हिंदी भाषा ज्ञान के अंतर्गत आज हम आपके लिए अलंकार की परिभाषा प्रकार और उदाहरण नामक पोस्ट लाये हैं. जिसमें हमने अलंकारों को बहुत सरल भाषा में उदाहरणों के माध्यम से समझाने का प्रयत्न किया है. ताकि आप आसानी से अलंकार की परिभाषा भेद उदाहरण आदि को समझ सकें.
अलंकार (alankar) किसे कहते हैं ?
अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है आभूषण या गहना। जैसे विभिन्न प्रकार के आभूषणों से शरीर की शोभा और सुंदरता में वृद्धि होती है। उसी प्रकार अलंकारों से काव्य या कविता की सुंदरता बढ़ जाती है।
हिन्दी भाषा के साहित्य का पूर्ण आनंद लेने के लिए अलंकारों का ज्ञान होना आवश्यक है। कवि के द्वारा किये गए साहित्यिक परिश्रम को आप बिना अलंकारों के ज्ञान के पूरी तरह नहीं समझ सकते।
संस्कृत भाषा में अलंकारों का प्रतिष्ठापक आचार्य दंडी को माना जाता है। महाकवि कालिदास की उपमाओं को विश्व साहित्य में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। हिन्दी भाषा में अलंकार के उदाहरण तुलसीदास के महाकाव्य रामचरित मानस में सुंदर एवं प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। केशवदास को अलंकारवादी कवि कहा जाता है।
अलंकार की परिभाषा
आचार्य दंडी के अनुसार–
“काव्य शोभकरान धर्मान अलंकारान प्रचक्षते।”
अर्थात काव्य के शोभकारक गुण को अलंकार कहते हैं।
“अलंकरोति इति अलंकारः”
“अर्थात सुंदरता में वृद्धि करने वाले अवयवों को अलंकार कहते हैं।”
इस प्रकार “अलंकार वह है जिसके प्रयोग से काव्य की सुंदरता में वृद्धि हो। शाब्दिक अथवा अर्थ में चमत्कार की उत्पत्ति हो।”
अलंकार के भेद या प्रकार
अलंकार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
(1)- शब्दालंकार- जहां काव्य में शब्दों के चातुर्यपूर्ण प्रयोग से चमत्कार उत्पन्न किया जाता है। परन्तु अर्थ सामान्य ही रहता है, वहां शब्दालंकार होता है।
(2)- अर्थालंकार– जब काव्य में शब्दों के प्रयोग से अर्थ में चमत्कार उत्पन्न किया जाता है। वहां अर्थालंकार होता है।
शब्दालंकार के भेद
शब्दालंकार पांच प्रकार के होते हैं। जिनमें प्रथम तीन प्रमुख हैं–
(1) अनुप्रास (2) यमक (3) श्लेष (4) वक्रोक्ति (5) वीप्सा
अनुप्रास अलंकार- अलंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण
जहां पर वर्णों की आवृत्ति हो अर्थात एक ही अक्षर बार-बार आये। वहां अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण– मुदित महीपति मंदिर आये। सेवक सचिव सुमंत बुलाये।।
इस चौपाई में म और स वर्ण बार बार आये हैं। अतः यहां पर अनुप्रास अलंकार का प्रयोग स्पष्ट है।
अनुप्रास अलंकार के प्रकार
शब्दों के प्रयोग के आधार पर अनुप्रास अलंकार के तीन भेद या प्रकार हैं-
छेकानुप्रास
जहां स्वरूप और क्रम के अनुसार कई व्यंजनों की एक बार आवृति हो। अर्थात अक्षरों का रूप या स्थिति और क्रम एक जैसा ही हो। वहां छेकानुप्रास होता है। उदाहरण-
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
यहां पद और पदुम में पद शब्द की आवृत्ति (स्वरूप की आवृत्ति) है। पद में प के बाद द पदुम में प के बाद द और सुरुचि में स के बाद र और सरस में स के बाद र की आवृत्ति (क्रम की आवृत्ति) है।
वृत्यानुप्रास
जब कई व्यंजनों की कई बार स्वरूप और क्रमवार आवृति हो, तो वहां व्रत्यानुप्रास अलंकार होता है। उदाहरण-
विराजमाना वन एक ओर थी कलामयी केलिवती कलिंदजा।
यहां क और ल की अनेक बार स्वरूपतः और क्रमतः आवृत्ति के कारण व्रत्यानुप्रास अलंकार है।
लाटानुप्रास अलंकार
जहां एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति उसी अर्थ में हो, किंतु तात्पर्य में कुछ भेद हो। वहां लाटानुप्रास अलंकार होता है। उदाहरण-
पंकज तो पंकज, मृगांक भी है, मृगांक री प्यारी।
यहां पहले पंकज का साधारण अर्थ है कमल। दूसरे पंकज का अर्थ भी कमल है लेकिन कीचड़ से उत्पन्न कमल। इस प्रकार अर्थ में कुछ भेद हुआ। इसी प्रकार प्रथम मृगांक का अर्थ है चंद्रमा। दूसरे मृगांक का अर्थ हुआ कलंकयुक्त चंद्रमा। इस प्रकार अर्थ तो वही है परंतु अन्वय में भेद है।
यमक अलंकार: अलंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण
जहां एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आये। लेकिन हर बार अर्थ अलग अलग हों। वहां यमक अलंकार होता है। उदाहरण–
कनक कनक से सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय नर, या पाए बौराय।।
यहां कनक शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है। पहले कनक का अर्थ धतूरा और दूसरे कनक का अर्थ सोना है।
श्लेष अलंकार
जहाँ शब्द का प्रयोग तो एक बार ही हुआ हो। लेकिन उसके कई अर्थ हों। वहां श्लेष अलंकार होता है। जैसे-
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी बिना न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।
यहां पानी शब्द का प्रयोग तो एक बार हुआ है। परंतु इसके तीन अर्थ हैं। मोती के संदर्भ में पानी का अर्थ- चमक है। मानुष के संदर्भ में- प्रतिष्ठा और चून के संदर्भ में पानी अर्थ है।
वक्रोक्ति अलंकार
हिन्दी भाषा में अलंकार के अंतर्गत अगला अलंकार है वक्रोक्ति अलंकार. जहां प्रत्यक्ष दिख रहे अर्थ की बजाय दूसरा अर्थ ग्रहण किया जाय। टेढ़ा कथन हो। वहां वक्रोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण-
एक कबूतर देख हाथ में, पूछा कहाँ अपर है।
उसने कहा अपर कैसा, वह उड़ गया सपर है।।
यहां जहांगीर ने दूसरे कबूतर के बारे में पूछने के लिए अपर (दूसरा) शब्द का प्रयोग किया है। जवाब में नूरजहां ने अपर का अर्थ बिना पंख का लगा कर उत्तर दिया है।
वीप्सा अलंकार
जहां मनोभावों को प्रकट करने के लिए शब्दों की आवृत्ति होती है। वहां वीप्सा अलंकार होता है। ये शब्द हैं-
छि छि, राम राम, धिक धिक आदि।
अर्थालंकार
जहां काव्य में अर्थ में चमत्कार उत्पन्न किया जाता है। वहां अर्थालंकार होता है।
अर्थालंकार के भेद
वैसे तो अर्थालंकार के सौ से भी अधिक भेद हैं। किंतु हम यहां मुख्य और अधिक प्रयोग होने वाले अलंकारों के बारे में जानेंगे। जिनमें प्रथम है-
उपमा अलंकार-अलंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण
जब स्वभाव, शोभा, गुण, समान धर्म के आधार पर एक वस्तु की दूसरी वस्तु से तुलना की जाती है। वहां उपमा अलंकार होता है। उपमा अलंकार के चार अंग हैं-
उपमेय
जिसकी उपमा दी जाय या जिसकी तुलना की जाय। उसे उपमेय कहते हैं।
उपमान
जिससे उपमा दी जाय या जिससे तुलना की जाय। उसे उपमान कहा जाता है।
वाचक
जिस शब्द से उपमा या तुलना प्रकट की जाय। उसे वाचक शब्द कहा जाता है। जैसे-समान, जैसे, ज्यों, तरह सदृश, सरिस आदि
समान धर्म
जिस गुण की उपमा दी जाय या दोनों के जिस गुण की तुलना की जाय। उसे समान धर्म कहते हैं। उदाहरण-
पीपर पात सरिस मन डोला।
पीपल के पत्ते के समान मन कांपने लगा।

प्रतीप अलंकार
जहां पर किसी प्रसिद्ध उपमान को उपमेय बना दिया जाता है। अर्थात किसी प्रसिद्ध वस्तु की तुलना एक सामान्य वस्तु या प्रतीक से की जाती है। उदाहरण-
मुख सा चंद्र है।
यहां चंद्रमा (उपमेय) जैसी प्रसिद्ध वस्तु की तुलना मुख (उपमान) से की जा रही है।
संदेह अलंकार- alankar in hindi
जहां किसी वस्तु (उपमेय) में उसी तरह की किसी अन्य वस्तु (उपमान) का संदेह हो। वहां संदेह अलंकार alankar होता है। उदाहरण-
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
नारी की ही सारी है कि सारी की ही नारी है।।
यहां नारी और सारी में संदेह होने के कारण संदेह अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार
अलंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण के अंतर्गत अगला अलंकार है उत्प्रेक्षा अलंकार. जहां उपमेय में उपमान की संभावना की जाती है। अर्थात किसी एक वस्तु को दूसरी वस्तु जैसी होने की संभावना प्रकट की जाय।वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जहां उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग होता है। वहां कुछ शब्द अवश्य आते हैं। जैसे- जनु, जानो, जानहुँ, मनु, मानो, मानहुँ। उदाहरण–
सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात।
मनहु नीलमणि शैल पर, आतप परयो प्रभात।।
रूपक अलंकार
रूपक अलंकार में उपमेय और उपमान में भेदरहित आरोप किया जाता है। अर्थात दो वस्तुओं को एक ही मान लिया जाता है। उदाहरण-
चरण कमल बंदउ हरि राई।
यहां चरण और कमल को एक ही मान लिया गया है।
अतिशयोक्ति अलंकार
जहां लोक सीमा का उल्लंघन करके किसी वस्तु का वर्णन या प्रसंशा बहुत बढ़ा-चढ़ा कर किया जाता है। वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण–
हनूमान की पूंछ में, लगन न पाई आग।
सारी लंका जल गई, गए निशाचर भाग।।
उल्लेख अलंकार- hindi me alankar
जहां एक वस्तु का गुण, विषय, भावना के अनुसार अनेक प्रकार से या अलग अलग वर्णन किया जाय। वहां उल्लेख अलंकार होता है। जैसे-
जानति सौति अनीति है, जानति सखी सुनीति।
गुरुजन जानत लाज है, प्रीतम जानत प्रीति।।
जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।
देखहिं भूप महा रनधीरा। मनहुँ वीर रस धरे शरीरा।।
डरे कुटिल नृप प्रभुहिं निहारी। मनहुँ भयानक मूरति भारी।।
भ्रांतिमान अलंकार
जहाँ एक जैसी होने के कारण किसी वस्तु को कुछ और ही समझ लिया जाय। वहां भ्रांतिमान अलंकार होता है। उदाहरण-
मुन्ना तब मम्मी के सिर पर देख-देख दो चोटी।
भाग उठा भय मानकर सर पर सांपिन लोटी।।
दृष्टांत अलंकार- alankar ki paribhasha
अलंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण के अंतर्गत अगला अलंकार है दृष्टांत अलंकार. जहां उपमेय एवं उपमान में बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव हो। अर्थात जहां दो वस्तुएं गुण धर्म में एक समान हो। एक के वर्णन में दूसरे का उदाहरण प्रस्तुत किया जा सके। वहां दृष्टांत अलंकार होता है। उदाहरण–
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई। पारस परस कुधातु सोहाई।।
यहां सत्संगति और पारस दोनों गुण धर्म में समान हैं। दोनों के संपर्क में आने पर बुरे भी अच्छे हो जाते हैं।
व्यतिरेक अलंकार
जहां उपमेय में उपमान की अपेक्षा कुछ अधिक विशेषता दिखाई जाय। वहां व्यतिरेक अलंकार होता है। उदाहरण-
चंद्र सकलंक, मुख निष्कलंक, दोनों में समता कैसी?
यहां उपमेय मुख को उपमान चंद्र की अपेक्षा श्रेष्ठ बताया गया है।
अन्योक्ति अलंकार- अलंकार की परिभाषा भेद व उदाहरण
जहां अप्रस्तुत (जो उपस्थित न हों) वस्तुओं के माध्यम से प्रस्तुत वस्तुओं का वर्णन किया जाय। वहां अन्योक्ति अलंकार होता है। जैसे-
नहिं पराग, नहिं मधुर मधु, नहिं विकास एहि काल।
अली कली ही सों बिन्ध्यो, आगे कौन हवाल।।
यहां भ्रमर और कली का वर्णन करने के लिए अप्रस्तुत पराग और मधु का सहारा लिया गया है। अलंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण
काव्यलिंग अलंकार
जहां किसी बात को कारण सहित बताया जाय। अथवा उसका युक्तिपूर्वक समर्थन किया जाय। वहां काव्यलिंग अलंकार होता है। इसकी विशेषता यह है कि अर्थ बताते समय इसमें क्योंकि, इसलिए, चूंकि, कारण आदि शब्दों का प्रयोग होता है। उदाहरण-
कनक कनक से सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय नर, या पाए बौराय।।
सोना धतूरे की अपेक्षा सौ गुना ज्यादा मादक होता है। क्योंकि धतूरा खाकर आदमी पागल होता है। जबकि सोना पाते ही आदमी पागल हो जाता है।
अलंकार पर बहुविकल्पीय प्रश्न – Alankar worksheet
1- काव्यलिंग अलंकार कहते हैं-
(क) जहां काव्य में भ्रम की स्थिति हो।
(ख) जहां उपमेय में उपमान का आरोप हो।
(ग) जहां किसी बात को कारण सहित बताया जाय।
2- उपमेय कहते हैं-
(क) जिससे उपमा दी जाए।
(ख) जिसकी उपमा दी जाए।
(ग) जिस गुण की उपमा दी जाए।
3- उपमान कहते हैं–
(क) जिससे उपमा दी जाए।
(ख) जिसकी उपमा दी जाए।
(ग) जिस गुण की उपमा दी जाए।
4- पीपर पात सरिस मन डोला में कौन सा अलंकार है-
(क) रूपक
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) उपमा
5- जब काव्य के शब्दों में चमत्कार उत्पन्न हो तब वहां-
(क) उपमा अलंकार होता है।
(ख) शब्दालंकार होता है।
(ग) अर्थालंकार होता है।
6- अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है-
(क) आभूषण
(ख) चमत्कार
(ग) उपरोक्त दोनों
7- अनुप्रास अलंकार में …… की आवृत्ति होती है-
(क) अर्थों की
(ख) शब्दों की
(ग) दोनों की
8- अनुप्रास अलंकार के भेद होते हैं-
(क) चार
(ख) तीन
(ग) दो
9- उत्प्रेक्षा अलंकार के प्रतिनिधि शब्द हैं-
(क) जैसे
(ख) तैसे
(ग) मानो, जनु
10- जहां उपमेय और उपमान में भेदरहित आरोप हो-
(क) उत्प्रेक्षा अलंकार
(ख) रूपक अलंकार
(ग) प्रतीप अलंकार
उत्तर- 1(ग)। 2(ख)। 3(क)। 4(ग)। 5(ख)। 6(ग)। 7(ख)। 8(ख)। 9(ग)। 10(ख)
आशा है कि अलंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण लेख के माध्यम से आपको प्रमुख अलंकारों को सरल भाषा में समझाने का प्रयास कुछ हद तक सफल हुआ होगा।