गए।
उन्होंने फैसला सुनाया, “क्योंकि तुमने चोरी की है। इसलिए मैं तुमपर 10 डॉलर का जुर्माना लगाता हूँ।” इसके बाद अपनी जेब से 10 डॉलर निकालकर उन्होंने कहा, “ये रहा तुम्हारा जुर्माना।”
इसके बाद उन्होंने अदालत में उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा, “साथ ही मैं इस अदालत में उपस्थित हर व्यक्ति पर आधा सेंट का जुर्माना लगाता हूँ। क्योंकि आप ऐसे समाज में रहने का अपराध करते हैं। जहां एक मजबूर व्यक्ति को रोटी चुरानी पड़ती है।”