अवचेतन मन की शक्ति से ही प्राचीन काल में ऋषि मुनि अनेक अलौकिक शक्तियों के स्वामी होते थे। ऐसी शक्तियां जिन पर सहज विश्वास आज भी नहीं होता।
असुरों को वरदान में इसी प्रकार कई विध्वंसक शक्तियां प्राप्त होती थीं जिनका वे दुरुपयोग करते थे। ये शक्तियां आती कहाँ से थीं? क्या वर्तमान में भी वे शक्तियां प्राप्त की जा सकती हैं?
ये समस्त शक्तियां कहीं बाह्य जगत में उपस्थित नहीं हैं वरन ये सभी हमारे भीतर ही हैं परंतु सुप्तावस्था में। ये शक्तियां अवचेतन मन के निर्देशों पर कार्य करती हैं। मन के दो रूप होते हैं चेतन मन और अवचेतन मन।
सुबह जागने से लेकर रात्रि को सोते समय तक हमारा चेतन मन कार्यरत रहता है। इस दौरान किये गए सारे कार्य चेतन मन के द्वारा संचालित होते हैं। चेतन मन हमारे विचारों, व्यक्तित्व एवम अन्य आंतरिक गुणों पर अस्थाई प्रभाव ही डाल पाता है अर्थात चेतन मन हमारे अंदर स्थाई परिवर्तन करने में सक्षम नही है। आंतरिक स्थाई परिवर्तन करने का कार्य है अवचेतन मन का।
हमारा चेतन मन दिन भर भिन्न भिन्न प्रकार की परिस्थितियों से जूझता रहता है। इन परिस्थितियों में वह जैसा महसूस करता है, जैसी प्रतिक्रिया देता है, वह सब सुरक्षित होती रहती है। उसी के अनुसार अवचेतन मन हमारे शारीरिक और मानसिक तंत्र में बदलाव करता है और हमें परिस्थितियों के लिए तैयार करता है। यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। अवचेतन मन सही गलत, अच्छे बुरे का भेद नहीं करता।
वह केवल हमारे चेतन मन की इच्छा के अनुरूप हमारे आंतरिक तंत्र को सुनियोजित करके हमें बेहतर माहौल प्रदान करने का प्रयत्न करता है। इसे एक उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है। जैसे कोई किसी नशे का आदी है और वह सोचता है कि वह इसके बिना नहीं रह सकता तो अवचेतन मन उसकी इस सोच के अनुरूप ऐसा माहौल बना देता है कि यदि वह उसे छोड़ने का प्रयत्न करता है तो उसे अनेक शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
किंतु यदि वही व्यक्ति रोज़ लगातार यह सोचे की मैं इसका आदी नहीं हूँ और मैं इसे छोड़ सकता हूँ तो अचेतन मन उसके अनुरूप उसे तैयार कर देगा।
इसी प्रकार अचेतन मन हमारी सुप्त आंतरिक शक्तियों को भी जाग्रत कर सकता है। हमारे आत्मविस्वास को बढ़ा सकता है। हमारी संकल्पशक्ति को बढ़ा सकता है। हमारे व्यक्तित्व की कई कमियों यथा- आलस्य, क्रोध, अकर्मण्यता आदि को दूर कर सकता है।
कई बीमारियों जैसे तनाव, अनिद्रा, घबराहट आदि को दूर कर सकता है। आज के इस भागदौड़ भरे जीवन में तमाम समस्याएँ मानसिक कारणों से उत्पन्न होती है। उनका उपचार अवचेतन मन के द्वारा आसानी से किया जा सकता है।
अब प्रश्न उठता है कि अचेतन मन का प्रयोग हम किस प्रकार करें क्योंकि अवचेतन मन केवल तभी जाग्रत होता है जब हमारा चेतन मन सुप्तावस्था में होता है। सामान्य अवस्था में दोनों एक साथ जाग्रत नहीं रह सकते। जाग्रत अवस्था में चेतन मन सक्रिय रहता है और सुप्तावस्था में अवचेतन मन। दोनो जिस अवस्था में जाग्रत रहते हैं उसे तुरिया अवस्था या समाधि अवस्था कहते हैं।
निरंतर ध्यान और अभ्यास से योगी लोग इस अवस्था को प्राप्त कर पाते हैं।एक बार अवचेतन मन जाग्रत होकर मनुष्य के निर्देशों के अनुरूप कार्य करने लग जाय तो कुछ भी असम्भव या अप्राप्य नहीं है। क्योंकि मानव शरीर अनेक अलौकिक शक्तियों का भंडार है जो कि अवचेतन मन के द्वारा कीलित हैं एक बार उत्कीलन हो जाय तो शक्तियों का जागरण एवं बोध अत्यंत सुगम है।
परंतु यह एक कठिन प्रकिया है जो ध्यान के निरंतर अभ्यास से ही सम्भव है तथापि हम कुछ सामान्य प्रयोगों के द्वारा अवचेतन मन से बहुत से उपयोगी कार्य ले सकते हैं। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि अवचेतन मन हमारे चेतन मन के विचारों के अनुरूप कार्य करता है।
तो हम जो कार्य अपने अवचेतन मन से करवाना चाहते हैं उससे सम्बंधित विचार अपने चेतन मन में आरोपित करने होगें। यदि हम चाहते हैं की हमारा तनाव दूर हो तो हमें प्रतिदिन दिन भर में जितनी बार हम कर सकें हमें दोहराना होगा कि हमारा दिमाग़ पूर्ण रूप से शांत है। हम मानसिक रूप से संतुष्ट और प्रसन्न हैं।
अगर हम चाहते हैं कि लोग हमसे प्रभावित हों तो हमें बार बार दोहराना होगा कि मेरा व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली है। लोग मुझसे तुरंत प्रभावित हो जाते हैं। अगर आप कोई बुरी आदत या लत छोड़ना चाहते हैं और नहीं छोड़ पा रहे हैं तो इसका अर्थ है कि आपकी इच्छाशक्ति कमजोर है। इसके लिए आप प्रतिदिन बार बार कहें कि मेरी इच्छाशक्ति बहुत मज़बूत है।
मैं कोई भी संकल्प लेकर उसे पूरा ज़रूर करता हूँ। जब आप ऐसा बार बार कहेंगे तो आपका अवचेतन मन उसको सही मान लेगा और आपको उसके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार कर देगा।
इसी प्रकार आप अन्य बहुत सारे प्रयोग कर सकते हैं। बस आपको कुछ बातों का ध्यान रखना है–
- हमेशा सकारात्मक वाक्य ही बोलें। जैसे आप अपनी क्रोध की आदत को दूर करना चाहते हैं और बोलते हैं कि मुझे ग़ुस्सा नहीं आता। तो अवचेतन मन भ्रमित होगा क्योंकि आपको ग़ुस्सा आता है और आप उल्टा बोल रहें हैं। तो वह आपको अपेक्षित परिणाम नहीं देगा। आपको बोलना है मैं बहुत शांत स्वभाव का हूँ।
- अच्छा होगा की आप अपने वाक्य को लिख लें और शब्दशः दोहराएँ। अर्थात् शब्दों में अंतर न हो।
- जब भी बोलें पूरी तरह एकाग्रचित होकर बोलें जैसे कि आप अवचेतन मन को सुना रहे हों।
- प्रतिदिन ध्यान करें जिससे आपके विचार अवचेतन मन तक शीघ्र सम्प्रेषित होंगे।
तो आज ही कोई एक लक्ष्य लेकर प्रयोग शुरू कर दीजिए बिना निराश हुए तब तक प्रयास करिए जब तक वह सिद्ध न हो जाय।